शनिवार, 20 जनवरी 2018

वात ज्योतिष की

भारतीय वैदिक ज्योतिष मूलरूप से नक्षत्र आधारित है कारण जब बालक का जन्म होता है तो सर्वप्रथम नक्षत्र के आधार पर उसके शुभ अशुभ का ज्ञान किया जाता ही फिर उसके अन्य संश्कारो के निर्धारण के लिए नक्षत्र के आधार पर ही मुहूर्त देखा जाता है कहा जाता है कि ग्रह से बडा नक्षत्र होता है और नक्षत्र से भी बडा नक्षत्र का चरण जब विवाह कि बात आती है तो वर बधू का मेलापक भी नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है जब भी किसी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त का निर्धारण करना होता है तब भी नक्षत्रों को ही प्राथमिकता प्रदान की जाती है कुंडली में भविष्य के फलादेश के लिए भी सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विंशोत्तरी दशा का निर्धारण भी नक्षत्रों के आधार पर ही होता है  फिर फलादेश के लिए नक्षत्रों का प्रयोग क्यों नहीं !तिष जगत में आज नक्षत्रों का चलन सिर्फ मुहूर्त निर्धारण तक ही सीमित हो गया है, ज्योतिषी राशियों के आधार पर ही फलादेश कर रहे है नतीजा फ़लादेश असफल हो रहे हैंज्‍योतिष की किताबों में आपको ग्रहों, राशियों और भावों के बारे में विस्‍तार से जानकारी मिल जाएगी। इससे अधिक देखने पर हम पाते हैं कि राशियों को नक्षत्रों के अनुसार विशिष्‍टता दी गई है। चंद्रमा भी नक्षत्रों पर से गुजरते हुए हमें रोज के बदलावों की जानकारी देता है। ज्‍योतिष की प्राचीन और नई पुस्‍तकों में यह तो दिया गया है कि अमुक नक्षत्र में चंद्रमा के विचरण का फलां फल है, लेकिन कहीं यह नहीं बताया गया है कि नक्षत्र का नैसर्गिक स्‍वभाव क्‍या है या उस पर किसी ग्रह के स्‍वामित्‍व का वास्‍तविक अर्थ क्‍या है।
पाराशर ऋषि ने नक्षत्र चार के आधार पर ही दशाओं का विभाजन किया लेकिन नक्षत्रों के बारे में विस्‍तार से जानकारी नहीं दी। इसी तरह प्रोफेसर केएस कृष्‍णामूर्ति ने केवल चंद्रमा के नक्षत्र चार से बाहर आकर हर भाव और ग्रह के नक्षत्रों तक उतरकर विशद् विश्‍लेषण पेश किया, लेकिन उन्‍होंने ने भी कहीं नक्षत्रों की निजी विशिष्‍टताओं के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। जबकि वृहत्त संहिता और दूसरी एकाध प्राचीन पुस्‍तक में नक्षत्रों के स्‍वरूप का वर्णन तक मिलता है। इन नक्षत्रों के स्‍वरूप के आधार पर ही उनके गुण भी बताए गए हैं। जब नक्षत्र के बारे में इतनी सटीक जानकारी उपलब्‍ध है तो उनके निजी या एकांगिक गुणों के बारे में कहीं स्‍पष्‍ट नहीं किया जाना कुछ खल जाता है। नक्षत्रों में विचरण को दौरान अगर चंद्रमा के स्‍वभाव में नियमित रूप से परिवर्तन आता है तो क्‍या अन्‍य ग्रहों पर भी ऐसे प्रभाव का अध्‍ययन जरूरी नहीं है।पहले पता करते हैं कि नक्षत्र हैं क्‍या?
हमने देखा कि बारह राशियां भचक्र के 360 डिग्री को बराबर भागों में बांटती हैं। इस तरह आकाश के हमने बारह बराबर टुकड़े कर दिए। तारों का एक समूह मिलकर नक्षत्र बनाता है। ऐसे सत्‍ताईस नक्षत्रों की पहचान की गई है। इससे आ खाकाश को बराबर भागों में बांटा गया है। हर नक्षत्र के हिस्‍से में आकाश का 13 डिग्री 20 मिनट भाग आता है। जब हम चंद्रमा के दैनिक गति की बात करते हैं कि इसमें नक्षत्रों की विशेष भूमिका होती है। राशि वही हो और नक्षत्र बदल जाए तो चंद्रमा का स्‍वभाव भी बदल जाता है। इसी तरह हर ग्रह के स्‍वभाव में भी नक्षत्र चार के दौरान बदलाव आता है। चूंकि नक्षत्रों का स्‍वामित्‍व ग्रहों को ही दिया गया है। ऐसे में स्‍वभाव में परिवर्तन भी ग्रहों के अनुसार ही मान लिया जाता है। जबकि हकीकत में यह नक्षत्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति के अनुसार होना चाहिए।अव आप देख सकते हैं राशि फल कहा सही वैठता है


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