शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

महिमा गुरु की

https://youtu.be/5QlK8Oa_lmkइस दुनिया में हर एक चीज़ जो दी जाती है, वह कम होती है, और सिर्फ ज्ञान ही देने से बढ़ता है! वैसा स्वभाव है। सिर्फ ज्ञान ही! दूसरा कुछ भी नहीं। दूसरा सबकुछ तो घटता है। मुझे एक मित्र कहता है कि, 'आप जितना जानते हैं उतना क्यों कह देते हैं? थोड़ा कुछ डिब्बी में नहीं रखते?' मैंने कहा, 'अरे, देने से तो बढ़ता है! मेरा बढ़ता है और उसका भी बढ़ता जाता है, तो क्या नुकसान होता है जी हां ज्ञान ज्ञान का कारक गुरु है तो फिर हम आज गुरु की ही बात करेंगे गुरु ही ब्रह्मा है गुरु ही विष्णु 

है गुरु ही महेश्वर है,गुरु ही साक्षात दिखाई देने वाला ब्रह्म है तो गुरु को क्यों नही माना जाये। वैसे पूजा गुरु की ब्रह्मा के रूप में की जाती है,और गुरु के रूप में चलते फ़िरते धार्मिक लोगों को उनकी जाति के अनुसार धर्म कर्म करवाने वाले लोग जिन्हे हिन्दू पंडित कहते है मुसलमान मौलवी कहते है ईशाई पादरी कहते है। गुरु कोई बनावटी काम नही करता है वह जन्म से ही रूहानी कार्य करने के लिये अपने को आगे रखता है। वह अपनी हवा को चारों तरफ़ फ़ैलाने की कार्यवाही करता है,पहला गुरु पिता होता है जिसने अपने बिन्दु को माता के गर्भ के द्वारा शरीर रूप में परिवर्तित किया है दूसरा गुरु संसार का हर रिस्ता है जो कुछ न कुछ सिखाने के लिये अपना धर्म निभाता है वह रिस्ता अगर दुश्मनी का भी है तो भी लाभकारी होता है कि उससे दुश्मनी के गुण धर्म भी सीखने को मिलते है,तीसरा गुरु अपना खुद का दिमाग होता है जो समय पर अपने ज्ञान की समिधा से जीवन के लिये अपनी सुखद या दुखद अनुभूति को प्रदान करता है। बाकी के गुरु स्वार्थ के लिये अपना काम करते है कोई घर्म को बढाने के लिये और कोई अपनी संस्था के विकास के लिये मायाजाल फ़ैलाने का काम करते है। गुरु के अन्दर की शक्ति एक हाकिम जैसी होती है यानी जैसा हुकुम गुरु ने दिया उसी के अनुसार सभी काम होने लगे,बिना गुरु के सांस लेना भी दूभर होता है कारण गुरु ही हवा का कारक है और सांस बिना गुरु के नही ली जा सकती है। धातुओं मे गुरु को उसी धातु को उत्तम माना जाता है

ज्योतिष में अगर गुरु को देखा जाता है तो पहले भाव में सिंहासन पर बैठा साधु ही माना जाता है उसके पास चाहे कुछ भी हो लेकिन उसके अन्दर अहम नही होता है और न ही वह दिखावा करता है,दूसरे भाव में संसार के लिये तो वह गुरु होता है लेकिन अपने लिये वह हमेशा फ़कीर ही रहता है तीसरा भाव गुरु को खानदान का मुखिया तो बना देता है लेकिन अपने ही बच्चे उसका आदर नही करते है,चौथा गुरु रखता तो राजा महाराजा की तरह से लेकिन अपन को कभी स्थिर नही रहने देता है,पांचवा गुरु स्कूल के मास्टर जैसा होता है कहीं भी गल्ती देखी और अपनी विद्या को बिखेरना शुरु कर देता है कितने ही गालियां देते जाते है और कितनी ही सिर को टेकते जाते है उसे गालियों से और सिर टेकने से कोई फ़र्क महसूस नही होता है। छठा गुरु जब भी बुलायेगा तो बुजुर्गों को ही मेहमान के रूप में बुलायेगा कभी भी जवान लोगों से दोस्ती नही करता है,सातवां गुरु रहेगा हमेशा निर्धन ही लेकिन वह कितना ही जवान हो अपने को बुजुर्गों जैसा ही शो करेगा,आठवां गुरु बच्चे को भी बूढों की बाते करते हुये देख कर खुस होने वाला होता है,नवां गुरु घर में सबसे बडा होगा मगर यह शर्त नही है कि वह अपने ही खून का रिस्तेदार है या कहीं से आकर टिका हुआ व्यक्ति है। दसवां गुरु खतरनाक होता है अपने बाप की खराब आदतों की बजह से दूसरे ही बचपन को जवानी तक खींच कर ले जाने वाले होते है,ग्यारहवा गुरु बिना बुलाये ही मेहमान बनकर आने वाला माना जाता है उसे मान अपमान की चिन्ता नही होती है उसे केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है,कहीं भी दिक्कत आने पर पतली गली से निकलने में अपनी भलाई समझता है,बारहवां गुरु अपने परिवार के लिये बेकार माना जाता है उसे अपने शरीर की भी चिन्ता नही रहती है और मिल जाये तो रोज लड्डू खाये नही तो नमक रोटी से भी गुजारा चला ले,बच्चे हो तो भी बिना बाप जैसे बच्चे दिखाई देते है।

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