https://youtu.be/rLabGPgeiFUतंत्र
हमारे प्राचीन हिन्दु-शास्त्रों में कुंडलिनी साधना' का उल्लेख आता है। ऐसे प्राचीन ग्रंथों में साधना के कई मार्ग दिखाए गए हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे शरीर के भीतर छह चक्रों की खोज की थी। वे छह चक्र क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि तथा आज्ञा चक्र हैं। मूलाधार चक्र में एक सर्पिणी ढाई कुंडल मारकर बैठी रहती है, जिसे कुंडलिनी कहते हैं। हमारे मेरुदण्ड में तीन मुख्य नाडियाँ होती हैं, इडा, पिंगला और सुषुम्ना। जैसे-जैसे योगाभ्यास द्वारा जब कुंडलिनी जागृत होकर इन छह चक्रों का भेदन करती हुई आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे साधक को तरह-तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती जाती है। अंत में कुंडलिनी आज्ञा चक्र को भेदते हुए सहस्रार बिंदुजिसे कुछ साघक सातव चक्र पर पहुँच जाती है तो वहाँ साधक को आलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है. यही एक बार इंसान की ऊर्जा सहस्रार तक पहुँच जाती है,
www.acharyarajesh.in तो वह पागलों की तरह परम आनंद में झूमता है। अगर आप बिना किसी कारण ही आनंद में झूमते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी ऊर्जा ने उस चरम शिखर को छू लिया है।दरअसल, किसी भी आध्यात्मिक यात्रा को हम मूलाधार से सहस्रार की यात्रा कह सकते हैं। यह एक आयाम से दूसरे आयाम में विकास की यात्रा है, इसमें तीव्रता के सात अलग-अलग स्तर होते हैं। आपकी ऊर्जा को मूलाधार से आज्ञा चक्र तक ले जाने के लिए कई तरह की आध्यात्मिक प्रक्रियाएं और साधनाएं हैं, लेकिन आज्ञा से सहस्रार तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। कोई भी एक खास तरीका नहीं है। आपको या तो छलांग लगानी पड़ती है या फिर आपको उस गड्ढे में गिरना पड़ता है, जो अथाह है, जिसका कोई तल नहीं होता। इसे ही ‘ऊपर की ओर गिरना‘ कहते हैं। योग में कहा जाता है कि जब तक आपमें ऊपर की ओर गिरने’ की ललक नहीं है, तब तक आप वहां पहुँच नहीं सकते।यही वजह है कि कई तथाकथित आध्यात्मिक लोग इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि शांति ही परम संभावना है, क्योंकि वे सभी आज्ञा में ही अटके पडे़ हैं। वास्तव में शांति परम संभावना नहीं है। आप आनंद में मग्न हो सकते हैं, इतने मग्न कि पूरा विश्व आपके अनुभव और समझ में एक मजाक जैसा लगने लगता है। जो चीजें दूसरों के लिए बड़ी गंभीर है, वह आप के लिए एक मजाक होती है।लोग अपने मन को छलांग के लिए तैयार करने में लंबे समय तक आज्ञा चक्र पर रुके रहते हैं। यही वजह है कि आध्यात्मिक परंपरा में गुरु-शिष्य के संबधों को महत्व दिया गया है। उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि जब आपको छलांग मारनी हो, तो आपको अपने गुरु पर अथाह विश्वास होना चाहिए। 99.9 फीसदी लोगों को इस विश्वास की जरूरत पड़ती है, नहीं तो वे छलांग मार ही नहीं सकते। यही वजह है कि गुरु-शिष्य के संबंधों पर इतना महत्व दिया गया है, क्योंकि बिना विश्वास कोई भी कूदने को तैयार नहीं होगा।
www.acharyarajesh.in तो वह पागलों की तरह परम आनंद में झूमता है। अगर आप बिना किसी कारण ही आनंद में झूमते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी ऊर्जा ने उस चरम शिखर को छू लिया है।दरअसल, किसी भी आध्यात्मिक यात्रा को हम मूलाधार से सहस्रार की यात्रा कह सकते हैं। यह एक आयाम से दूसरे आयाम में विकास की यात्रा है, इसमें तीव्रता के सात अलग-अलग स्तर होते हैं। आपकी ऊर्जा को मूलाधार से आज्ञा चक्र तक ले जाने के लिए कई तरह की आध्यात्मिक प्रक्रियाएं और साधनाएं हैं, लेकिन आज्ञा से सहस्रार तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। कोई भी एक खास तरीका नहीं है। आपको या तो छलांग लगानी पड़ती है या फिर आपको उस गड्ढे में गिरना पड़ता है, जो अथाह है, जिसका कोई तल नहीं होता। इसे ही ‘ऊपर की ओर गिरना‘ कहते हैं। योग में कहा जाता है कि जब तक आपमें ऊपर की ओर गिरने’ की ललक नहीं है, तब तक आप वहां पहुँच नहीं सकते।यही वजह है कि कई तथाकथित आध्यात्मिक लोग इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि शांति ही परम संभावना है, क्योंकि वे सभी आज्ञा में ही अटके पडे़ हैं। वास्तव में शांति परम संभावना नहीं है। आप आनंद में मग्न हो सकते हैं, इतने मग्न कि पूरा विश्व आपके अनुभव और समझ में एक मजाक जैसा लगने लगता है। जो चीजें दूसरों के लिए बड़ी गंभीर है, वह आप के लिए एक मजाक होती है।लोग अपने मन को छलांग के लिए तैयार करने में लंबे समय तक आज्ञा चक्र पर रुके रहते हैं। यही वजह है कि आध्यात्मिक परंपरा में गुरु-शिष्य के संबधों को महत्व दिया गया है। उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि जब आपको छलांग मारनी हो, तो आपको अपने गुरु पर अथाह विश्वास होना चाहिए। 99.9 फीसदी लोगों को इस विश्वास की जरूरत पड़ती है, नहीं तो वे छलांग मार ही नहीं सकते। यही वजह है कि गुरु-शिष्य के संबंधों पर इतना महत्व दिया गया है, क्योंकि बिना विश्वास कोई भी कूदने को तैयार नहीं होगा।
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