रविवार, 8 जुलाई 2018

कलम से


जाने कौन हाथ उठाता है
दुआ में
के जब भी देह
सांस लेती है
दुआ भर जाती है...
हवाओं में
न सूखे पत्ते है
न मिट्टी
लुभान की दुनिया
सिमटी है
कानों में पड़ते हर शब्द
जैसे नात बन गए है
सरकार की दुनिया लगती है
मुझमें मेरा मैं न रहकर
ये मौन में महक रहती है
जाने कौन हाथ उठाता है
दुआ में
के जब भी देह
सांस लेती है
दुआ भर जाती है...
हवाओं में
न सूखे पत्ते है
न मिट्टी
लुभान की दुनिया
सिमटी है
कानों में पड़ते हर शब्द
जैसे नात बन गए है
सरकार की दुनिया लगती है
मुझमें मेरा मैं न रहकर
ये मौन में महक रहती है

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