गुरुवार, 24 अगस्त 2017

ज्योतिष की वात एक ऐसा विषय है जिससे प्राचीन कोई और विषय नहीं।इतिहास गवाह है कि ऐसा कोई भी समय नहीं था जब ज्योतिष का अस्तित्व नहीं थाआधुनिक विज्ञान के कसौटी पर भी इस बात की पुष्टि हो जाती है। क्योंकि ईसा से भी 25 हजार वर्ष पूर्व की कुछ ऐसी अस्थियां मिली हैं जिन पर सूर्यादि ग्रहों के ज्योतिषीय चिह्नों का अंकन पाया गया है।प्रसन्नता की बात है कि आज जैसे -जैसे आधुनिक विज्ञान का विकास हो रहा है, उसकी पिछली धारणाओं का नयी धारणाओं से अपने आप खंडन होता जा रहा है। फलस्वरूप आज नौबत यहां तक आ पहुंची है कि वैज्ञानिकों का भी एक बड़ा वर्ग ज्योतिष को विज्ञान का दर्जा दिये जाने का पक्षधर बनता जा रहा है। लेकिन ऐक सच यह भी है कि अध्यातिमक क्षेत्र मन्दिर गुरूद्वारा इत्यादि से जुड़े हुए अधिकतर सन्त ज्योतिष विधाा के प्रति नकारात्मक दृषिटकोण रखते हैं। आश्चर्य तो इस बात से होता है कि उन सन्त महापुरूषों वेद-पुराणों में पूर्ण आस्था एवं विश्वास होता है परन्तु वेदों के नेत्र माने जाने वाले ज्योतिष का अपनी बुद्धि के अनुसार खण्डन करते हैं इसके पीछे कौन सा कारण है। यह विचारणीय एवं। खोज का विषय है कि मेरे अपने जीवन में ऐसे कर्इ सन्तों से सामना हुआ है जिनका कहना है कि कुछ भी है सब परमात्मा है ज्योतिष बकवास है तथा इस मंत्र्र का जप करो सब ठीक हो जायेगा। अंगूर खट्टे हैं वाली कहावत याद आती हैसमाज में एक लोकोकित बहुत प्रचलित है कि नीम, हकीम खतरा ए जान संसार में जड़-चेतन जो कुछ भी है उसका अपना एक अर्थ तथा प्रभाव है लेकिन उसका लाभ किस प्रकार से लिया जा सकता है। इसे कोर्इ विरला ही जान पाता है परमात्मा का स्थान जीवन में सर्वोच्च है। इसमें शक करने का कोइ कारण नहीं परन्तु जो एक बात हम भूल जाते हैं वो यह है कि परमात्मा हम सबका स्वामी है, सेवक नहीं सांसार में जो कुछ भी घटित होता है वह परमात्मा की इच्छा से होता है।लेकिन परमात्मा अपनी इच्छा विशेष सेवकों को उत्पन्न करके उनके माध्यम से पूरी करता है। गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है फल देने का अधिकार केवल परमात्मा के हाथों में है। ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा दर्पण है जिसमें मनुष्य अपने कर्मों के फल को देख सकता है तथा परमात्मा की इच्छा से नवग्रहों के माध्यम से मनुष्य अपने कर्मों का अच्छा या बुरा फल भोगता है।ज्योतिष शास्त्र बहुत ही गूढ और जटिल विज्ञान हैहमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति ‘द्युत दीप्तों’ धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है । हमारा मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों का संचालन करता है। यह बात सिद्ध की जा चुकी है कि शरीर में किसी अव्यव का संचालन मस्तिष्क का कौन-सा भाग करता है। यदि मस्तिष्क का वह भाग किन्हीं कारणों से कार्य करना बंद कर दे तो उससे संबंधित भाग भी कार्य करना बंद कर देता है। मस्तिष्क के विभिन्न भागों का संबंध व्यक्ति की आकांक्षाओं, काम-प्रवृत्तियों, इच्छाओं आदि पर भी होता है। इसी कारण से शरीर-लक्षण विशेष रुप से हस्त रेखाओं द्वारा व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं का भी पता चल जाता है। सामुद्रिक शास्त्र का संबंध नक्षत्र, पृथ्वी तथा उसके निवासियों पर उनके प्रभाव तथा उनकी दूर स्थित आभा से निकलने वाली चुम्बकीय दे्रव धारा से है। हमारा स्नायु तंत्र मस्तिष्क तथा हथेली के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है और यह दोनों सूक्ष्मतम संवेदनाओं के भंडारागार हैं।चिकित्सा विज्ञान मानता है कि गर्भावस्था से ही बच्चा मुट्ठी बंद किए रहता है, इसलिए हथेली की त्वचा सिकुड़ने से उसमें रेखाएं बन जाती हैं। यह स्वाभाविक है और प्राकृतिक भी। परंतु यह धारणा मिथ्या है। यदि ऐसा होता तो रेखाओं का क्रम व्यवस्थित नहीं होता।नाखून, त्वचा का रंग, नाखून में उपस्थित चन्द्र स्थिति आदि का अध्ययन कर रोग बताने का उपक्रम करते आपने वरिष्ठ चिकित्सकों तक को देखा होगा। विज्ञान भी मानने लगा है कि ग्रह-नक्षत्र जन-जीवन पर प्रभाव डालते हैं। ज्योतिष का मूल है यद् ब्रह्मांडे तत्पिंडे अर्थात् जिन तत्वों से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है, उन्हीं तत्वों से ब्रह्मांडगत सभी पिण्डों का सृजन हुआ है। इसलिए वराहमिहिर ने लिखा है कि प्राणियों एवं जीव-जन्तुओं के अलावा पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु पर भी ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है। कुमुदनी चन्द्रकिरणों से खिलती है तो सूर्यमुखी सूर्य से। पृथ्वी पर अन्य खगोलिय पिण्डों की तुलना में सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बलों के फलस्वरुप समुद्र का पानी ऊपर उठता है। ज्वार-भाटे उत्पन्न होते है। चन्द्रमा और सूर्य के सम्मिलित प्रभावों के फलस्वरुप ही पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ज्वार अन्य दिनों की तुलना अधिक ऊंचा होता है। यही स्थिति शुक्ल और कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी के दिन सबसे कम होती है। दूसरे शब्दों में कहें कि चन्द्रमा की कलाओं के साथ ही ज्वार घटता या बढ़ता रहता है।मानसिक रुप से विक्षिप्त लोगों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया कि पूर्णिमा के दिन ऐसे लोगों की स्थिति विकराल रुप ले लेती है। सैकड़ों वर्षो के शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि सूरज पर प्रत्येक ग्यारह वर्ष में आणविक विस्फोट होता है। इसके प्रभाव का व्यक्ति, देश, वनस्पति आदि पर स्पष्ट अध्ययन किया गया। स्विस चिकित्सक पैरासिलिसस ने अपने अनुसंधानों से यह सिद्ध किया कि कोई व्यक्ति तब ही बीमार होता है जब उसके और उसके जन्म नक्षत्र के साथ जुड़े हुए ग्रह-नक्षत्रों के बीच तारतम्य टूट जाता है। पाइथागोरस ने यह सिद्ध किया था कि प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने निश्चित परिपथ पर चलते हुए एक ध्वनि पैदा करता है। इन सब ग्रह-नक्षत्रों की ध्वनि में एक ताल मेल है, एक संगीतबद्धता है। प्रत्येक व्यक्ति की इसी प्रकार की संगीतबद्धता और नक्षत्रों की संगीतबद्धता में भी एक व्यवस्था है। जब यह टूटती है तो व्यक्ति प्रभावित होता है। सन् 1950 में कॉस्मिक कैमिस्ट्री नाम की एक नई शाखा पैदा हुई। उसमें इस बात पर बल दिया गया कि पूरा ब्रह्मांड एक शरीर है। यदि एक कण भी प्रभावित होगा तो पूरा ब्रह्मांड तरंगित हो जाएगा।एक अन्य प्रयोग से यह सिद्ध किया गया कि सूर्य पर आणविक विस्फोट होते हैं तो मनुष्य का खून भी पतला हो जाता है। आप संभवतः नहीं जानते हों कि व्यक्ति का खून सदैव एक सा रहता है, परंतु स्त्रियों का खून उनके मासिक धर्म के दिनों में पतला हो जाता है। ज्योतिष को लोग अंधविश्वास इसलिए कहते हैं कि हम उसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को स्पष्ट नहीं कर पाते। हम कार्य और कारण के बीच संबंध तलाश नहीं कर पाते। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। समयाभाव में, धन लोलुपता और अज्ञानतावश हम आगे नहीं बढ़ पा रहे। दरअसल विज्ञान किसी अतिविकसित सभ्यता द्वारा दिया हुआ अविकसित ज्ञान है जिसे हम आगे नहीं बढ़ा पाये। हमारा भविष्य हमारे अतीत से अलग नहीं हो सकता, उससे जुड़ा हुआ होगा। हम कल जो भी होगें, वह आज का ही जोड़ होगा। आज तक हम जो है वह बीते हुए कलों का जोड़ है। भविष्य सदा अतीत से निकलेगा। हमारा आज कल से ही निकलेगा और आने वाला कल आज से। इसलिए जो कल होने वाला है वह आज भी कहीं सूक्ष्म रुप से छुपा है। उसे खोजना ही विज्ञान है।एक छोटे बीज में उसके पेड़ बन कर फल देने और नष्ट हो जाने का पूरा प्रोग्राम लिखा है। वह अंकुरित होगा, पौध बनेगा, बड़ा होगा, फिर पेड़ बन जाएगा आदि। इसी प्रकार गर्भ से ही बच्चे का पूरा प्रोग्राम निश्चित हो जाता है। यह बात अलग है कि पुरूषार्थ से वह उस प्रोग्राम में थोड़ा बहुत परिवर्तन कर लें। प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने स्वभाव और गुण अनुसार व्यक्ति को प्रभावित करता है, यह अकाट्य सत्य है। विज्ञान भी इसको मानता है। वह कहता है कि यह सत्य है कि ग्रह-नक्षत्र व्यक्ति, पशु-पक्षी, जल, वनस्पति, जलवायु आदि को प्रभावित अवश्य करते हैं, परन्तु यह अभी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि कोई व्यक्ति विशेष इनके प्रभाव से प्रभावित होगा ही। इस पर निरंतर शोध कार्य चल रहे है और एक दिन विज्ञान को झुकना ही होगा इस सत्य की ओर।मैं सोचता हूँ कि सरकार और बुद्धिजीवियों को आगे आकर इस विधा पर और खोज करना चाहिए, क्योंकि जो करना चाहते हैं उनके पास संसाधन नहीं हैं। केवल इसे धर्म से जोड़कर और भ्रम बोलकर इसका उपहास करना उचित नहीं है। आज अधिकतर ज्योतिषी इसे धन कमाने का साधन मात्र समझने लगे हैं, बहुत सी विधाएँ अपनी सुविधा अनुसार पैदा कर ली हैं, जिसके कारण इस महान विद्या का दिन प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है। आचार्य राजेश


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