गुरु ओर वुघ
लालकिताब में गुरु को सूर्य से भी अधिक महत्व दिया गया है,सूर्य सौर मंडल के ग्रहों का राजा है,तो गुरु को देवताऒ का का गुरु कहा गया है
,भारतीय परम्परा के शासक भी गुरु के शासन में रहा करते थे,ज्योतिष के अनुसार ग्रहों को कालपुरुष के नौ अंगों का रूप बताया गया है,इस अंग विभाजन में गुरु को शरीर की गर्दन का प्रतिनिधि माना जाता है,कालपुरुष ने गर्दन को गुरु के रूप में अपने हाथ में पकड रखा हो,फ़िर अन्य ग्रहों की बिसात ही क्या रह जाती है,लालकिताब ने गुरु को आकाश का रूप दिया है,जिसका कोई आदि और अन्त नही है,गुरु ही भौतिक और आध्यात्मिक जगत का विकास करता है,उसके ऊपर अपनी निगरानी रखता है,ज्योतिष के अनुसार गुरु को धनु और मीन राशि का स्वामी बताया है,लालकिताब के अनुसार गुरु को नवें और बारहवें भाव का स्वामी बताया गया है,लालकिताब के अनुसार ही गुरु को भचक्र की बारह राशियों के अनुसार बारहवें भाव को राहु और गुरु की साझी गद्दी बताया गया है,बारहवे भाव में गुरु और राहु अगर टकराते है,तो राहु गुरु पर भारी पडता है,और गुरु के साथ राहु के भारी पडने के कारण जो गुर संसार को ज्ञान बांटने वाला है,वह एक साधारण सा मनुष्य बन कर अपना जीवन चलाता है,गुरु के भी मित्र और शत्रु होते है,गुरु जो आध्यात्मिक है ,उसे भौतिक कारणों को ही गौढ मानने वाले लोग जो शुक्र के अनुयायी होते है,उनसे नही पटती है,और अक्सर आध्यात्मिक व्यक्ति की भौतिक कारणों को ही गौढ मानने वाले लोगों के साथ नही बनती है,इसी को शत्रुता कहते है,बुध जो वाणी का राजा है,और अपने भाव को वाणी के द्वारा ही प्रकट करने की योग्यता रखता है,की आध्यात्मिक सिफ़्त रखने वाले गुरु से नही पटती है,लेकिन वही बुध अगर किसी प्रकार से गुरु के मुंह पर विराजमान होता है,जो गुरु के मुखारबिन्दु से आध्यात्मिक बातों का निकलना चालू हो जाता है,यह बात बुध के कुन्डली के दूसरे भाव में विराजमान होने पर ही मिलती है,बुध जब पंचम में होता है,तो भी गुरु के घर पर जाकर शिक्षात्मक बातों को प्रसारित करने में अपना मानस रखता है,और गुरु का मित्र बन जाता है,नवें भाव में गुरु का मित्र केवल आध्यात्मिक बातों को प्रसारित करने के लिये भौतिक साधनो के द्वारा या गाने बजाने के साधनो के द्वारा कीर्तन भजन और अन्य साधनो मे अपनी गति गुरु को देकर गुरु का सहायक बन जाता है,ग्यारहवें भाव में जाकर वह गुरु के प्रति वफ़ादार दोस्त की भूमिका अदा करता है,इस लिये वह हर तरह से गुरु का शत्रु नही रहता है,जबकि वैदिक ज्योतिष में गुरु का शत्रु ही बुध को माना गया है.
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