कैसे काम करते हैं ज्योतिषय उपाय
मित्रों अक्सर कुछ लोगों को कहते सुना है की भाग्य में जो लिखा है वो होकर रहेगा उसे कोई टाल नही सकता यानी हम कुछ करे या न करे होनी है तो वो होकर ही रहेगी तो फिर ज्योतिषय उपाय करने से क्या होगा क्या हमारी क़िस्मत वदल सकती हे। मित्रों हमारे ऋषियों-मुनियों ने अपने चिन्तन द्वारा यह प्रमाणित किया है कि मनुष्य के जीवन में कर्म का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्राणियों का सम्पूर्ण जीवन तथा मरणोत्तर जीवन कर्म-तन्तुओं से बंधा हुआ है। कर्म ही प्राणियों के जन्म, जरा, मरण तथा रोगादि विकारों का मूल है। दर्शन भी जन्म और दु:खों का हेतु कर्म को ही स्वीकार करता हैं। संसार के समस्त भूत, भविष्य एवं वर्तमान घटनाओं का सूत्रधार यह कर्म ही हैं। आस्तिक दर्शनों में तो यहाँ तक कहा गया है कि कर्म के भूभंगमात्र से ही सृष्टि एवं प्रलय होते हैं।
ग्रह, नक्षत्र, तारागणों की स्थिति, गति और विनाश भी कर्माधीन ही है। भगवान शंकर के घर में अन्नपूर्णा जी है तथापि भिक्षाटन करना पड़ता है। यह कर्म की ही विडम्बना हैं। जन्मान्तर में उपार्जित कर्त से ही जीवात्मा को शरीर धारणा करना पडता हैं। जन्म प्राप्त कर वह नित्य नये कर्मो को करता रहता है। जो उसके आगले जन्म का कारण बन जाते है। इस प्रकार कर्म से जीवात्मा की तथा जीवात्मा से ही पुन: कर्म की उत्पत्ति होती है। यदि पूर्वजन्म में कर्मो का सम्बन्ध न माना जाय तब नवजात शिशु के हस्त-पाद-ललाट आदि में शंख, चक्र, मत्स्य आदि चिन्ह कैसे आ जाते हैं। स्वकृत कर्म के कारण ही ग्रह-नक्षत्रज्ञदि जन्म कुण्डली में तत्तह स्थानों में अवस्थित होकर अनुकूल-प्रतिमूल फलदाता बन जाते है। तब जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कर्म एवं ग्रह-दोनों कैसे सुख-दु:ख के हेतु हो सकते है। उत्तर होगा-सुख दु:खात्मक फल का उपादानकारण कर्म है, जबकि ग्रह-नक्षत्रादि निमित्त कारण हैं।कर्मो ने अनुसार ही जातकों की ग्रहस्थितियाँ बनती हैं। कर्मो से कुछ कर्म दृढ़ होते है, कुछ अदृढ़ तथा कुछ दृढ़ा दृढ़। इन कर्मफलों की व्याख्या करते हुए आचार्य श्रीपति कहते है कि विंशोत्तरी आदि दशओं द्वारा दृढ़ कर्मफलों का ज्ञान, अष्टकवर्ण तथा गोचर द्वारा अदृढ़ कर्मफलों का ज्ञान होता है, जबकि नाभसादि योगो द्वारा दृढ़ादृढ़ कर्मफलों का ज्ञान फलित ज्योतिष द्वारा जाना जाता हैं।और उसके अनुसार उपाय जैसे हलवा बनाते समय चीनी या घी की मात्रा यदि कम हो या फिर पानी अधिक या कम हो तो उसे ठीक किया जा सकता है। पर हलवा पक जाने पर उसे फिर से सूजी में नहीं बदला जा सकता। मट्ठा यदि अधिक खट्टा हो, उसमें दूध या नमक मिलाकर पीने लायक बनाया जा सकता है। पर उसे वापस दूध में बदला नहीं जा सकता। प्रारब्ध कर्म बदले नहीं जा सकते। कुंडली या इसके ग्रहों की स्थिति को बदला नहीं जा सकता है। लेकिन हम ग्रह परिवर्तन, दशा और गोचर का लाभ उठा सकते हैं। ये सभी समय के साथ बदलते रहते हैं। और यहीं से हमारे कर्मों की भूमिका सामने आती है। हमारे वर्तमान जीवन के कर्म हमारे हाथ से बदले या प्रतिबंधित किये जा सकते हैं ! और यही एक जातक जहाँ एक कुशल ज्योतिषी से सही समय सलाह ले ज्योतिषी के मार्गदर्शन से फर्क पड़ सकता है।
ज्योतिष हमारी कुंडली के विभिन्न पहलुओं को एक-दूसरे के पिछले जन्म और उसमें संचित कर्म के साथ सह-संबंधित करता है। पिछले जन्म के कर्म हमारी जन्मकुंडली का निर्माण करते हैं और जन्म कुंडली हमारे पिछले जन्म कर्म अच्छे या बुरे का बहुत स्पष्ट और निश्चित प्रतिबिंब होता हैं !हम सकारात्मक रूप से रखे गए ग्रहों (सकारात्मक पूर्वा जन्म कर्म, या सकारात्मक पिछले जन्म कर्म) के लाभों का आनंद लेते हैं और कुंडली में नकारात्मक रूप से रखे गए ग्रहों (नकारात्मक पूर्व जन्म कर्म, या नकारात्मक पिछले जन्म कर्म) के लिए भुगतान करते हैं ! और हम तब तक आनंद लेते रहते हैं या तब तक पीड़ित रहते हैं जब तक कि पिछले जीवन से अर्जित शेष राशि समाप्त नहीं हो जाती। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, इसमें थोड़ा मोड़ है जिसे कर्म सुधार कहा जाता है। याद रखें ज्योतिषीय उपाय आपके जीवन से समस्याओं को पूरी तरह से दूर नहीं करेंगे, लेकिन आपको इसके प्रभाव से राहत दिला सकते हैं। हैरानी की बात है, ज्योतिष न केवल भाग्य के बारे में जीवन के पहलुओं की भविष्यवाणी करता है, बल्कि यह वास्तव में जीवन को सुधारनेक और परेशानियों का हल निकालने में भी मदद कर सकता है। बहुत से लोग ज्योतिष और ज्योतिषियों से इस समस्या को पूरी तरह से जड़ से मिटाने की उम्मीद करते हैं। दुर्भाग्य से, वे मनुष्य भी हैं और किसी व्यक्ति की नियति को बदल नहीं सकते हैं। वे केवल मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं, समस्याओं को ट्रैक कर सकते हैं, इसके प्रभाव का विश्लेषण कर सकते हैं और अपने जीवन में इसके प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें हल करने में मदद कर सकते हैं।
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