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रविवार, 13 अगस्त 2017
आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक उपायों व लाल किताब के द्वारा समाधान प्राप्त करें, आप ऐहमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , के साथ हमारी फीस हमारे bank ac pnb babk 0684000100192356 ifc punb 0068400 मे जमा करानी होगी email maakaali46@gmail.com, Mo. 09414481324. 07597718725 paytm no 07597718725 मित्रों बाद बात करते हैं तो रोगों के बारे में प्राचीन काल में जीवन जीने के भौतिक सुख के साधन कम थे तब रोग व बीमारियां भी कम हुआ करती थीं। जैसे-जैसे मनुष्य ने उन्नति की, भौतिक सुख-सुविधाओं की वस्तुओं में भी वृद्धि हुई, जिससे व्यक्ति आरामदायक जीवन बिताने लगा। इसके परिणामस्वरूप मेहनत कम होने से कई बीमारियों जैसे- मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, नेत्र रोग, कैंसर, अस्थमा आदि ने जन्म लिया। फिल्मी भाषाओं व माॅडलिंग, फैशन एवं बढ़ती भौतिक चीजों के कारण व्यक्ति की मानसिकता उŸोजित होने लगी जिससे कामुकता बढ़ने लगी परिणामस्वरूप यौन-अपराध बढ़ने लगे, जिससे यौन-रोगों में वृद्धि हुई। ये सभी आधुनिक युग के रोग कहलाते हैं अर्थात् प्राचीनकाल में ये रोग नहीं थे। चाहे आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हैं।। सूक्ष्म से सूक्ष्म रोग को मशीन द्वारा पहचान लिया जाता हैं। परंतु फिर भी कई रोग एंव लक्षण आज भी रहस्य बने हुये हैं।। ज्योतिष शास्त्र द्वारा समस्त रोग पूर्व से ही जाने समझे जा सकते हैं, तथा उनका निदान किया जा सकता हैं।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न कुण्डली के प्रथम भाव के नाम आत्मा, शरीर, होरा, देह, कल्प, मूर्ति, अंग, उदय, केन्द्र, कण्टक और चतुष्टय है। इस भाव से रूप, जातिजा आयु, सुख-दुख, विवेक, शील, स्वभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है। लग्न भाव में मिथुन, कन्या, तुला व कुम्भ राशियाँ बलवान मानी जाती हैं।ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है। नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं। वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है-पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व 360 की राशियों का समूह है। इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है। इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है। इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।मनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है. यदि यह मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो तो ही शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों का जन्म होता है. शरीर के समस्त अव्यवों,क्रियाकलापों का संचालन करने वाले सूर्यादि यही नवग्रह हैं तो जब भी शरीर में किसी ग्रह प्रदत तत्व की कमी या अधिकता हो, तो व्यक्ति को किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है. कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। जैसे आज कल सिंह राशि में शनि और मंगल चल रहे हैं तो मीन लग्न मकर और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता। अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में हृदय, पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित बीमारियों का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु आदि बैठे हों तो जातक में विटामिन ए की कमी रहती है। साथ ही विटामिन सी की कमी रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की बीमारी का भय रहता है। चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। यदि इनके साथ चंद्रमा भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी की समस्या रहती है जबकि बुध का कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है। चंद्रमा का पापयुक्त होना और शुक्र का संबंध व्यसनी एवं गुप्त रोगी बनाता है। शनि का संबंध हो तो नशाखोरी की लत पड़ती है। इसलिए कुंडली में बैठे ग्रहों का विवेचन करके आप अपने शरीर को निरोगी रख सकते हैं। किंतु इसके लिए सच्चरित्रता आवश्यक है। आरंभ से ही नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं। योग-रत्नाकर में कहा है कि- औषधं मंगलं मंत्रो, हयन्याश्च विविधा: क्रिया। यस्यायुस्तस्य सिध्यन्ति न सिध्यन्ति गतायुषि।। अर्थात औषध, अनुष्ठान, मंत्र यंत्र तंत्रादि उसी रोगी के लिये सिद्ध होते हैं जिसकी आयु शेष होती है। जिसकी आयु शेष नहीं है; उसके लिए इन क्रियाओं से कोई सफलता की आशा नहीं की जा सकती। यद्यपि रोगी तथा रोग को देख-परखकर रोग की साध्या-साध्यता तथा आसन्न मृत्यु आदि के ज्ञान हेतु चरस संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, चक्रदत्त, शारंगधर, भाव प्रकाश, माधव निदान, योगरत्नाकर तथा कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं परन्तु रोगी या किसी भी व्यक्ति की आयु का निर्णय यथार्थ रूप में बिना ज्योतिष की सहायता के संभव नहीं है।
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