https://youtu.be/9WaPJ7ofLsgज्योतिष योगों में एक सुवि यात योग गजकेसरी योग है। जन्मपत्री देखते हुए जातक को जब ज्योतिषी कहता है कि आपके दुर्लभ गजकेसरी योग हैतो जातक के होंठ ही नहीं आँखें भी मुस्कुराने लगती हैं। जातक या जानेकि हाथी के दांँत खाने के और तथा दिखाने के और है
।गजकेसरी योग का अगर शाविदक अर्थ लें तो यह योग गज एवं केसरीके संयुक्त होने से बना है। गज का अर्थ हाथी एवं केसरी का अर्थ शेर से हैयानि जंगल में जो स्थिति गज अथवा सिंह की होती है वही स्थिति जातककी समाज में होती है। पुरातन ग्रंथ इसके बारे में लिखते हैं किचन्द्र-मन, गुरु-ज्ञान तो जब मन को ज्ञान रूपी प्रकाश मिल जाता है तो जातक को अध्यात्मिक शान्ति मिलती है चन्द्र माता और गुरु घर के बड़े बुजुर्ग इन दोनों कासाथ यदि जातक को मिल जाए तो जातक केजीवन में हर प्रकार से लाभ देने वाले सिद्ध होते है| चन्द्र के दूध में जब गुरु का केसर मिल जाता है तो वो दूध कई गुना ताकतवरऔर लाभ देने वाला बन जाता है| लेकिन इन दोनों केपूर्ण रूपसे शुभ लाभ जातक को प्राप्त हो उसके लिय इन दोनों की सिथ्ती काफी मायने रखती है जैसे की इन दोनों में से कोई मारक भाव का स्वामी न हो और इन दोनों में से कोई एक नीच का न हो क्योंकि ऐसे में इनका ये योग मान्य नही होगा क्योंकि जैसे शरीर में जिगर गुरु होता है औरपानी चन्द्र जब भी हम दूषित पानी पियेंगे धीरे धीरे वो हमारे लीवर में खराबी करेगा उसी प्रकार यदि एक खराब अवस्था मेंहुआ तो दुसरे के फल में भी कमी करेगा|
दूसरा उदाहरण जैसे की चन्द्र यानी हमारी माता बहुत अच्छी है लेकिन घर के जो बुजुर्ग है उनको गलत लत लगी हुई है तो वो धन दौलत का भी मिटा देंगे यानी जातक को धन तो मिलेगा नही साथ ही जातक की माता भी दुखी रहेगी |कहने का अभिप्राय है की दोनों ग्रहों का पूर्णरूप से शुभ फल जातक को प्राप्त होने के लिय दोनों की सिथ्ती अच्छी होनी जरुरी है| साथ ही आपको ये देखना भी जरुरी है की कुंडली के किस भाव में इनदोनों का योग बन रहा है| त्रिक भाव में इन दोनों का योगमान्य नही होता शुभ रूप में| साथ इनदोनों ग्रहों में डिग्री केहिसाब से बलि होना जरुरी है इनमे से कोई मिर्त अवस्था मेंहो तो योग मान्य नही होगा |दोनों जितने ज्यादा बलि होंगे जातक को उतने ही ज्यादा शुभ फल जातक को मिलेगे ऐसा जातक विनम्र, उदार, मित्र-रिश्तों एवं समाज में स मान पाने वालाहोता है। ऐसा जातक किसी गांँव, शहर अथवा राष्ट्र का जननायक होता है एवं उसका यश मृत्यु के पश्चात भी अक्षुण्ण रहता है। यदि यह युति शुभभाव राशि में हो तोमेरी राय में योग की यह विशद् व्या या वृहद् स्तर पर ठीक है लेकिनसूक्ष्म स्तर पर चूंकि हर गजकेसरी योग समान रूप से शक्तिशाली नहीं होताअत: ऐसे योगधारी विभिन्न जातकों के लिए यह कितना फलदायी होगा यहअनुसंधान का विषय है। नि:संदेह जंगल में शेर की स्थिति अहम है लेकिनफिर भी शिशुसिंह, युवासिंह एवं वृद्धसिंह की शक्ति में अंतर होता है। स्वस्थएवं लंगड़े शेर की शक्ति में भी आमूलचूल अंतर होता है। ठीक यही बातगजकेसरी पर लागू होती है। लग्न एवं चौथे घर से बनने वाले गजकेसरी केपरिणाम आठवें-ग्यारहवें से बनने वाले गजकेसरी से सर्वथा भिन्न होंगे।गजकेसरी योग है या? जब बृहस्पति चन्द्रमा से केंद्र में अर्थात् साथ मेंअथवा चौथे, सातवें एवं दशवें घर में होता है तो गजकेसरी योग का निर्माणहोता है। यह योग जैसा कि मैंने पहले लिखा है इस बात पर निर्भर करेगा कियह किन-किन लग्नो मेंऔर घरों से बन रहा है। ग्रह कारक है अथवा अकारक, या वहमित्र घर में है एवं किन-किन ग्रहों के साथ है आदि-आदि। इस योग की रेटिंगहर जातक के लिए भिन्न होगी। कहीं यह शतप्रतिशत तो कहीं मात्र पांच प्रतिशतप्रभावी हो सकता है। एक कुशल ज्योतिषी को इसका विवेचन गंभीरता सेकरना चाहिए। एक और बात जो मैंने इस योग के बारे में देखा है कि यहयोग दुर्लभ नहीं है वरन् एक सीधी गणित यह कहती है कि यह योग तैंतीसप्रतिशत जातकों की पत्रिका में मिलता है। बारह राशियों का भ्रमण करते हुएचन्द्रमा एक माह में चार बार बृहस्पति से केंद्र में आता है। ऐसे सभी जातकतो फिर राजातुल्य नहीं होते। गजकेसरी का प्रभाव भोगने वाले जातक तोसैंकड़ों-हजारों में एक होते हैं। यही कारण है कि इस योग की रेटिंग काआंकलन सर्वाधिक मह वपूर्ण है। मात्र इस योग से ही भविष्य बताना गलतहोगा। गजकेसरी अन्य योगों विशेषत: पंचमहापुरुष योगों एवं अन्य अनेकराजयोगों एवं धनयोगों के साथ अधिक फलदायी होते देखा गया है। जैसेविभिन्न ऋतुओं में सूर्य की शक्ति भिन्न है, यही बात गजकेसरी के साथ है।
गजकेसरी योग की रेटिंगनिर्मल आकाश पर दुपहरी में चमकने वाले सूर्य एवं काले बादलों में ढँकेसांझ के सूर्य में होता है। ,जिस तरह सिक्के के दो पहलुलु होते है उसी कोई भी योग अशुभ शुभ हो सकता है देखना होगा का योग कोन से लग्न मे कोन सी राशी या भाव मे है उस हिसाव भाव फल हो जाऐगा शुभ युति का फल - यदि यह युति शुभ राशि मेंहै जकेसरी योग अथवा कोई ाी अन्य योग मात्रतकनीकी स्तर पर उपस्थित होने से प्रभावी एवंशक्तिशाली नहीं होता, अंतत: हर योग की अंतरनिहितपॉवर ही अधिक मह वपूर्ण है। एक प्रतिशत से शतप्रतिशतके मध्य कौन-सा योग कितना शक्तिशाली हैइसका आकलन उसकी पत्री देख कर समझदार ज्योतिषी ही लगा सकता हैउदारन अव तुला ल्गन मे गुरु 3 ओर 6 है वही करकृ मे 6 ओर 9 यानी भाग्य का तो दोनो लगनो मे वनने वाले योग मे अन्तर होगाथोङा ओरा समझते है यदि बृहस्पति किसी समय विशेष में मेष राशि में गोचर कर रहे हैं अथवा मेष राशि में स्थित हैं तो इस राशि में बृहस्पति एक वर्ष तक रहेंगे तथा इस एक वर्ष के बीच जब जब चन्द्रमा मेष, कर्क, तुला अथवा मकर में गोचर करेंगे, जो इनमें से प्रत्येक राशि में लगभग 2-3 दिन तक रहेंगे, तो इस अवधि में जन्म लेने वाले सभी जातकों की कुंडली में गज केसरी योग बनेगा क्योंकि चन्द्रमा के उपरोक्त चारों राशियों में से किसी भी राशि में स्थित होने से मेष राशि में स्थित बृहस्पति प्रत्येक कुंडली में चन्द्रमा से गिनने पर केंद्र में ही आएंगे। इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार गज केसरी योग प्रत्येक तीसरी कुंडली में बनता है तथा एक बार आकाश में उदय होने के पश्चात यह योग लगभग 2-3 तक उदय ही रहता है। इन दोनों में से कोई भी तथ्य व्यवहारिक रूप से सत्य नहीं हो सकता क्योंकि गज केसरी जैसा शुभ फल दायक योग दुर्लभ होता है तथा प्रत्येक तीसरे व्यक्ति की कुंडली में नहीं बन सकता तथा कोई भी दुर्लभ योग बहुत कम समय के लिए ही आकाश में उदित होता है तथा ऐसे योग सामान्यतया कुछ घंटों या फिर कुछ बार तो कुछ मिनटों में ही उदय होकर विलीन भी हो जाते हैं फिर 2-3 दिन तो बहुत लंबा समय है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि गज केसरी योग की परिचलित परिभाषा में बताई गई शर्त इस योग के किसी कुंडली में निर्माण के लिए पर्याप्त नहीं है तथा इस योग के किसी कुंडली मे बनने के लिए कुछ अन्य शर्तें भी आवश्यक होंगीं।किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि किसी कुंडली में गज केसरी योग के निर्माण के लिए कुंडली में बृहस्पति तथा चंद्रमा दोनों का ही शुभ होना आवश्यक है तथा इन दोनों में से किसी भी एक ग्रह के अथवा दोनों के ही किसी कुंडली में अशुभ होने पर उस कुंडली में गज केसरी योग नहीं बन सकता बल्कि इस प्रकार के अशुभ बृहस्पति तथा चन्द्रमा के संयोग से कुंडली में कोई अशुभ योग बन सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा अशुभ गुरु के साथ एक ही घर में स्थित हैं तो इस स्थिति में कुंडली में गज केसरी योग नहीं बनेगा बल्कि शुभ चन्द्रमा के साथ अशुभ गुरु के बैठने से चन्द्रमा को दोष लग जाएगा जिसके कारण जातक को चन्द्रमा की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है तथा इसी प्रकार किसी कुंडली में शुभ गुरू का अशुभ चन्द्रमा के साथ केन्द्रिय संबंध होने पर भी कुंडली में गज केसरी योग नहीं बनता बल्कि शुभ गुरू को अशुभ चन्द्रमा के कारण दोष लग सकता है जिससे जातक को गुरु की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है। किसी कुंडली में सबसे बुरी स्थिति तब पैदा हो सकती है जब कुंडली में गुरु तथा चन्द्रमा दोनों ही अशुभ हों तथा इनमें परस्पर केन्द्रिय संबंध बनता हो क्योंकि इस स्थिति में गुरु चन्द्रमा का यह संयोग कुंडली में गज केसरी योग न बना कर भयंकर दोष बनाएगा जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत हानि उठानी पड़ सकती है।इसलिए किसी कुंडली में गज केसरी योग के निर्माण का निश्चय करने से पहले कुंडली में चन्द्रमा तथा गुरु दोनों के स्वभाव का भली भांति निरीक्षण कर लेना चाहिए तथा दोनों के शुभ होने पर ही इनका संयोग कुंडली में होने पर गज केसरी योग का निश्चय करना चाहिए। यहां पर यह बात ध्यान रखने योग्य है कि किसी कुंडली में वास्तव में गज केसरी योग बन जाने पर भी इस योग से जुड़े सभी उत्तम फल जातक कों मिल हीं जाएं, ऐसा आवश्यक नहीं क्योंकि विभिन्न कुंडलियों में बनने वाला गज केसरी योग कुंडलियों में उपस्थित अनेक तथ्यों तथा संयोगो के कारण भिन्न भिन्न प्रकार के फल दे सकता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा तथा शुभ गुरु के कर्क राशि में स्थित होने पर बनने वाला गज केसरी योग उत्त्म फलदायी हो सकता है जबकि किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा तथा शुभ गुरु के वृश्चिक अथवा मकर राशि में स्थित होने से बनने वाला गज केसरी योग उतना अधिक फलदायी नहीं होता क्योंकि वृश्चिक में स्थित होने से चन्द्रमा बलहीन हो जाते हैं तथा मकर में स्थित होने से गुरु बलहीन हो जाते हैं जिसके कारण इस संयोग से बनने वाला गज केसरी योग भी अधिक बलशाली नहीं होता। इसी प्रकार किसी कुंडली में शुभ चन्द्रमा तथा शुभ गुरु के एक ही घर में स्थित होने पर बनने वाला गज केसरी योग ऐसे चन्द्रमा तथा गुरु के परस्पर सातवें घरों में स्थित होने से बनने वाले गज केसरी योग की तुलना में अधिक प्रभाव डालता है।
यदी कर्क लग्न की कुण्डलि है और लग्न में सूर्य और गुरु उदीत है , और चौथे भाव में यानि तुला राशि में चंद्रमा है तो गजकेसरी योग बनता है कीन्तु लग्न का गुरु 1' अँश का है तो यह योग कितना प्रभावी होगा या जातक को इसका लाभ कब तक मिल पाएगा।
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