रविवार, 21 मई 2017

राज योग राजयोग भी एक ऐसा पक्ष है जहाँ स्वयं ज्योतिष वर्ग भी विभाजित है। कारण एक ही है “मैं नहीं मानता”। तो हम भी कहाँ मना रहे हैं। केवल अपनी बात कहेंगे। वास्तविकता में परख करें।राजयोग के सही मायने क्या हैं! राजयोग है राजा के समान लाभ करने वाला योग – अगर भौतिक जीवन में देखें तो। अब यहां दो बातें और हैं – पहली कि योग फलेगा कितना और दूसरी कि फलीभूत कब होगाजहाँ तक सवाल है फलने का – तो स्पष्ट उत्तर है संबंधित दशाओं में। अगर संबंधित दशा नहीं आई तो योग धरा का धरा रह जाएगाएक उदाहरण से समझना सरल होगा – एक मजदूर का अपना एक कमरा बना लेना राजयोग है, आम आय के व्यक्ति का अपना सुख-सुविधाओं से लैस मकान बना लेना भी रजयोग है। पर एक धनाड्य का बंगला खरीद लेना भी एक साधारण बात हो सकती है। केवल फल ही नहीं संदर्भ समझना भी आवश्यक है। आखिरकार हमारा यह जन्म है तो पूर्वजन्मों के कर्मों की नींव पर ही बना हुआ। राज योग दो शब्दों से मिलकर बना है राज और योग. ज्योतिष की दृष्टि में राजयोग का अर्थ है ऐसा योग है जो राजा के समान सुख प्रदान करे. हम सभी जीवन में सुख की कामना करते हैं परंतु सभी के भाग्य में सुख नहीं लिखा होता है. कुण्डली में ग्रहों एवं योगों की स्थिति पर सुख दुख निर्भर होता है. राज योग भी इन्हीं योगों में से है जो जीवन को सुखी बनाता है. राजयोग कोई विशिष्ट योग नहीं है यह कुण्डली में बनने वाले कई योगों का प्रतिफल है. कुण्डली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है तो उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है. इस ग्रह के आंकलन के लिए लग्न के अनुसार ग्रहों की शुभता, अशुभता, कारक, अकारक, विशेष योगकारक ग्रहो को देखना होता है साथ ही ग्रहों की नैसर्गिक शुभता/अशुभता का ध्यान रखना होता है. राज योग के लिए केन्द्र स्थान में उच्च ग्रहों की उपस्थिति, भाग्य स्थान पर उच्च का शुक्र, नवमेश एवं दशमेश का सम्बन्ध बहुत महत्वपूर्ण होता है. कुण्डली में अगर कोई ग्रह अपनी नीच राशि में मौजूद है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह फलदायी नहीं होगा क्योंकि जहां नीच राशि में ग्रह की स्थिति होगी वहीं से सप्तम उस ग्रह की दृष्टि अपने स्थान पर रहेगी. गौर करने के बात यह है कि इसका क्या फल होगा यह अन्य ग्रहों से सम्बन्ध पर निर्भर करेगा. कुण्डली में राजयोग किसी ग्रह विशेष से नहीं बनता है बल्कि इसमें सभी ग्रहों की भूमिका होती है. कई बार जब आप ज्योतिषी को कुंडली दिखाने जाते हैं तब “राजयोग“ शब्द उनके मुँह से सुनाई देता है. कुंडली की भाषा तो ज्योतिषी ही सही से समझ सकता है लेकिन इस शब्द से राजा जैसा योग तो समझ में आता ही है. प्राचीन मुनियों ने अनगिनत योगों की व्याख्या जन्म कुंडली में की है. उनमें से ही एक योग राजयोग है – राज + योग. राज देने वाला योग. इस योग के बनने में ग्रहों की युति शामिल होती है. जन्म कुंडली में केन्द्र स्थान को विष्णु स्थान कहा गया है और त्रिकोण भावों को लक्ष्मी स्थान कहा गया है. जब केन्द्र व त्रिकोण स्वामियों का कुंडली में परस्पर संबंध बनता है तब यह राजयोग बनता है. यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह एक साथ त्रिकोण व केन्द्र का स्वामी है तब उसे योगकारी ग्रह कहा जाता है जो व्यक्ति को अपनी दशा/अन्तर्दशा में अच्छे फल प्रदान करता है यदि वह शुभ स्थिति में हो तो. आगे जारी

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