शनिदेव कर्मफल दाता और मोक्ष प्रदान करने वाले ग्रह माने गए हैं। कुछ ज्योतिषी शनिदेव को न्यायधीश कहते है। दरअसल शनि देव न्यायधीश नहीं है बल्कि वह मुजरिम को पकड़कर वह जलाद है जो फांसी पर चढ़ा कर सजा देता है
न्यायधीश फैसला सुनाता है और शनिदेव पकड़ कर उसको उसके कर्मों की सजा देता है अभी शनि धनु राशि में स्थित है मित्रों शनिदेवल बक्री होकर चल रहे हैं शुक्रवार को शनि पुन: वक्री से मार्गी होंगे।24 जनवरी 2020 को धनु राशि से मकर राशि में जाएंगे जिसके कारण जैसा कि शनि प्राकृतिक राशि चक्र में धर्म-कर्म के नवें भाव से गोचर कर रहा हैआपकी जिंदगी में बहुत फेरबदल होनेवाला है. लगभग साढ़े चार महीना से शनि ग्रह वक्री थे यानी उल्टी चाल में थे और इंसान की जिंदगी को सबउलट पलट के रख दिया था. पिछले 18 अप्रैल को वक्री हुए थे. 6 सितम्बर को मार्गी होकर सीधी चाल में आएंगे. गुरुवार से सब अच्छा होगा यानी एक सप्ताह सब कष्ट कम होंगे. जिनका शनि भारी है, उनको इससे आराम मिलेगा.शनि के कष्टों से आराम मिलेगा. इसलिए वह आपके बुरे कर्मों के संचय को दूर करने और जीवन में सकारात्मकता लाने में मदद करेगा। सकारात्मकता बढ़ने के कारण आपको कार्यक्षेत्र, भाग्य, लंबी दूरी की यात्रा व विदेश यात्राओं में अधिक आसानी से सफलता प्राप्त हो सकती है| इस अवधि के दौरान आपकी ज़िम्मेदारी की भावना बढ़ेगी और आप मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता को अधिक पसंद करेंगे| जीवन में एक नई वास्तविकता का अनुभव करने हेतु शुभ बृहस्पति की धनु राशि में शनि का यह गोचर आपके सकारात्मक विचारों को बढ़ाने में मदद करेगा|06 सितम्बर 2018 को शनि मार्गी होकर 27 नवम्बर 2018 को फिर से पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में आ जायेंगे। करीब 154 दिन पूर्वाषाढ़ा में मार्गी रहकर शनि 30 अप्रैल 2019 को वक्री हो जाएंगे और करीब 141 दिन पूर्वाषाढ़ा में वक्री रहकर 18 सितम्बर 2019 को मार्गी हो जाएंगे। 26 दिसम्बर 2019 को शनि उत्तराषाढा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे और 24 जनवरी 2020 को मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे।
लोगों को यह जानने की उत्सुकता है की शनि के गोचर से उनके जीवन में क्या प्रभाव पड़ेगा। मित्रों आपकी कुंडली और गोचर मिलाकर ही फलकथन किया जा सकता है अकेला गोचर कभी भी फलदाई नहीं होता फलदीपिका, जातक पारिजात जैसे महान ज्योतिष ग्रंथों में एक बहुत सरल तरीका बताया हुआ है की जन्म चन्द्रराशि से 3, 6, 11 राशि में शनि का गोचर शुभ होता है यदि क्रमशः वेध स्थान 12, 9, 5 में कोई अन्य ग्रह न हो। उदाहरणार्थ तुला राशि के लिए धनु का शनि 3वे होकर शुभ होना चाहिए अगर 12वे कन्या में कोई ग्रह (सूर्य के अतिरिक्त) गोचर न कर रहा हो।
परन्तु किसी ग्रह के गोचर का मनुष्य पर प्रभाव सिर्फ जन्म लग्न अथवा जन्म राशि देखकर बताना असंभव है। इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है। साथ ही शनि के अलावा 8 और ग्रह हैं जिनके गोचर का प्रभाव आपको देखना होगा।
मैं आपको एक छोटा सा सूत्र देता हूँ जिसको आप खुद अपनी कुंडली में देख सकते हैं की शनि का गोचर आपको कैसा फल देगा। इसके लिए आप अपनी कुंडली में शनि का अष्टकवर्ग देखिये। इस अष्टक वर्ग में देखिये की धनु राशि में कितने बिंदु/रेखा/अंक हैं। अगर यह संख्या 0, 1, 2, 3 है तो सामान्यतः अशुभ फल मिलेगा, अगर संख्या 4 है तो मिला जुला, 5, 6, 7, 8 है तो शुभ फल मिलेगा। ऐसा आप अनुमान लगा सकते हैं।
अतः अगर आपकी चन्द्र राशि तुला, कर्क, कुम्भ है और आपकी कुंडली में शनि के अष्टक वर्ग में 5 से 8 बिंदु हैं तो आप शनि के धनु राशि में गोचर से अच्छे फल की आशा कर सकते हो।
धनु राशि अग्नितत्व, द्विस्वभाव राशि है . धनु राशि में स्थित होकर शनि तृतीय दृष्टि से कुम्भ राशि को प्रभावित करेंगे जो उनकी मूलत्रिकोण राशि है। ज्यादा अशुभ प्रभाव नहीं रहेगा। सप्तम दृष्टि से मिथुन राशि को देखेंगे जो उनके मित्र बुध की राशि है। शनि की दशम दृष्टि कन्या पर रहेगी जो फिर से बुध की ही राशि है ।
यह याद रखियेगा की शनि ग्रह गोचरवश राशि के अंतिम भाग में अर्थात 20 डिग्री से 30 डिग्री विशेष प्रभाव या फल उत्पन्न करते हैं
शनि गोचर अरिष्ट जानने की कुछ विशेष विधि
षष्ठेश, अष्टमेश और द्वादशेश के स्फुटों को जोड़कर जो राशि आये उस राशि में अथवा त्रिकोण राशि में जब गोचर का शनि आता है तो अरिष्ट होता है।
उदाहरणार्थ किसी जातक का कर्क लग्न है और षष्ठेश गुरु तुला राशि में 07 डिग्री 20 मिनट 24 सेकंड में स्थित है अतः गुरु का स्फुट हुआ 187। 20। 24 . अष्टमेश शनि कन्या राशि में और द्वादशेश बुध मिथुन राशि में हैं जिनके स्फुट क्रमशः 172। 32। 04 तथा 78। 55। 42 है . इनको जोड़कर योग बनता है 438। 48। 10 अर्थात मिथुन राशि मीन नवमांश . ऐसे जातक के लिए शनि का तुला राशि, कुम्भ राशि तथा मिथुन राशि में गोचर विशेष अरिष्टदायक होगा एक उदाहरण से समझे. नवम्बर 2011 से नवम्बर 2014 जब शनि तुला राशि में गोचर कर रहे थे उस समय जातक को मृत्युतुल्य कष्ट हुआ .
प्राण स्फुट (लग्न स्फुट को 5 से गुणा कर उसमें मान्दि स्फुट जोड़कर जो फल आये), देह स्फुट (चन्द्र स्फुट को 8 से गुणा कर उसमें मान्दि स्फुट जोड़कर जो फल आये) और मृत्यु स्फुट (मान्दि स्फुट को 7 से गुणा कर उसमें सूर्य स्फुट जोड़कर जो फल आये) को जोड़कर जो राशि आये उस राशि पर जब गोचरवश शनि आता है तो धन का क्षय होता है तथा उस राशि के त्रिकोण में अथवा नवांश में जब शनि आता है तो अरिष्ट होता है।
गुलिक स्फुट से शनि स्फुट घटाकर जो राश्यादि हो नवांश वा त्रिकोण में जब शनि आता है तो अरिष्ट होता है। अगर आपको सटीक फलादेश चाहिए तो आपको अपने जन्म कुंडली का किसी विद्वान से सूक्ष्म अध्ययन कराना चाहिए। आपका जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, शनि नक्षत्र, बाकी 8 ग्रहों की स्तिथि, अष्टकवर्ग आदि देखने के बाद ही सटीक फलादेश संभव है। आचार्य राजेश
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