जिंदगी है तो संघर्ष हैं, तनाव है, ख़ुशी है, डर है। लेकिन अच्छी बात यह है कि ये सभी अनित्य हैं। समयरूपी नदी के प्रवाह में सब प्रवाहमान हैं।
इसलिए कोई भी परिस्थिति चाहे ख़ुशी की हो या ग़म की, कभी स्थाई नहीं होती,
वह समय के अविरल प्रवाह में विलीन हो जाती है
ऐसा अधिकतर होता है कि जीवन की यात्रा के दौरान हम अपने आप को कई बार दुःख, तनाव, चिंता, डर, हताशा, निराशा,भय, रोग इत्यादि के मकडजाल में फंसा हुआ पाते हैं।
और हम तत्कालिक परिस्थितियों के इतने वशीभूत हो जाते हैं कि दूर-दूर तक देखने पर भी हमें कोई प्रकाश की किरण मात्र भी दिखाई नहीं देती। दूर से चींटी की तरह महसूस होने वाली परेशानी हमारे नजदीक आते-आते हाथी के जैसा रूप धारण कर लेती है। हम उसकी विशालता और भयावहता के आगे समर्पण कर परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी हो जाने देते हैं । यही परिस्थिति हमारे पूरे वजूद को हिला डालती है, हमें हताशा, निराशा के भंवर में उलझा जाती है। हमे एक-एक क्षण पहाड़ सा प्रतीत होता है और हम में से ज्यादातर लोग आशा की कोई किरण ना देख पाने के कारण हताश होकर परिस्थिति के आगे अपने हथियार डाल देते हैं।
इसलिए मैं यही कहूँगा की अगर हम किसी भी अनजान, निर्जन रेगिस्तान मे फँस जाएँ तो उससे निकलने का एक ही उपाय है, बस हम चलते रहें। क्योंकि अगर हम नदी के बीच जाकर अपने हाथ पैर नहीं चलाएँगे तो निश्चित ही डूब जाएंगे।
इसलिये हमारे जीवन मे कभी ऐसे क्षण भी आते है, जब लगता है की बस अब कुछ भी बाकी नहीं है, तब हमें ऐसी परिस्थिति में अपने आत्मविश्वास और साहस से सिर्फ डटे रहना चाहिए क्योंकि हर चीज का हल होता हैं,आज नहीं तो कल आता हैं ।जय माता दी शुभरात्रि मित्रों
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