मित्रों आज एक और बुरे जो की बात करते हैं जिसे हम गुरु चांडाल योग के नाम से पुकारते हैंराहु-गुरु की युति या दृष्टि संबंध से एक खास प्रकार का योग जन्म लेता है, जिसे गुरु-चांडाल योग के नाम से जाना जाता है।
इस संबंध की सबसे बड़ी खराबी ये है कि गुरु तो देव गुरु हैं तथा उनका संबंध एक महान असुर राहु से बनने के कारण वे स्वयं अपनी आत्मरक्षा करने में रत हो जाते हैं। गुरु की इस परिस्थिति का लाभ असुर राहु खूब उठाता है तथा कदम-कदम पर गुरु को पथभ्रष्ट करने की कोशिश करता है।
वह गुरु के विरुद्ध षड़यंत्र रचता है, उन्हें अनैतिक व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करता है। पराई स्त्रियों में मन लगवाता, चारित्रिक पतन के बीज बो देता है। इसके अलावा ऐसा राहु चोरी, जुआ, सट्टा, अनैतिक तरीके से धन अर्जन की प्रवृत्ति, मद्यपान सहित हिंसक व्यवहार आदि प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है।
कुल मिलाकर यह संयोग गुरु की सभी सद्वृत्तियों के समापन के साथ दुष्प्रवृत्तियों का जन्मदाता सिद्ध होता है। इसके साथ ऐसा चाडाल योग जातक को कदम-कदम पर चालबाजी की प्रवृत्ति अपनाने को विवश करता है। जिस कारण जातक खुद को पतन की पराकाष्ठा पर ले जाता है। मित्रों गुरु oxygen है और राहु Co2 जिससे गुरु कमजोर हो जाता है और गुरु के फल कम हो जाते है !
गुरु चांडाल का यह योग प्रत्येक जातक को अशुभ प्रभाव नहीं देता बल्कि इस योग के प्रभाव में आने वाला जातक बहुत अच्छे चरित्र का तथा उत्तम मानवीय गुणों के स्वामी भी होते है !
गुरु चाण्डाल योग का फलादेश करने से पहले कुंडली में गुरु व् राहु के स्वभावhttps://youtu.be/5QlK8Oa_lmk को और वह किस भाव में है जान लेना आवश्यक है !
बुध अस्त में जन्मा जातक कभी भी राहु वाले खेल न खेले तो बहुत सुखी रहता है,राहु का सम्बन्ध मनोरंजन और सिनेमा से भी है,राहु वाहन का कारक भी है राहु को हवाई जहाज के काम,और अंतरिक्ष में जाने के कार्य भी पसंद है,अगर किसी प्रकार से राहु और गुरु का आपसी सम्बन्ध १२ भाव में सही तरीके से होता है,और केतु सही है,तो जातक को पायलेट की नौकरी करनी पडती है,लेकिन मंगल साथ नही है तो जातक बजाय पायलेट बनने के और जिन्दा आदमियों को दूर पहुंचाने के पंडिताई करने लगता है,और मरी हुयी आत्माओं को क्रिया कर्म का काम करने के बाद स्वर्ग में पहुंचाने का काम भी हो जाता है। इसलिये बुध अस्त वाले को लाटरी सट्टा जुआ शेयर आदि से दूर रहकर ही अपना जीवन मेहनत वाले कामों को करके बिताना ठीक रहता है।जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है, उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। लेकिन ऐसा सदा नहीं होता जब गुरु स्वयं कमजोर, निर्बल, अशुभ भावेश अथवा अकारक हो जाए तभी राहु के साथ उसकी युति चांडाल योग का निर्माण करती है। क्योंकि राहु चांडाल जाति, स्वभाव यानि कि नकारात्मक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता हैयदि राहु बलशाली हुए तो शिष्य, गुरू के कार्य को अपना बना कर प्रस्तुत करते हैं या गुरू के ही सिद्धांतों का ही खण्डन करते हैं। बहुत से मामलों में शिष्यों की उपस्थिति में ही गुरू का अपमान होता है और शिष्य चुप रहते हैं।गुरू चाण्डाल योग का एकदम उल्टा तब देखने को मिलता है जब गुरू और राहु एक दूसरे से सप्तम भाव में हो और गुरू के साथ केतु स्थित हों। बृहस्पति के प्रभावों को पराकाष्ठा तक पहुँचाने में केतु सर्वश्रेष्ठ हैं। केतु त्याग चाहते हैं, कदाचित बाद में वृत्तियों का त्याग भी देखने को मिलता है। केतु भोग-विलासिता से दूर बुद्धि विलास या मानसिक विलासिता के पक्षधर हैं और गुरू को, गुरू से युति के कारण अपने जीवन में श्रेष्ठ गुरू या श्रेष्ठ शिष्य पाने के अधिकार दिलाते हैं। इनको जीवन में श्रेय भी मिलता है और गुरू या शिष्य उनको आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान देते हैं। यहां शिष्य ही सब कुछ हो जाना चाहते हैं और कालान्तर में गुरू का नाम भी नहीं लेना चाहते। यदि राहु बहुत शक्तिशाली नहीं हुए परन्तु गुरू से युति है तो इससे कुछ हीन स्थिति नजर में आती है। इसमें अधीनस्थ अपने अधिकारी का मान नहीं करते। गुरू-शिष्य में विवाद मिलते हैं। शोध सामग्री की चोरी या उसके प्रयोग के उदाहरण मिलते हैं, धोखा-फरेब यहां खूब देखने को मिलेगा परन्तु राहु और गुरू युति में यदि गुरू बलवान हुए तो गुरू अत्यधिक समर्थ सिद्ध होते हैं और शिष्यों को मार्गदर्शन देकर उनसे बहुत बडे़ कार्य या शोध करवाने में समर्थ हो जाते हैं।शिष्य भी यदि कोई ऎसा अनुसंधान करते हैं जिनके अन्तर्गत गुरू के द्वारा दिये गये सिद्धान्तों में ही शोधन सम्भव हो जाए तो वे गुरू की आज्ञा लेते हैं या गुरू के आशीर्वाद से ऎसा करते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है और मेरा मानना है कि ऎसी स्थिति में उसे गुरू चाण्डाल योग नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि किसी अन्य योग का नाम दिया जा सकता है परन्तु उस सीमा रेखा को पहचानना बहुत कठिन कार्य है जब गुरू चाण्डाल योग में राहु का प्रभाव कम हो जाता है और गुरू का प्रभाव बढ़ने लगता है। राहु अत्यन्त शक्तिशाली हैं और इनका नैसर्गिक बल सर्वाधिक है तथा बहुत कम प्रतिशत में गुरू का प्रभाव राहु के प्रभाव को कम कर पाता है। इस योग का सर्वाधिक असर उन मामलों मेें देखा जा सकता है जब दो अन्य भावों में बैठे हुए राहु और गुरू एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। मित्रों अगर आपकी कुंडली में भी ऐसा योग है या दोष है तब आप अपनी कुंडली किसी अच्छे एस्ट्रोलॉजर को दिखाकर उपाय करें या आप हम से भी संपर्क कर सकते हैं देखा देखी अपने आप पढ़कर उपाय मत करें इससे आपको लाभ की बजाय हानी भी हो सकती है मित्रोंजिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं और तस्वीर के दो रुक उसी तरह कोई भी हो अच्छा या बुरा हो सकता है इसीलिए आप अपनी कुंडली अवश्य दिखाएं और क्या देखें कि यह योग आपको किस तरह का फल दे रहा है उसी तरह से उपाय करें
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