आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें07597718725-०9414481324 नोट रत्नों का हमारा wholesale का कारोबार है असली और लैव टैस्ट रत्न भी मंगवा सकते है
गुरुवार, 11 मई 2017
ज्योतिष से वैदिक काल से ज्योतिष का प्रचलन रहा है समय की पहिचान बिना ज्योतिष के ज्ञान के नही हो सकती है।आज का विज्ञान प्राचीन ज्योतिष का लघु शिष्य है और आयुर्वेद ज्योतिष का चचेरा भाई। ज्योतिष एक रितंभरा प्रज्ञा है। ज्योतिष का इतिहास मानव सभ्यता का इतिहास है जिसका आधार पूर्णतः गणितीय एवं वैज्ञानिक है। हमारे मनिषियों ने इस “पराविज्ञान” के प्रत्येक पक्ष का गहनतम अध्ययन किया है। ज्योतिष शास्त्र एक गुढ़ वैज्ञानिक चिंतन है। यह ग्रह-नक्षत्रों का चिंतन मात्र नहीं, बल्कि भविष्य को टटोलकर अपने अनुकूल बनाने की चेस्टा है। वस्तुतः ज्योतिष भविष्य की तलाश है।इसी प्रकार से आसमानी गह भी ज्योतिष से ही कालान्तर के लगातार ज्ञान को प्राप्त करने के कारण ही पहिचाने जाते है। जब तक ज्योतिष का ज्ञान नही था तब तक पृथ्वी स्थिर थी और सूर्य चन्द्रमा और तारे चला करते थे। जैसे ही ज्योतिष का ज्ञान होने लगा तो पता लगा कि सूर्य तो अपनी ही कक्षा मे स्थापित है बाकी के ग्रह चल रहे है। लेकिन ऋषियों और मनीषियों को बहुत पहले से ज्योतिष का ज्ञान था उन्हे प्रत्येक ग्रह के बारे मे जानकारी थी,यहां तक कि मंगल ग्रह के बारे मे भी उनका ज्ञान प्रचुर मात्रा मे था और उन्होने मंगल ग्रह की पूरी गाथा पहले ही लिख दी थी। पुराने जमाने से सुनता आया हूँ- "लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय कपि शूर",इस दोहे को लिखा तो तुलसीदास जी है लेकिन उन्हे इस बारे मे कैसे पता लगा कि मंगल का रंग लाल है और जब मंगल को खुली आंख से देखा जाये तो लाल रंग का ही दिखाई देता है सूखा ग्रह है इसलिये बज्र की तरह से कठोर है,साथ ही ध्वजा पर लाल रंग का होना मंगल का उपस्थिति का कारण भी बनाता है,मंगल के देवता हनुमान जी के विषय मे उन्होने लिखा था। इस बात का सटीक पता तब और चला जब अमेरिका के नासा स्पेस से वाइकिंग नामका उपग्रह यान मंगल पर भेजा गया और उसने जब सन दो हजार में मंगल के ऊपर की कुछ तस्वीरे भेजी तो उसके अन्दर एक फ़ेस आफ़ मार्स के नाम से भी तस्वीर आयी। यह तस्वीर बिलकुल हनुमान जी की तस्वीर की तरह थी,इस तस्वीर को उन्होने सन दो हजार दो तक नही प्रसारित की,इसका भी कारण था,वे अपने को बहुत ही उन्नत और वैज्ञानिक भाषा मे दक्ष मानते थे और जब भी उनका कोई टूरिस्ट भारत आता था और भारत मे जब हनुमानजी के मंदिर को देखता तो वह मजाक करता था और "मंकी टेम्पिल" कह के चला जाता था। इस फ़ेस आफ़ मार्स ने अमेरिका के वैज्ञानिक धारणा को चौपट कर दिया और उन्हे यह पता लग गया कि भारत मे तो आदि काल से ही मंगल को हनुमान जी के रूप मे माना जा रहा है। विज्ञान जहाँ समाप्त हो जाता है वहाँ से ज्योतिष विज्ञान शुरु होता है ! जिस प्रकार से विज्ञान के अन्दर जो भी धारणा पैदा की जाती है उसके अनुसार रसायन शास्त्र भौतिक शास्त्र चिकित्सा शास्त्र आदि बनाये गये है। लेकिन जितनेी तत्व विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरते है उनके अन्दर केवल चार तत्व की मीमांसा ही की जा सकती है। बाकी का एक तत्व जो गुरु के रूप मे है वह विज्ञान न तो कभी प्रकट कर पाया है और न ही कभी अपनी धारणा से प्रकट कर सकता है। शरीर विज्ञान को ही ले लीजिये,सिर से लेकर पैर तक सभी अंगो का विश्लेषण कर सकता है,हड्डी से लेकर मांस मज्जा खून वसा धडकन की नाप आदि सभी को प्रकट कर सकता है कृत्रिम अंग बनाकर एक बार शरीर के अंग को संचालित कर सकता है। फ़ाइवर ब्लड को बनाकर कुछ समय के लिये खून की मात्रा को बढा सकता है लेकिन जो सबसे मुख्य बात है वह है प्राण वायु यानी गुरु की वह पैदा नही कर सकता है जब प्राण वायु को शरीर से जाना होता है तो वह चली जाती है और शरीर मृत होकर पडा रह जाता है उसके बाद शरीर वैज्ञानिक केवल पोस्ट्मार्टम रिपोर्ट को ही पेश कर सकता है कि ह्रदय रुक गया मस्तिष्क ने काम करना बन्द कर दिया अमुक चीज की कमी रह गयी और अमुक कारण नही बन पाया। नही समझ पाये आज तक कि गुरु क्या है लेकिन ज्योतिष शास्त्र मे सर्वप्रथम गुरु का विवेचन समझना पडता है गुरु जिस स्थान से शुरु होता है अपने अन्तिम समय तक केवल काल की अवधि तक ही सीमित रहता है उसे कोई पकड नही पाया अपने अनुसार पैदा नही कर पाया और न ही विज्ञान के अन्दर इतनी दम है कि वह भौतिक रूप से गुरु को प्रदर्शित कर सके। जिस दिन यह गुरु भौतिकता मे समझ मे आने लगेगा उस दिन विज्ञान की परिभाषा पराविज्ञान के रूप मे जानी जायेगी।
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