राहु एक छाया ग्रह है,इसकी परिमाप नही है। आसमान की ऊंचाइयां है,केवल नीले रंग में आभासित होता है लेकिन इसका कोई ठिकाना नही है कि यह है कहां तक है शाम और सुबह का इसका समय है,शाम को इसका समय नकारात्मक होता है और सुबह का समय इसका सकरात्मक होता है। ब्रह्म में इसे विराट रूप मिला है,महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप को प्रदर्शित किया था। वैसे राहु के बारे में बहुत सी मिथिहासिक कहानिया मिलती है,एक कहानी समुद्र मंथन के समय की मिलती है कि देवताओं और दैत्यों ने अमृत प्राप्त करने के लिये समुद्र मंथन किया था,देवताओं के बीच में बैठ कर राहु ने चालाकी से अमृत का पान कर लिया कर लिया था लेकिन सूर्य और चन्द्र ने उसकी चालाकी को देखकर भगवान विष्णु से शिकायत कर दी थी,उन्होने अपने सुदर्शन चक्र से इसके सिर को धड से अलग कर दिया था,लेकिन अमृत गले से नीचे उतरने के कारण धड और सिर अमर हो गये थे,धड को केतु और सिर को राहु नाम से जाना जाता है,तब से सूर्य और चन्द्र के साथ राहु केतु की दुश्मनी मानी जाती है,और समय समय पर यह दोनो सूर्य और चन्द्र को ग्रहण दिया करते है। इसके साथ ही राहु का प्रभाव माता पिता और बच्चे पर अधिक पडता है। राहु के लिये कहा जाता है कि वह आकाशीय पिंड नही है,केवल चन्द्रमा का उत्तरी कटाव बिन्दु है,जिसे पश्चिमी लोग North Node के नाम से जानते है। भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को अन्य ग्रहों के समान महत्व दिया है,पाराशर ने राहो तमो अर्थात अंधकार युक्त ग्रह की परिभाषा दी है,उनके अनुसार धूम्रवर्णी जैसा नीलवर्णी राहु वनचर भयंकर वात प्रकृति प्रधान तथा बुद्धिमान होता है,नीलकंठ ने राहु का स्वरूप शनि जैसा बताया है। शनि जडता देता है,राहु नशा देता है,और केतु नकारात्मक प्रभाव देता है,बिना राहु के केतु पूर्ण नही है और बिना केतु के राहु भी पूर्ण नही है। राहु केतु के लिये कोई राशि नही बताई गयी है केवल नक्षत्रों का आधिपत्य दिया गया है। नारायण भट्ट ने कन्या राशि को राहु के लिये बताया है,उनके अनुसार राहु मिथुन रासि में उच्च का और धनु राशि में नीच का होता है। राहु के नक्षत्रों में आर्द्रा स्वाति और शभिषा हैं। राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है,यह सूर्य से १९००० योजन नीचे है,तथा सूर्य के चारों ओर नक्षत्र की भांति घूमता रहता है,शरीर में इसे पेट और पिंडलियों में इसे स्थान मिला है,जब जातक विपरीत कर्म करने लगता है,जो राहु उसे सुधारने के लिये अनिद्रा पेट के रोग दिमागी रोग पागलपन आदि भयंकर रोग देता है,जिस प्रकार से अपने निदनीय कर्मों से दूसरे को पीडा जातक पहुचाता है,उसी प्रकार से राहु जातक को दुख देने के लिये अपने रोग प्रदान करता है। अगर जातक के कर्म शुभ होते है तो यह पलक झपकते ही ऊचाइयों तक पहुंचा देता है,अतुलित धन सम्पत्ति और राजकाज देने में इसे देर नही लगती है,इसलिये अगर जीवन के अन्दर कोई गलत काम हो गये हों तो राहु की दशा शुरु होने से पहले ही राहु की शरण में चले जाना चाहिये। राहु की पूजा पाठ जप दान आदि द्वारा यह प्रसन्न होता है,गोमेद इसकी इसकी मणि है,तथा पूर्णिमा इसका दिन है,अभ्रम इसकी धातु है।कुंडली के बारह भावों में राहु का स्थान
पहले भाव मे राहु शत्रुनाशक होता है लेकिन जातक को अकेला बैठा रहने और काम के अन्दर मन नही लगने की बात भी देता है,सिर के अन्दर अनगिनत विचार आते और जाते रहते है,जब भी जातक को कोई कष्ट या चिन्ता होती है तो वह फ़ौरन घबडा जाता है,राहु के सिर पर होने के कारण उसे घर के अन्दर अपने जीवन साथी के द्वारा किये गये कृत्य समझ में नही आते है,वह दिमागी हलचल के बीच घर की स्थिति को समझ नही पाता है और अपने अनुसार कार्य करने के उपरान्त उसके जीवन साथी के द्वारा पिता और माता का अपमान किया जाता है जातक का पूजा पाठ में मन नही लगता है और किसी न किसी प्रकार के नशे का वह आदी हो जाता है। अक्सर वह सिर दर्द का मरीज होता है और आंखों की रोशनी भी उसकी समय से पहले ही कम हो जाती है,उसे प्रेम प्यार के मामले में एक प्रकार का नशा चढता है,वह जल्दी से धन कमाने वाले मामलों में अपने को जब भी ले जाता है तो उसके शरीर में एक विचित्र सी हलचल हुआ करती है। अक्सर उसकी संतान कम ही होती है और अगर अधिक होती है तो कम से कम एक संतान उसकी अवैद्य जरूर होती है चाहे वह किसी प्रकार से किसी की संतान को पालने के रूप में हो या सहायता करने के रूप में हो। जातक दिमाग का रोगी अवश्य होता है कब क्या करेगा किसी को पता नही होता है घर में या बाहर जब भी उसे कोई क्लेश होता है तो सिर को पटकने की आदत बन जाती है,उसका जीवन साथी उसकी इस प्रकार की दशा से लाभ उठाता है और अपनी चालाकी से जातक को अपने कामो से अन्धेरे में रखता है। लगन का राहु व्यक्ति को स्वार्थी बना देता है और अपना काम बनता भाड में जाये जनता के जैसी आदत का बन जाता है जब तक खुद का स्वार्थ पूरा नही होता है तब तक को पैरो में पडे रहने की आदत होती है लेकिन जैसे ही अपना काम पूरा हुआ लगन के राहु वाले का पता नही चलता है कि वह कहां गया। अक्सर इस प्रकार के राहु वाले की सिफ़्त नौकर की होती है वह या तो नौकर बन कर रहता है या नौकरी वाले काम करने के बाद अपने जीवन को पालने के काम करता है लगन का राहु वाला व्यक्ति झूठ बोलने वाला भी होता है और कपट आदि उसके अन्दर भरे होते है किसी भी काम को निकालने के लिये वह अपने को किसी भी रूप में सामने कर सकता है और भेद लेने के बाद खुद तो बाहर होजाता है और दूसरे को फ़ंसाकर चला जाता है।दूसरे भाव में विराजमान राहु अपने ही कुटुम्ब का नाशक होता है धन के मामले में जातक को दिखाई तो बहुत देता है लेकिन सामने कुछ नही होता है उसके अन्दर शराब आदि नशे करने की आदत होती है और अपने को बहुत ही बलवान समझने के कारण अक्सर भले स्थानों में उसकी बे इज्जती होती है। धन भाव में होने के कारण पिता के परिवार को जल्द से जल्द समाप्त करने वाला होता है,और माता के लिये अक्सर जान का दुश्मन ही बना रहता है,घर के पानी वाले साधनों में भी राहु अपना असर देता है और किसी प्रकार के कैमिकल इफ़ेक्ट से घर के पानी को दूषित करता है,वाहन के लिये भी यह राहु खतरनाक ही होता है,अक्सर इस भाव का जातक नशे में गाडी चलाने का आदी होता है,और नशे में गाडी चलाने के कारण या तो अपने शरीर को तोडता है अथवा किसी अन्य को अपने नशे की आदतों के कारण जान से हाथ तक धोना पडता है,इस स्थान के राहु वाले से अपने स्वसुर से कभी नही बनती है,और बनती भी है तो केवल स्वार्थ की पूर्ति के लिये ही बनती है,जीवन साथी का कोई ठिकाना नही होता है कब दुनियां से कूच कर जाये या अपने मायके जाकर बैठ जाये,इसके अलावा अगर वह पुरुष जातक है तो उसका भी ठिकाना नही होता है कि कब और कहां वह अपने शरीर को नष्ट कर लेगा या किसी अन्य बेकार की स्त्री के साथ अपना सम्बन्ध बनाकर बैठ जायेगा। दूसरे भाव के जातक झूठ बोलने में बहुत ही माहिर होते है उनकी बातों में लगभग झूठ ही मिलती है,वे अपने अपमान जानजोखिम के कामो को और खोजबीन करने वाले कामों कभी भी किसी प्रकार की भी झूठ बोल सकते है,अधिक चालाकी और ठगी करने की आदत होती है,तथा अगर वह मोबाइल आदि अधिक प्रयोग करता है तो उसके मोबाइल अधिकतर खोते ही रहते है,वह किसी भी कमन्यूकेशन के काम को पलक झपकते ही बरबाद कर सकता है,अथवा वह अपने साले भान्जे या मामा के घर के लिये आफ़त भी बन सकता है,जो भी इस प्रकार के जातक से चलकर दुश्मनी लेता है इस भाव के राहु वाला जातक उसे किसी न किसी बहाने ठिकाने लगा ही देता है।
तीसरे भाव के राहु वाला जातक विवेक से काम लेने वाला होता है किसी भी कार्य को वह अपने हठ से पूरा करने की क्षमता रखता है उसे गाने बजाने और संगीत के साधन रखने का बडा शौक होता है अक्सर उसे टीवी या फ़िल्म देखने का बडा शौक होता है उसे परफ़्यूम लगाने का और घर के अन्दर खुशबू रखने का भी शौक होता है,जहरीली दवाइयों को हजम करने की भी आदत होती है,अधिक मिर्च मसाले खाना नानवेज की तरफ़ मन का जाना आदि मिलता है,अक्सर उससे मिलने वाले लोग कम्पयूटर या इसी प्रकार की शिक्षा वाले लोग होते है जो लोग फ़िल्म लाइन में अपना कैरियर संगीन सीन के अन्दर बनाते है वे राहु के तीसरे भाव के कारण ही ऐसा कर पाते है,उनके अन्दर जोखिम लेने की बडी आदत होती है,और उनका मिलान भी इसी प्रकार के लोगों से होता है घर की या बाहर की एन्टिक चीजें बेचने और उन्हे कलेक्ट करने की भी आदत होती है,जब भी कोई चान्स मिलता है तो दोस्ती के अन्दर वे अपने को प्रभावित करने मे नही चूकते हैं। उनका काम दवाइयो का या नशे वाले प्रोडक्ट का अथवा मल्टी मार्केटिंग का होता है,अक्सर इस भाव के राहु का प्रभाव शिक्षात्मक रूप में अधिक होता है,जातक लोगों को सिखाने का काम आसानी से कर सकता है।
आगे लिखा जा रहा है................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें