रविवार, 20 मई 2018

: क्यो जरूरी है ज्योतिष की जानकारी ?

: क्योजरूरी है ज्योतिष की जानकारी ?

कहते हैं कि जानकारी ही बचाव है। हम बहुत-सा ऐसा ज्ञान प्राप्त भी करते रहते हैं जिसकी जीवन में कोई उपयोगिता नहीं रहती है। व्यर्थ ही समय और पैसा कई अन्य बातों में खर्च करते रहते हैं। हम ऐसी भी बातें सुनते या देखते रहते हैं जिससे हमारे जीवन में नकारात्मकता का विकास होता है। किताबी और प्रायोगिक ज्ञान को आप थ्योरी और प्रैक्टिकल नॉलेज समझे। जीवन में दोनों ही तरह का ज्ञान जरूरी है। किसी भी विषय या क्षेत्र में कार्य करने से पहले उसकी जानकारी हासिल करना जरूरी है, फिर उसके व्यावहारिक या प्रोयोगिक पक्ष को समझना भी जरूरी है। यदि आप ‍जीवन में कोई-सा भी कार्य करने जा रहे हैं ‍तो पहले उसकी अच्छे से जानकारी एकत्रित कर लें। आप अपने ‍जीवन को सुंदर और सुखद बनाना चाहते हैं तो यह समझना जरूरी है कि हमारे लिए कौन-सा ज्ञान महत्वपूर्ण है और कौन-सा व्यर्थ। हालांकि बहुत से लोगों को यह जानकारी होगी ही। यदि है तो अपनी इस जानकारी को अपडेट करते रहें।ज्योतिष सीखना और ज्योतिष से काम करना कोई बुरी बात नही है.लेकिन ज्योतिष पर अंधविश्वास करके चलना और खुद के द्वारा अनुमान नही लगापाना बुरी बात है

.कोई भी कारण एक साथ नही बनता है,कारण समय से शुरु हो जाता है और समय आने पर कारण अपनी भूमिका अदा कर जाता है,जब कारण अपनी भूमिका अच्छे या बुरे प्रभाव मे अदा कर गया उसके बाद कारण को या कारक को या कारकत्व को दोष देना बेकार की बात ही मानी जायेगी। जन्म समय के ग्रह और गोचर के ग्रह आपसी सम्बन्ध से कारण पैदा करते है जो भी कारण पैदा होता है वह ग्रह राशि और भाव के अनुसार होता है,भाव हमारे अन्दर ही प्रकट होते है राशि का सीधा सा सिद्धान्त है कि वह एक क्षेत्र जिसके बारे मे भाव पैदा होगा उस भाव का फ़ल ग्रह के अनुसार मिलना जरूरी है। अच्छे भाव से अच्छे क्षेत्र से अगर ग्रह कारक को बल देगा तो कारकत्व अच्छा होगा और कार्य फ़ल की प्राप्ति भी अच्छी होगी लेकिन वही ग्रह बुरे भाव से बुरे क्षेत्र से बुरा फ़ल दे रहा होगा तो कारकत्व भी खराब होगा और फ़ल भी खराब मिलेगा।घटना का सही आकलन करना

घटना का सही आकलन करने के लिये ग्रह की चाल देखी जाती है कब ग्रह किस भाव से और राशि से घटना के लिये सामने आ रहा है उस समय जिस कारक के साथ घटना घटनी है उस कारक के पास कोई बल है कि नही अगर बल है तो ग्रह अपनी शक्ति से प्रभाव तो देगा लेकिन बल उसे कम या अधिक कर देगा। बुखार आने के लिये कारण पहले से शुरु हो जायेगा,इन्फ़ेक्सन भाव है और क्षेत्र उस भाव से जुडा हुआ है,जब इन्फ़ेक्सन वाला कारण बनेगा तो अन्दाज पहले से ही होने लगेगा,कही ऐसे क्षेत्र मे जाना पडेगा जहां इन्फ़ेक्सन वाले कारण मौजूद है,उस क्षेत्र मे जाकर उन्ही कारको को प्रयोग मे लाना पडेगा जिससे इन्फ़ेक्सन फ़ैले और जैसे ही इन्फ़ेक्सन शरीर मे घुसा बुखार का आना शुरु हो गया। अगर शरीर के अन्दर इन्फ़ेक्सन को रोकने के लिये जरूरी तत्व मौजूद है तो वह बुखार के कारको को समाप्त कर देंगे थोडा बहुत असर जरूर होगा लेकिन बुखार से बच जायेंगे। इतनी सी बात को समझने के लिये जन्म कुंडली में रोग के कारक ग्रह को देखेंगे,वह खून के कारक ग्रह मंगल के साथ कब मिल रहा है,अगर उस क्षेत्र मे राहु जो इन्फ़ेक्सन का कारक है अगर रोग के कारक ग्रह को बल दे रहा है तो खून का कारक ग्रह मंगल इन्फ़ेक्टेड होगा और रोग के होने के आसार समझ मे आजायेंगे,लेकिन उसी जगह पर अगर जीवन रक्षक ग्रह या सहायता देने वाले ग्रहों में गुरु या बुध या लगन पंचम नवम भाव का ग्रह मजबूती से अपनी सहायता दे रहा है वह किसी प्रकार के अन्य बन्धन मे नही है तो बुखार के कारण शरीर मे खून के अन्दर प्रवेश करेंगे उसी समय वह ग्रह का बल उन इन्फ़ेक्सन को समाप्त करने के लिये अपनी युति प्रदान करने लगेंगे,अगर कोई जीवन रक्षक ग्रह मंगल को बल दे रहा है तो बुखार के आते ही मंगल जो खून का कारक है वह डाक्टर के रूप मे उसी राहु को जो इन्फ़ेक्सन का कारक भी है और सही बल मिलने से दवाई का रूप भी ले लेगा तो समय पर सहायता मिल जायेगी और रोग से बचाव हो जायेगा। अगर नवम पंचम या लगन का ग्रह मजबूत नही है और रोग का कारक ग्रह अपने बल को कम भी नही कर सकता है और हमे पता है कि रोग का कारक ग्रह जरूर असर करेगा तो हम अपने अनुसार लगन पंचम या नवम के लिये बल देने वाले प्रयोग करना शुरु कर देंगे,यह बल भौतिक रूप मे इनके मालिको के लिये रत्नो का प्रयोग अथवा ग्रह से सम्बन्धित खाद्य पदार्थ के रूप मे अथवा वनस्पति के रूप मे होगी अथवा शरीर की सबसे बडी शक्ति ह्रदय जिव्हा और तालू के साथ होंठ तथा गले के एक विशेष बल के साथ प्रयोग करने पर मंत्र शक्ति का प्रयोग लेने लगेंगे,और इन ग्रहों का असर बढने लगेगा और कारक जो है वह अपना बुरा असर प्रदान नही कर पायेगा हम बच जायेंगे।पहले मानसिक गति बनती है

एक व्यक्ति का मन व्यथित है कि वह किसी भी काम मे सफ़ल नही हो पा रहा है वह जिस भी काम मे हाथ डालता है वह काम बेकार हो जाता है,उसकी रोजाना की जिन्दगी एक प्रकार से अस्त व्यस्त सी है और कभी कभी उसके मन मे आता है कि आत्म हत्या कर लेनी चाहिये। मन महिने में हर व्यक्ति का तीस घंटे के लिये व्यथित होता है वह अगर जाग्रत अवस्था मे है तो वह कारक के रूप मे और नींद की अवस्था मे है तो स्वप्न के रूप में व्यथा जरूर देता है। यह चन्द्रमा के द्वारा होता है चन्द्रमा जन्म के राहु के साथ गोचर के राहु के साथ और राहु जन्म के चन्द्रमा के साथ और गोचर के चन्द्रमा के जब जब अपनी युति को प्रदान करेगा तो मन मे व्यथा प्राप्त होगी,लेकिन गोचर का समय चन्द्रमा के लिये सवा दो घंटे में सत्रह मिनट के लिये ही होगा जबकि जन्म के चन्द्रमा के साथ राहु का गोचर पूरे चौवन महिने के लिये अपना असर देगा और इस साढे चार साल के अन्तराल मे जातक लगातार मानसिक व्यथा से जूझता रहेगा,इस व्यथा मे वह जो भी काम करेगा उसके लिये एक रास्ता नही दे पायेंगे हर काम मे दस अडचने उसके अपने मन के अनुसार मिलनी शुरु हो जायेंगी वह अपने विश्वास को अटल नही कर पायेगा। इस प्रकार से अगर एक साधारण व्यक्ति को कहा जाये कि वह ध्यान समाधि से अपने मन के ऊपर काबू रखे तो बेकार की बात है जब किसी काम खराब हो रहा हो तो वह काम की उलझन घर और बाहर की आफ़ते और खुद के जीवन मे अनियमिता के कारण कुछ भी करने मे असमर्थ सा हो जायेगा। इस समय मे देखा जाता है कि लोग अपने को चिन्ताओ के कारण नशे आदि मे ले जाते है,कुछ लोग अपने को भूल ही जाते है कि उनके पास कौन सी शक्ति है जो उन्हे उनके कारणो से बचा सकती है,शरीर मे कैमिकल बढने लगते है तरह तरह की बीमारी जैसे डायबटीज मोटापा झल्लाहट आदि जैसे कारण पैदा हो जाते है। इस मानसिक गति को सम्भालने के लिये अगर राहु का रूप तकनीकी रूप से मंगल के साथ जोड दिया जाये तो वह बडे प्रेम से दिये जाने वाले गलत प्रभाव को अच्छे प्रभाव मे बदलना शुरु कर देगा। मंगल के चार स्थान ही माने जाते है पहला धर्म स्थान मे दूसरा पुलिस थाने मे तीसरा अस्पताल मे और चौथा मानसिक बल में,इसके लिये जातक धर्म स्थान मे जाने लगे,उसके ऊपर जो आफ़ते आ रही है उनके लिये पुलिस की सहायता ले,अन्यथा अस्पताल मे जाकर मानसिक इलाज करवाये और भोजन मे बदलाव करे और मानसिक बल को बढाये,दो बाते हर आदमी आराम से कर सकता है,धर्म स्थान पर जाना और मानसिक बल को बढाकर समस्या का समाधान करना,धर्म स्थान मे जाना भी और धर्म से सम्बन्धित जानकारी अधिक लगाव करना केवल उन्ही बातो के लिये जरूरी है जो जितने समय धर्म स्थान मे रहे उतने समय के लिये मन धर्म मय हो जाता है,और जब मन के अन्दर रीफ़्रेस जैसी बाते पैदा हो जाती है तो मन के अन्दर बल बढना शुरु हो जाता है तरीके सामने आने लगते है और काम बनने लगते है,उसी तरह से मन की मजबूती के लिये या तो राहु के जाप करना,कारण राहु जो भी दिक्कत देता है वह भ्रम के कारण देता है जातक भ्रम के अन्दर फ़ंस जाता है कि वह अगर इस काम को करता है तो वह नही बना तो मेहनत और धन दोनो बरबाद हो जायेंगे या जो भी रिस्ता किया जा रहा है उसके अन्दर तो यह कमी है अथवा जो भी कारण मन के अन्दर लाया जा रहा है वह कारण असत्य है या अमुक ने ऐसा किया था तो ऐसा हुआ था अमुक ने ऐसा नही किया तो ऐसा नही हुआ था,अथवा अमुक ने अमुक तरह का कार्य किया था तो ऐसा हुआ था और अमुक ने अमुक के साथ ऐसा नही किया था तो ऐसा नही हुआ था। इस प्रकार के कारणो से लोगो की आस्था एक विशेष स्थान विशेष व्यक्ति की तरफ़ चली जाती है और इसके फ़ल मे यह प्राप्त होता है कि जब अमुक के साथ अमुक समस्या थी तो उस समय मे और उसके सामने के समय मे बहुत अन्तर है,अमुक का व्यवहार और सामने वाला व्यवहार भी अलग है,इस प्रकार से या तो जो भी बात सामने लाई जा रही है वह असत्य हो जायेगी या और अधिक अन्धकार मे जाना हो जायेगा। जब देखे कि भ्रम बहुत अधिक बढ गये है और किसी प्रकार से भ्रम दूर नही हो रहे है तो आराम से जब भ्रम अधिक परेशान करते है वह समय शाम का होता है,सूर्यास्त के बाद और रात के पहले प्रहर में कारण सूर्यास्त के बाद शरीर आराम की मुद्रा मे होता है और रात के पहले प्रहर के बाद सोने का समय शुरु होता है उस समय मे अगर राहु के मन्त्र का जाप शुरु कर दिया जाये और एक काल की अवधि मे होंठ जीभ तालू गले को मंत्र के अनुसार हिलाया जाये तो शरीर मे प्रवाहित रक्त के अन्दर के विषैले तत्व फ़िल्टर होने लगते है इस कारण से सिर के पीछे स्थापित मेडुला आबलम्ब गेटा के अन्दर विचित्र तरह की शक्ति का अर्जन होने लगता है शरीर एक प्रकार से उत्साह मे आजाता है। अगर खुद नही किया जा सके तो किसी विद्वान की संगति का लाभ लिया जाये वह लाभ केवल संकल्प लिया जा सकता है,कारण जो मानसिक व्यथा संकल्प के समय मे होती है वह व्यथा संकल्प के साथ उस विद्वान के पास जाती है अगर वह विद्वान अपनी गति से ह्र्दय के अन्दर सहानुभूति या दया के रूप मे मंत्र का जाप करता है या करवाता है तो आराम मिलने मे कोई सन्देह नही होता है। जब मंत्र का जाप करवाया जाता है या किया जाता है तो शरीर मे तनाव की मात्रा कम होती है और सबसे पहला फ़ल नींद के रूप मे मिलता है,जैसे ही नींद पूरी होने लगती है शरीर से चिन्ताओ का कारण समाप्त होने लगता है और कार्य सफ़ल होने लगते है,यही कारण डाक्टरो ने अपने अनुसार मानसिक इलाज के लिये अपनाया है किसी भी डाक्टर के पास चले जाइये वह सबसे पहले नींद की दवा को देता है,नींद की दवा के साथ मानसिक बल बढाने के लिये भूख को खोलने के लिये दवा देता है,लेकिन यह कारण सामयिक तो बनता है जैसे ही शरीर से उस दवा के अनुसार साल्ट कम होते है फ़िर से वही कारण पैदा होने लगते है या तो उन्ही साल्ट्स के लिये आदी होना पडता है या फ़िर उन साल्ट को कम करने के लिये दूसरे साल्ट्स को प्रयोग मे लाना पडता है।

मानसिक व्यथा के शुरु होने से पहले ही यानी अठारह महिने पहले ही कारण बनने लगते है,अगर ज्योतिष की जानकारी है या ज्योतिषी से सामयिक परामर्श लिया जाता है तो कारण बनते ही उनका इलाज शुरु हो जाता है और समस्या के आने से पहले ही इलाज अगर हो जाता है तो समस्या अपने आप ही समाप्त हो जाती है,जैसे किसी से कहासुनी हो गयी और पता है कि सामने वाला किसी भी तरह से बदला ले सकता है या कहासुनी के बदले शरीर को हानि दे सकता है समय भी विपरीत है तो पहले से ही या तो सामने वाले से क्षमा याचना करना सही होता है फ़िर भी नही मानता है तो कानूनी सहायता के लिये या अदालती मामले के लिये पहले से ही अगर जान माल की सुरक्षा की गुहार की गयी है,या किसी केश मे फ़ंसने से पहले ही अग्रिम जमानत की कार्यवाही कर ली गयी है तो बचाव हो सकता है।

ज्योतिष भी राहु है

कहा जाता है कि लोहा हमेशा लोहे को काटता है उसी प्रकार से जो भी कारण जीवन मे पैदा होते है वह राहु के द्वारा ही पैदा होते है,राहु अगर तकनीकी पहलू मंगल की सहायता से दे दिया जाता है वह भी केन्द्र त्रिकोण मे तो राहु मंगल बजाय खराब असर देने के और अधिक बढोत्तरी देने लग जायेंगे और त्रिक भाव या पणफ़र भाव में राहु मंगल की युति को ले लिया गया तो समस्या बजाय घटने के और भी बढने लगेगी। राहु की सीमा नही है कितना कष्ट दे सकता है या कितनी ऊंचाई पर ले जा सकता है,जैसे हाथी का भरोसा नही है कि वह कब बल पूर्वक अच्छे काम करता है और कब बिगडने पर गली की गली साफ़ करने के लिये अपनी शक्ति को प्रयोग मे ला सकता है। राहु शुक्र की युति मिलने का समय आता है व्यक्ति के अन्दर प्रेम रोग का भूत सवार हो जाता है उसे अपनी दुनिया समझ मे ही नही आती है,अगर उसी युति को मंगल की सहायता से मिला लिया जाये तो वह भूत बजाय बिगाडने के ऊंची ऊंची पोजीसन भी दिलवा सकता है जितना है उससे करोडों गुना बढा भी सकता है। राहु गुरु की युति आती है आम आदमी भी अपने को शहंशाह समझने लगता है उसे लगता है कि उसके सामने उसकी बुद्धि के जैसा कोई नही है वह तर्क वितर्क से अपने प्रभाव देना शुरु कर देता है उसे एक गंदगी मे भी सोना नजर आने लगता है वह धर्म और शिक्षा के अलावा रिस्ते आदि मे अपनी सीमा को तादात से अधिक बढाने लगता है अगर साथ मे मंगल को लिया गया है तो वह इन्ही कारणो मे तकनीकी कारण देखने के बाद उस क्षेत्र मे अपने को नाम और यश के रास्ते ले जायेगा और मंगल की युति नही ली है या केवल शुक्र का सहारा लिया है तो धन और वैभव मे तो आगे बढ जायेगा सुरा सुन्दरी की प्राप्ति तो हो जायेगी लेकिन जैसे ही राहु गुरु का असर समाप्त हुआ उसके अपने ही लोग उसे ले डूबेंगे।

ज्योतिष समय की जानकारी देती है

सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त और सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक जो भी देश काल और परिस्थिति के अनुसार प्रभाव होते है ज्योतिष जानकारी देती है।कार्य और शरीर की समय सीमा के लिये ज्योतिष लाभदायी है। एक ग्रह के तीन सौ साठ कारण और एक भाव के तीस कारण एक राशि के एक सौ पचास कारण यह सब अगर देश काल और परिस्थिति से समझ मे आजाते है तो व्यक्ति दुख मे भी सुख का कारण निकाल सकता है और सुख मे भी दुख पैदा कर सकता है,बाकी के लिये एक ही बात कही जा सकती है-"खाना पीना सोना दुनिया मे तीन तत्व,एक दिन मर जाओगे धरि छाती पर हत्थ"।

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