गुरुवार, 10 अगस्त 2017

  आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725 [ ज्योतिष विज्ञान नहीं सुपरै विज्ञानं है!! जीवन में मनुष्य जन्म लेते ही ज्योतिष शास्त्र से जुड़ जाता है। कुछ व्यक्ति ज्योतिष को कला शास्त्र और कुछ विज्ञान की संज्ञा देते हैं। वास्तव में ज्योतिष विज्ञान नहीं, अपितु सुपर विज्ञान है। आज सब देख रहे है की समाज में ज्योतिष की लोकप्रियता बढती जा रही है, मांग और पूर्ति का भी एक सिधांत है की जब किसी चीज की मांग ज्यादा बढ़ जाती है तो वहां कुछ न कुछ गलत होने लगता है इसी प्रकार आज जब ज्योतिष का प्रचार - प्रसार तथा लोकप्रियता बढ़ रही है तो कुछ लोग धन के लोभवश ज्योतिष के अधकचरे ज्ञान का उपयोग कर स्वयं तो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं पर ज्योतिष जो वैदिकप्रामाणिक विज्ञान और सशक्त शास्त्र है। समूची ज्योतिष विद्या पर प्रश्न चिन्ह भारतीय संस्कृति पर प्रश्नचिन्ह है, .... नारद, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, पराशर, गर्गाचार्य, लोमश ऋषि, निबंकाचार्य, पृथुयश, कल्याण वर्मा, लल्लाचार्य, भास्कराचार्य (प्रथम), ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य, मुंजाल यह सिर्फ नाम नहीं है ज्योतिष शास्त्र में इनका अपना गौरवमयी यशस्वी योगदान रहा है। ज्योतिष ऋषियों तथा वेदों का अमूल्य ज्ञान है उसकी लोकप्रियता तथा विश्वसनीयता को छति हो रही है ! आज समाज में यह देखने को मिलता है की वैज्ञानिक तथा अन्य नास्तिक लोग देश के विख्यात ज्योतिषियों से टीवी के प्रोग्रामो में चुनौती देते हैं की वह ज्योतिष की विश्वसनीयता सिद्ध करें टीवी प्रोग्राम में पुरे जनमानस के सामने ज्योतिषी यह सिद्ध नहीं कर पाते की ज्योतिष विज्ञानं है क्यों कारण सिर्फ इतना सा है की उनके ज्ञान पर भौतिकता और लालच का पर्दा पड़ा है ! ज्योतिष धन उपार्जन का साधन हो सकती है पर ज्योतिष साधना का विषय है और साधना वातानुकूलित कमरों में रहकर नहीं हो सकती टीवी पर प्रोग्राम देखकर इन ज्योतिषियों को तो शरम नहीं आइ होगी पर प्रोग्राम देखकरमुझ जैसे या जो भी ज्योतिष प्रेमी हैं उनको जरुर दर्द होता होगा ,होना भी चाहिए , इस जगत में कोई भी विज्ञानं पूर्ण नहीं है पूर्ण सिर्फ परमात्मा है जिस तरह से मीडिया ज्योतिष को अंधविश्वास बताने पर तूला है लगता ही नहीं है कि यही वह मीडिया है जो नास्त्रेदेमस पर 6-6 एपिसोड चलाता है। दिन-दिन भर पंडितों को बैठा कर एस्ट्रो टिप्स बताने वाला मीडिया अचानक से स्मृति ईरानी के हाथ दिखाने भर से इसी विद्या के खिलाफ खड़ा हो जाता है। तो फिर ज्योतिष विज्ञानं की ही प्रमाणिकता क्यों मांगी जा रही है कारण ये जो भी कथाकथित ज्योतिष के विद्वान हैं सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में राशिफल , भविष्यवानियाँ टीवी , पत्रिकाओं, अखबारों आदि में करते है जिन्हें हल्दी का रंग मालूम नहीं है पंसारी बने धूम रहे है दस्तखत करना आता नहीं कलक्टर बनाने का फार्म भर रहे हैं ! अरे भाई एक राशी के करोडो लोग हैं आप एक लाठी से सभी को हांके जा रहे हो ..मुर्खता करना अब भी बंद कर दो अपना नहीं तो कम से कम जिस ज्योतिष से तुम्हारी रोटी चल रही है उसकी ही खातिर सही . अरे भाई फल खाओ तो खाओ वृक्ष पर तो तरस खाओ प्यारे ! अब रही बात ज्योतिष की तो भई एक अस्पताल में एक ही मर्ज के पाँच मरीज भर्ती हुए एक ही कमरे में भर्ती किये गए एक ही डाक्टर इलाज करता है परिणाम ... एक मरीज दो दिन में , दूसरा तीन दिन में , चौथा चार दिन में ठीक हो जाते है पांचवा ठीक नहीं होता ओपरेशन करना पड़ता है फिर भी मर जाता है तो क्या अस्पताल की विश्वसनीयता पर या डाक्टर की विश्वसनीयता पर या दवाइयों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहिए .. नहीं .. बिलकुल नहीं ,, प्रत्येक मरीज की अपनी रोग प्रतिकारक शक्तियां है जो की भिन्न भिन्न हैं ठीक उसी तरह ज्योतिष विद्या भी है जो की भिन्न भिन्न जातको की भिन्न भिन्न समस्याओं का इलाज़ ज्योतिष्य तरीके से करती है लेकिन किसी भी जातक के प्रारब्ध दुसरे जातक जैसे नहीं हो सकते और इसी विशेष कारण उसकी समस्या के निदान में समय लगना या कई बात लाइलाज भी रह जाना स्वाभाविक है ! यही कारण से ज्् ज्योतिष सवालों के कटघरे में खड़ा है!जब राजनीति विज्ञान हो सकता है, समाज विज्ञान हो सकता है मन का भी मनोविज्ञान हो सकता है तो ज्योतिष विज्ञान क्यों नहीं हो सकता? मैं स्मृति ईरानी का ज्योतिषी के पास जाना वैसा ही मानता हूं जैसे कोई डॉक्टर के पास जाता है। हर युग में हर किसी किसी के अपने ज्योतिषी और आचार्य रहे हैं। राजा-महाराजाओं के काल में भी, विदेशों में भी और भारत में भी। रेगन, बुश,क्लिंटन से लेकर हर दौर के मंत्री और नेताओं के ज्योतिषी थे और हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पं. नेहरू, डॉ. राधाकृष्णन से लेकर सभी बड़े राजनेता, क्रांतिकारी और समाजसेवी ज्योतिषाचार्य जी के पास आते रहे हैं। भारत की आजादी का मुहूर्त भी उन्हीं से पूछकर निकाला गया था। ब्रह्माण्‍ड की उत्‍पत्ति बिग बैंग से हुई या यह शुरू से ही ऐसा था, प्रकाश से तेज रफ्तार में क्‍या होता है, ब्‍लैक होल क्‍या है, हीरे की बाहरी संरचना में तीन-तीन फ्री कार्बन क्‍यों नहीं होते और अगर होते हैं तो वह अक्रिय कैसे होता है। सैकड़ों सवाल है जो अनुत्‍तरित हैं। फिर भी पश्चिम द्वारा थोपे गए विज्ञान को सिर पर बैठाया जाता है और हमारे ऋषियों द्वारा अर्जित ज्ञान को नीचा दिखाया जाता है। मेरी समझ में तो यह गुलामी की मानसिकता से अधिक और कुछ नहीं है। मैं निजी तौर पर योग सिखाने वाले बाबा रामदेव का फैन हूं। इसका कारण यह नहीं है कि वे अपनी योग कक्षाओं में बैठने की फीस लेते हैं बल्कि इसके बावजूद उन्‍होंने सहज योगासनों और सामान्‍य प्राणायामों से लोगों को सक्रिय कर दिया है। आज स्थिति यह है कि किसी चिकित्‍सक को जब यह कहा जाता है कि इस बीमारी का हल तो बाबा रामदेव ने इस योग में बताया है तो चिकित्‍सक मारने को दौड़ता है। पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव है कि चिकित्‍सक यह मानने को तैयार नहीं होता कि सांस लेने से भी कोई ठीक हो सकता है। श्‍वास के साथ जुड़े प्राण को अंग्रेजों ने नकारा तो भारतीयों ने भी नकार दिया। अब विदेशी लोग योग करते हैं और ग्‍लेज पेपर वाली मैग्‍जीन्‍स में भारतीय उनके फोटो देखते हैं।वापस विषय पर आता हूं ,इतिहास के संदर्भ में ही देखें तो प्रयोग, प्रेक्षण और परिणाम की कसौटी पर इतिहास के किसी तथ्‍य को नहीं रखा जा सकता। जैसी दुनिया आज है वैसी दस साल पहले नहीं थी और जैसी दस साल पहले थी वैसी सौ साल पहले नहीं थी। तो कैसे तो प्रयोग होगा, किस पर प्रेक्षण किया जाएगा और आने वाले परिणामों को किस कसौटी पर जांचा जाएगा। मेरा मानना है कि ज्‍योतिष के साथ भी कुछ ऐसा ही है। पूर्व में ग्रहों और राशियों की स्थिति की पुनरावृत्ति के साथ घटनाओं का तारतम्‍य देखकर उसके सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर योगों का निर्माण किया गया होगा। सालों, दशकों या शताब्दियों के निरन्‍तर प्रयास से योगों को स्‍थापित किया गया और आज के संदर्भ में इन योगों का इस्‍तेमाल भविष्‍य में झांकने के लिए किया जाता है। अब जो लैण्‍डमार्क पीछे से आ रहे रास्‍ते को दिखा रहे हैं उनसे आगे का रास्‍ता बता पाना न तो गणित के सामर्थ्‍य की बात है और न कल्‍पना के। ऐसे में ज्‍योतिषी के अवचेतन को उतरना पड़ता है। जैसा कि मौसम विभाग के सुपर कम्‍प्‍यूटर करते हैं। अब तक हुई भूगर्भीय गतिविधियों को लेकर आगामी दिनों में होने वाली घटनाओं की व्‍याख्‍या करने का प्रयास। इसके साथ ही बदलावों को तेजी से समझना और उन्‍हें आज के परिपेक्ष्‍य में ढालना भी एक अलग चुनौती होती है। पचास साल पहले कोई ज्‍योतिषी यह कह सकता था कि अमुक घटना हुई है या नहीं इसकी सूचना आपको एक सप्‍ताह के भीतर मिल जाएगी वहीं अब मोबाइल और इंटरनेट ने सूचनाओं के प्रवाह को इतना प्रबल बना दिया है कि घटना और सूचना में महज सैकण्‍डों का अन्‍तर होता है। अब देखें कि इससे क्‍या फर्क पड़ा। सबसे बड़ा फर्क पड़ा बुध के प्रभाव के बढ़ने का। दूसरा फर्क मोबाइल और इंटरनेट के इस्‍तेमाल के दौरान व्‍यक्ति पर आ रही किरणों के असर का। इसे बुध राहू के रूप में लेंगे या शनि चंद्रमा के रूप में, ये निर्णय होने से अभी बाकी है। ऐसे में कोई ज्‍योतिषी करीब-करीब सही फलादेश कर देता है तो उसे और उसके अवचेतन को धन्‍यवाद देना चाहिए् रही वात ज्योतिष की विज्ञान और ज्योतिष के सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार कोई भी ग्रह हमेशा किसी के ऊपर नहीं रहता बल्कि अपनी चाल के अनुसार अलग अलग राशियों में जाता रहता है| जब एक निश्चित समयानुसार ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है आकाश में मौजूद 9 ग्रह अपनी अपनी गति से चलते है और गणित के अनुसार एक खास समय पर अलग अलग राशियों में प्रवेश करते हैं| एक खास समय तक उस राशि में रहते हैं और फिर अगली राशि में चले जाते हैं| अलग अलग राशि में उनके अलग अलग प्रभाव होते हैं| कैसे आइए जानते हैं : आचार्य लोंगों ने आकाश को समझने के लिए इसे 12 भागों में बाँट दिया| हर भाग को एक नाम दे दिया जिसे हम राशियों के नाम से जानते हैं| इस प्रकार हम आकाश के 12 भागों को 12 राशियों के नाम से जानते हैं| पूरा सौर मंडल इन्हीं 12 राशियों के अंदर आता है| सूर्य इन्हीं 12 भागों से होकर गुज़रता है| और जब कोई भी ग्रह किसी भी राशि में आता है तो उस पर सूर्य और अन्य ग्रहों की प्रकाश किरणें पड़ने लगती हैं| और ये प्रकाश किरणें प्रकाश के प्रत्यावर्तन सिद्धांतों के अनुसार विभिन्न कोणों से विभिन्न ग्रहों से टकराकर धरती मंडल में प्रवेश करती हैं और उस समय ये प्रकाश किरणें जिस राशि में से होकर धरती मंडल पर आती हैं उस राशि में जन्म पाने वाले लोगों के शरीर में मौजूद लाल रक्त कण उस राशि में प्रवेश कर रहीं राशिष्ठ किरणों को अपने में अवशोषित कर लेती है| और वह प्राणी उस ग्रह के कास्मिक किरणों के प्रभाव में आ जाता है| हर आदमी के शरीर में 12 तरह की किरणें होती हैं| अब अगर किसी के शरीर में 10 पॉइंट किसी खास ग्रह की ज़रूरत है और उसमें 8 पॉइंट ही हैं तो उसे 2 पॉइंट और चाहिए| अब अगर वह 4 पॉइंटस और ले लेगा तो 2 पायंट्स जो ज़्यादा हो जाएगा वह उसे नुकसान ही पहुँचाएगा न कि फायदा| इसी को लोग कहते हैं कि ग्रह दशा खराब हो गई है| अब हमें उपाय करने चाहिए जिससे कि ये 2 पायंट्स समाप्त हो जाएँ| कितने पायंट्स किरणों की ज़रूरत किसे है उसमें कितने पायंट्स उसमें हैं उसे और कितने पायंट्स और चाहिए इसकी जाँच ज्योतिष् और विज्ञान दोनों में है शेष अगले पोस्ट में:

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