राहु एवं रोग निदान मेंवाघा भाग 2
देने वाला छायाग्रह है I अत: यदि रोगी क्री राहु की महादशा अंतर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो, तो उसके शरीार में विद्यमान राहु की adrishya Paraवैगनी किरणे उनकें उपच्चार में बाधायें उत्पनकरती हैं, आरोग्य मे वाघा कर घोर निराशा उत्पन्न करती हैं, व साघय रोग को असघ्य कर देती हैं। Prakriti ke Niyam ke anusar कोइ भी वस्तु जिस रंग की होती हैं वह उस रंग की इसलिए दिखाई पड़ती है क्योंकि वह सवकिरणो कोअपने में सोख कर केवल उसी रंग को परावर्तित कर देती हे, जिस -रंग की वह दिखाई दे रही होती है t लाल रंग का गुलाब पुष्प हमे लाल रंग का इसलिये दिखाई देता है, क्योंकि वह अन्य सभी रंगों क्रो अवशोषित कर केवल लाल रंग क्रो बिकर्थित कर देता है । यह प्रकृति न्यूटन के नियम, ‘Similar poles repel each other.’ अर्थात् "समान घुव एक दूसरे को विकर्षिव्र करते है' पर आधारित है । अत: जब रोगी व्यक्ति का एक्स-रे किया जाता है, तो इस सिद्घान्त के आधार पर शरीर में पहले से ही मौजूद पराबैंगनी किरणे एक्स किरणों को विकर्षित कर देती हैं, और एक्स-रे की 'रिपोर्ट' साभान्य आती है, तथा रोगी की आंतरिक खराबी या तकलीफ का पता नही चलता, जबकि रोगी उस पीड़ा को भोग रहा होता है । इस्री प्रकार शरीर मे मोजूद पराबैगनी किरणे 'पेथोलॉंजिकल' जांचों को भी शरीर की आंतरिक गडबड्रियों क्रो उजागर नही करने देती, अत: ऐसी जांचों का परिणाम हमेशा 'नॉर्मल' अर्थात् सामान्य आता है । ऐसी स्थिति में व्यक्ति एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के पास तथा एक डायब्वनोस्टिक्र लेब से दूसरी डायज्जनौस्टिक लेब मे जाता रहता है, पर न तो उसके रोग का ही सही निदान हो पाता है, और न किसी प्रकार की औषधियों या उपचार पद्धतियों से उसके रोग का समापन ही हो पाता है जब व्यक्ति चिकित्सा बिज्ञान क्रो आजमाकर निराश हो जाता है, तो वह मंत्र-तंत्र अथवा ज्योतिष जैसे विज्ञानों की मदद लेता है । मंत्र-तंत्र विशेषज्ञ द्धारा मंत्र के निरन्तर जप से उत्पन्न मंत्रशक्तिमय किरणे और ब्रह्माण्ड से प्राप्त पराबैगनी किरणे, दोनो चूंकि एक ही तरंगन्देर्ध्व पर काम करती हैं, अत: पराबैगनी किरणे मंत्ररश्मियो क्रो भी रोक देती है, और मंत्र-तंत्र चिकित्सा से भी कोई बिशेष लाभ नहीं होता । मंत्ररस्मियां शरीर में
उपस्थित पराबैगनी किरणों से टकराती हैं, और समाप्त हो जाती है । ऐसे समय मे पीडित व्यक्ति ज्योतिषी देवज्ञ से परामर्श करता है जीवन मेंराहु की अन्तर्दशा पहले आती है, उसके बाद ही वृहस्पति (गुरु) की दशा का आगमन होता हे I राहु के समय के दौरान व्यक्ति धोखेबाजी और जालसाजी के ही संपर्क में आ पाता है, चाहे वे मंत्र-तंत्र. चिकित्सा, ज्योतिष किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो । और इस प्रकार व्यक्ति का समय व धन बर्बाद ही होता है
यद्यपि वह निराश हो चुका होता है, लेकिन समाधान की प्रबल आवश्यकता उसे एक के बाद दूसरा दरवाजा खटखटाने को बाध्य कर देती है I जब तक राहु का समय चल रहा होता है, तब तक वह लगातार यहां से वहां और इधर से उधर भटकता रहता है I इस समय के दौरान यदि यह किसी अच्छे ज्योतिषीके संपर्क में आ भी जाता है, जो पराबैगनी किरणों का अवरोधक प्रभाव उपाय के द्वारा उसकी जन्मकुषडली का भलीभांति विश्लेषण करने के वाद उसकी समस्या का समाधान कर सकता हो परन्तु राहु उसे सही ज्योतिषी से परामर्श लेने नहीं देता और वह गलत ज्योतिषीय निदान कर बैठता हे I ऐसे समय में उदाहरण के लिये यदि ईराक-अमेरिका युद्ध को देखें, तो हमे ज्ञात होगा कि जब 'स्कड' (Skud) नामक 'मिसाइल‘ या आग्नेयास्त्र चलाया जात्ता था, तो उसे 'पैट्रियांट' (Patriot) नामक आग्नेयास्त्र मारकर गिरा देता था । इसी प्रकार का विवरण रामायण, महाभारत व हमारे अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी है, जिसमे जब एक ओर से एक विनाशकारी वाण चलाया जाता था, तो उसे दूसरी ओर से एक विध्वंसक विपरीत वाण संधान द्वारा नष्ट कर दिया जाता था । एक प्रकार से देखा जाये, तो वर्तमान युग की मिसाइलें हमारी प्राचीन मिसाइलों (बाणों) का ही आधुनिक संस्करण है I
यदि मंत्ररश्मियों क्रो 'स्कड' मिसाइल मान ले, तो राहु रश्मियां ‘पैट्रियॉट' का काम करती हे I यही कारण है, कि राहु की अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में मंत्र-तंत्र का लाभ प्रतीत नहीं होता । वास्तव पे मंत्र तो अपना ज्योतिष विद्या उपायों फे बिना उसी प्रकार है, जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर । महर्षि पराशर ने उपायों पर बहुत अधिक बल दिया है । उन्होंने जो उपाय सुझाये, उनमें जरूरत्तमन्दो व याचकों को भोजन कराना, रत्न पहनना, यंत्र धारण करना, ग्रह विशेष के तांत्रोक्त मंत्र का जप करना व औषधीय ज़ड्रीडबूटियों से स्नान करना इत्यादि उपाय शामिल हैं I इन सभी का विस्तृत विवेचन किया है लाल किताब के अनुसार भी उपाय भी प्रभाव शाली है दान के पीछे तर्क यह है, कि इससे रोग क्रो आरोग्य न होने के लिये जिम्मेदार किरणों को विकर्षित किया जा सकता है तथा पीडित व्यक्ति को लाभ पहुंचाया जा सकता है ।हमारे महर्षिगण, जो उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे, उन्होंने विभिन्न तरंगदेथ्यों के प्रभाव का अध्ययन किया, और उसी आधार पर विभिन्न वस्तुओं की तरंगदेर्ध्व के निर्धारण मेँ समर्थ हुए तथा उन्होंने ऐप्ती विशिष्ट वस्तुओ का ही वितरण जरूरत्तमन्दो में करने का परामर्श दिया a दान की इस प्नब्रिज्या का दोहरा लाभ होता है
अर्थात् व्यक्ति पेट की क्षुधा को शांत करने के लिये कौन सा पाप नहीं कर सकता? अत: एक और भूखे व जरूरतमंद लोगों को भोजन कराकर, जहां व्यक्ति उन्हें चोरी, डकैती, हिंसा, छोना-झपटी, लूटमार व अन्य आपराधिक कृत्यों को करने से बचा सकता है, वही दूसरी ओर दान प्राप्त करने वाले की आत्मा का अवचेतन भाग, निश्चित रूप से दानी व्यक्ति को आशीर्वाद देता है, और उसकी तक्लीफ या पीडा कम होने जातीहै
अपने पास से पैसा निकालकर दूसरों पर खर्च करना बहुत मुश्किल है, परन्तु ऐसा करने वाला सदैव सुखी जीवन भोगता है लोक ओर परलोक के सुख पाता है
इस तथ्य पर पिछले लेखों में पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है कि राहु की किरणे अदृश्य होतो हैं I वे मानवजाति को गुप्त रूप से प्रभावित करती हैं । अत: जब व्यक्ति की राहु की दशा या अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा चल रही होती है, तब परावैगनी किरणे शरीर में विद्यमान होतो हैं I यदि व्यक्ति इस समय दोरान किसी रोग से पीडित होता है, तो शरीर में पहले से विद्यमान राहु की किरणे में न तो दवाई क्रो काम करने देती हैं, और न ही रोगी को ऊन्य किसी "उपचार से ठीक होने देती हैं I शनि से संबंधित चर्चा के अन्तर्गत यह जा चुका है, किं रुनि विलम्ब का ग्रह है, रुकावट का ग्रह है, और राहु के लिये "शनिवत राहु राहु 'सूत्र का प्रयोग किया गया है , कि राहु शनि की भांति कार्य करता है । परन्तु राहु किरनें (परावैगनी किरणे) शनि की किरणों से ना केवल ज्यादा ताकतवर हें,ओर अदुश्व भी हें, अत: यदि शनि विलम्ब का कारक हैं, तो उससे भी अदिक विलम्ब का कारक है जो अपनी अद्श्य प्रकृतिक्श विलम्व के कारण रोग का कारण भी पता चलने नही देता यदि शनि रुकावट का कारक है, तो राहु उ्स्से भी अघिक शक्तिशाली तथा अदृश्य वाघा का जनक है यद्यपि शनि निराशा का ग्रह है, तो राहु घोर निराशा को चरमशिखर घर पहुंचादेने वाला छायाग्रह है I अत: यदि रोगी क्री राहु की महादशा अंतर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो, तो उसके शरीार में विद्यमान राहु की adrishya Paraवैगनी किरणे उनकें उपच्चार में बाधायें उत्पनकरती हैं, आरोग्य मे वाघा कर घोर निराशा उत्पन्न करती हैं, व साघय रोग को असघ्य कर देती हैं। Prakriti ke Niyam ke anusar कोइ भी वस्तु जिस रंग की होती हैं वह उस रंग की इसलिए दिखाई पड़ती है क्योंकि वह सवकिरणो कोअपने में सोख कर केवल उसी रंग को परावर्तित कर देती हे, जिस -रंग की वह दिखाई दे रही होती है t लाल रंग का गुलाब पुष्प हमे लाल रंग का इसलिये दिखाई देता है, क्योंकि वह अन्य सभी रंगों क्रो अवशोषित कर केवल लाल रंग क्रो बिकर्थित कर देता है । यह प्रकृति न्यूटन के नियम, ‘Similar poles repel each other.’ अर्थात् "समान घुव एक दूसरे को विकर्षिव्र करते है' पर आधारित है । अत: जब रोगी व्यक्ति का एक्स-रे किया जाता है, तो इस सिद्घान्त के आधार पर शरीर में पहले से ही मौजूद पराबैंगनी किरणे एक्स किरणों को विकर्षित कर देती हैं, और एक्स-रे की 'रिपोर्ट' साभान्य आती है, तथा रोगी की आंतरिक खराबी या तकलीफ का पता नही चलता, जबकि रोगी उस पीड़ा को भोग रहा होता है । इस्री प्रकार शरीर मे मोजूद पराबैगनी किरणे 'पेथोलॉंजिकल' जांचों को भी शरीर की आंतरिक गडबड्रियों क्रो उजागर नही करने देती, अत: ऐसी जांचों का परिणाम हमेशा 'नॉर्मल' अर्थात् सामान्य आता है । ऐसी स्थिति में व्यक्ति एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के पास तथा एक डायब्वनोस्टिक्र लेब से दूसरी डायज्जनौस्टिक लेब मे जाता रहता है, पर न तो उसके रोग का ही सही निदान हो पाता है, और न किसी प्रकार की औषधियों या उपचार पद्धतियों से उसके रोग का समापन ही हो पाता है जब व्यक्ति चिकित्सा बिज्ञान क्रो आजमाकर निराश हो जाता है, तो वह मंत्र-तंत्र अथवा ज्योतिष जैसे विज्ञानों की मदद लेता है । मंत्र-तंत्र विशेषज्ञ द्धारा मंत्र के निरन्तर जप से उत्पन्न मंत्रशक्तिमय किरणे और ब्रह्माण्ड से प्राप्त पराबैगनी किरणे, दोनो चूंकि एक ही तरंगन्देर्ध्व पर काम करती हैं, अत: पराबैगनी किरणे मंत्ररश्मियो क्रो भी रोक देती है, और मंत्र-तंत्र चिकित्सा से भी कोई बिशेष लाभ नहीं होता । मंत्ररस्मियां शरीर में
उपस्थित पराबैगनी किरणों से टकराती हैं, और समाप्त हो जाती है । ऐसे समय मे पीडित व्यक्ति ज्योतिषी देवज्ञ से परामर्श करता है जीवन मेंराहु की अन्तर्दशा पहले आती है, उसके बाद ही वृहस्पति (गुरु) की दशा का आगमन होता हे I राहु के समय के दौरान व्यक्ति धोखेबाजी और जालसाजी के ही संपर्क में आ पाता है, चाहे वे मंत्र-तंत्र. चिकित्सा, ज्योतिष किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो । और इस प्रकार व्यक्ति का समय व धन बर्बाद ही होता है
यद्यपि वह निराश हो चुका होता है, लेकिन समाधान की प्रबल आवश्यकता उसे एक के बाद दूसरा दरवाजा खटखटाने को बाध्य कर देती है I जब तक राहु का समय चल रहा होता है, तब तक वह लगातार यहां से वहां और इधर से उधर भटकता रहता है I इस समय के दौरान यदि यह किसी अच्छे ज्योतिषीके संपर्क में आ भी जाता है, जो पराबैगनी किरणों का अवरोधक प्रभाव उपाय के द्वारा उसकी जन्मकुषडली का भलीभांति विश्लेषण करने के वाद उसकी समस्या का समाधान कर सकता हो परन्तु राहु उसे सही ज्योतिषी से परामर्श लेने नहीं देता और वह गलत ज्योतिषीय निदान कर बैठता हे I ऐसे समय में उदाहरण के लिये यदि ईराक-अमेरिका युद्ध को देखें, तो हमे ज्ञात होगा कि जब 'स्कड' (Skud) नामक 'मिसाइल‘ या आग्नेयास्त्र चलाया जात्ता था, तो उसे 'पैट्रियांट' (Patriot) नामक आग्नेयास्त्र मारकर गिरा देता था । इसी प्रकार का विवरण रामायण, महाभारत व हमारे अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी है, जिसमे जब एक ओर से एक विनाशकारी वाण चलाया जाता था, तो उसे दूसरी ओर से एक विध्वंसक विपरीत वाण संधान द्वारा नष्ट कर दिया जाता था । एक प्रकार से देखा जाये, तो वर्तमान युग की मिसाइलें हमारी प्राचीन मिसाइलों (बाणों) का ही आधुनिक संस्करण है I
यदि मंत्ररश्मियों क्रो 'स्कड' मिसाइल मान ले, तो राहु रश्मियां ‘पैट्रियॉट' का काम करती हे I यही कारण है, कि राहु की अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा में मंत्र-तंत्र का लाभ प्रतीत नहीं होता । वास्तव पे मंत्र तो अपना ज्योतिष विद्या उपायों फे बिना उसी प्रकार है, जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर । महर्षि पराशर ने उपायों पर बहुत अधिक बल दिया है । उन्होंने जो उपाय सुझाये, उनमें जरूरत्तमन्दो व याचकों को भोजन कराना, रत्न पहनना, यंत्र धारण करना, ग्रह विशेष के तांत्रोक्त मंत्र का जप करना व औषधीय ज़ड्रीडबूटियों से स्नान करना इत्यादि उपाय शामिल हैं I इन सभी का विस्तृत विवेचन किया है लाल किताब के अनुसार भी उपाय भी प्रभाव शाली है दान के पीछे तर्क यह है, कि इससे रोग क्रो आरोग्य न होने के लिये जिम्मेदार किरणों को विकर्षित किया जा सकता है तथा पीडित व्यक्ति को लाभ पहुंचाया जा सकता है ।हमारे महर्षिगण, जो उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे, उन्होंने विभिन्न तरंगदेथ्यों के प्रभाव का अध्ययन किया, और उसी आधार पर विभिन्न वस्तुओं की तरंगदेर्ध्व के निर्धारण मेँ समर्थ हुए तथा उन्होंने ऐप्ती विशिष्ट वस्तुओ का ही वितरण जरूरत्तमन्दो में करने का परामर्श दिया a दान की इस प्नब्रिज्या का दोहरा लाभ होता है
अर्थात् व्यक्ति पेट की क्षुधा को शांत करने के लिये कौन सा पाप नहीं कर सकता? अत: एक और भूखे व जरूरतमंद लोगों को भोजन कराकर, जहां व्यक्ति उन्हें चोरी, डकैती, हिंसा, छोना-झपटी, लूटमार व अन्य आपराधिक कृत्यों को करने से बचा सकता है, वही दूसरी ओर दान प्राप्त करने वाले की आत्मा का अवचेतन भाग, निश्चित रूप से दानी व्यक्ति को आशीर्वाद देता है, और उसकी तक्लीफ या पीडा कम होने जातीहै
अपने पास से पैसा निकालकर दूसरों पर खर्च करना बहुत मुश्किल है, परन्तु ऐसा करने वाला सदैव सुखी जीवन भोगता है लोक ओर परलोक के सुख पाता है
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