कभी घी घणा कभी मुट्ठी भर चना
घी का रूप दूध से बनता है पहले दूध को जमाया जाता है फ़िर दही बनाकर उसे बिलोकर दूध का सार रूप घी को निकाला जाता है.चौथे भाव का रूप दूध से है तो दूध का बदला हुआ रूप नवे भाव से है और नवे भाव का सार घी रूप मे बारहवा भाव है,बारहवा भाव हकीकत मे राहु से जोड कर देखा जाता है और राहु जो अद्रश्य रूप से अपनी शक्ति को रखता है कहने को तो घी तरल पदार्थ है लेकिन वह भोजन मे लेने से शरीर को तन्दुरुस्त बनाता है,चौथे भाव के राहु की नजर पहले तो अष्टम पर भी होती है फ़िर नवी नजर बारहवे भाव पर भी होती है इस भाव का राहु अगर राजी हो गया तो घी ही पैदा करता जाता है और राजी नही है तो वह छठे भाव से कडी मेहनत करवाने के बाद केवल मुट्ठी भर चने खिलाकर ही पेट पालने के लिये अपनी शक्ति को दे पाता है वैसे चना भी शनि के लिये कहा जाता है राहु शनि जब आमने सामने हो जाते है तो दसवे भाव का शनि जातक को कडी मेहनत के बाद भी मेहनत का फ़ल सही नही दे पाता है.
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