रविवार, 6 अगस्त 2017

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स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।
स्त्री-पुरुष जीवन रथ के दो पहिए हैं।सृष्टि सृजन में दोनों का समान योगदान होता है। नारी जननी, माँ, बेटी, पत्नी, बहन, नानी, दादी बन समाज, परिवार को पोषित करती है। नारी को कई दैवीय रूपों में पूजा जाता है। ऐश्वर्य के लिए लक्ष्मी, शक्ति के लिए दुर्गा, ज्ञान के लिए सरस्वती।
संस्कृत का श्लोक है – "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। वैदिक काल में गार्गी जैसी विदूषी स्त्री ने यज्ञवलक्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि उस ज़माने में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। स्वतंत्रता-स्वच्छंदता थीमध्यकालीन युग में नारियों की दशा बरबस, बेचारी-सी हो गई। उसे पाँव की जूती मानने लगे और नारी परिवार-समाज की संकुचित सीमाओं में बँध कर रह गई। पुरुष प्रधान समाज में नारी के नारीत्व का हरण होने लगा।। अनादि काल से महिलायें तिरस्कार झेलती आयीं है। पति के रूप में प्राप्त पुरुष स्त्री को कामना के रूप में स्वीकार करने के बजाय अवमानना के रूप में प्रयोग करता है,जब कि प्रकृति ने स्त्री को निराकार और पुरुष को साकार रूप में इस संसार में उपस्थित किया है। निराकार और साकार का रूप समझे बिना स्त्री पुरुष कभी भी अपने को सामजस्यता में नही रख पायेंगे,पहले आपको बता देना चाहता हूँ कि साकार और निरकार का अर्थ क्या है ? इस संसार में धनात्मक कारक साकार है,और ऋणात्मक कारक निराकार है,पुरुष का अर्थ एक तरह से है – मर्दाना। प्रकृति का अर्थ है स्त्री। तो सृष्टि जिस तरह से है, उसे समझाने के लिए सृष्टि के सृजन के बीज को पुरुष कहा गया है। यह नर है, लेकिन उसकी जीवन-निर्माण में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। यह बिलकुल मनुष्य के जन्म जैसी है। पुरुष सिर्फ बीज डालता है, लेकिन बाकी सारा सृजन नारी द्वारा होता है। इसलिए, देवी मां या पार्वती या काली को प्रकृति कहा गया है। वह संपूर्ण सृजन करती हैं, लेकिन इस सृजन का बीज है शिव या पुरुष। इसे शिव-शक्ति या पुरुष-प्रकृति, या यिन-यैंग या और भी कई तरह से समझा जा सकता हैस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है।।दोनो का अनुपात समान रूप से प्रयोग में लाने पर जीवन बिना किसी अवरोध के चला करता है,और इनके अन्दर जरा सा भी अनुपात बिगाड लिया जाये तो जीवन कष्टकारक हो जाता है। एक स्त्री एक पुरुष का अनुपाती रूप धनात्मक शक्ति को ऋणात्मक शक्ति में विलीन करने के लिये काफ़ी है,एक पुरुष अगर कई ऋणात्मक शक्तियों की पूर्ति करने के लिये उद्धत होता है तो वह जानबूझ कर अपनी जीवन की गति को असमान्य करता है,या तो वह जीवन को कम करता है अथवा वह जीवन भर अभावों में जीता है। उसी प्रकार से अगर एक स्त्री अगर कई सकारात्मक कारकों को अपने जीवन में प्रयोग करती है तो वह अपने जीवन को जल्दी समाप्त करने की चाहत करती है साथ ही जीवन को बरबाद करने के अलावा और कुछ नही करना चाहती है। इस बात को समझने के लिये आपको कहीं नही जाना है केवल अपने आसपास के माहौल को देखना है,आप किसी विधवा स्त्री या विधुर को देखिये,उसके जीवन को देखिये,उसकी आयु को देखिये,एक महिला का पति अगर चालीस साल की उम्र में गुजर गया है तो वह महिला अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहती है,अगर एक पुरुष चालीस साल में विधुर हो गया है तो वह अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहता है,इस अधिक उम्र को प्राप्त करने का कारण क्या है। इसे कोई भी बालिग आराम से समझ सकता है। अगर पुरुष अधिक स्त्रियों की कामना करता है और अधिक से अधिक कई स्त्रियों के साथ समागम करता है तो उसकी उम्र हर पहलू में कम होती चली जाती है,वह चाहे कितना ही धनी हो,कितना ही खाने पीने वाला हो,उसके पास चाहे कितने ही शरीर को बलवान बनाने वाले तत्वों की अधिकता हो,वह अपनी उम्र को कम ही करेगा। उसी प्रकार से कोई स्त्री अगर एक से अधिक पुरुषों के साथ समागम करती है तो वह भी अपनी उम्र की एक एक सीढी कम करती चली जाती है। इस बात को समझने के बाद भी अगर कोई स्त्री या पुरुष अधिक स्त्री या पुरुष की कामना करता है तो वह, वास्तव में सोसाइट करने वाली बात ही करता है।स्त्री पुरुष को ईश्वर ने संसार में निर्माण के लिये भेजा है यह तो एक साधारण व्यक्ति भी जानता है,लेकिन भावनाओं की गति को पकड कर चलने के साथ ही अगर दोनो अपने अपने कार्यों को करते चले जाते है,और वे जीवन की गति को निर्बाध चलाने के लिये एक के बाद एक निर्बाध (Resistance) पैदा करते जाते है तो जीवन आराम से निकल जाता है। इस स्त्री और पुरुष की गति को अगर रोजाना के प्रयोग में ली जाने वाली बिजली से तुलना करें तो आराम से समझ में आ सकता है,फ़ेस और न्यूटल दो भाग में घरेलू बिजली प्रयोग में ली जाती है,फ़ेस को न्यूटल से सीधा जोडने पर फ़्यूज उड जाता है,और फ़ेस को किसी रजिस्टेंस के माध्यम से न्यूटल तक पहुंचाने से उस रजिस्टेंस से जीवन की भौतिकता में सुख भी प्राप्त किया जा सकता है,और फ़्यूज भी नही उडता है,बिजली की गति सामान्य भी रहती है। स्त्री को न्यूटल और पुरुष को फ़ेस समझे जाने पर दोनो की आपसी शक्ति को प्रकृति ने बच्चे रूपी रजिस्टेंस पैदा किये है,दोनो अपनी अपनी शक्ति को बच्चों के माध्यम से खर्च करें तो बच्चे तरक्की करते जायेंगे,और दोनो का जीवन भी सार्थक होता चला जायेगा। लेकिन दोनो के बीच बीच में होने वाले शार्ट सर्किट से भी बचना पडेगा। भगवान रूपी पावर हाउस,तार और खम्भों रूपी माता पिता,आन आफ़ करने वाले स्विच रूपी रोजाना के कार्य और व्यवसाय,इन्डीकेटर रूपी नाम और समाज में वेल्यू,एम सी बी रूपी भाग्य और भगवान के प्रति श्रद्धा भी ध्यान में रखनी जरूरी है।

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