शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

मंत्र विज्ञान और भौतिक विज्ञान

मंत्र होते है असीम शक्तियों के स्वामी अब विज्ञान भी है मानता“मन्त्र” से तात्पर्य  एक विशिष्ट प्रकार के संयोजित वर्णों के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि सेभौ है… और, वह ध्वनि ही हमारे शरीर के विभिन्न स्थानों में स्थिति अन्तश्चक्रों को ध्वनित कर…. जाग्रत एवं प्रखर ऊर्जावान बनाकर आत्मशक्ति एवं जीवनी शक्ति का विकास करती है.सारे मंत्र सारे संस्‍कृत के अक्षरों से बने है। और प्रत्‍येक अक्षर मूलत: ध्‍वनि है, और प्रत्‍येक ध्‍वनि एक तरंग है।

भोतिक विज्ञान मानती है कि आस्‍तित्‍व तरंगों से बना हुआ है। ध्‍वनि दो प्रकार की होती है। आहत और अनाहत। मन से जैसे ही विचार उठा, कल्‍पना उभरी, वैसे ही ध्‍वनि पैदा होती है: लेकिन यह ध्‍वनि सुनाई नहीं देती दूसरी ध्‍वनि है जो दो वस्‍तुओं के आघात से उत्‍पन्‍न होती है। यह ध्‍वनि आहत है, श्रवणीय है। सूक्ष्‍म तल पर ध्‍वनि आहत है, श्रवणीय है। सूक्ष्‍म तल पर ध्‍वनि प्रकाश बन जाती है। इसलिए उसे पश्‍यन्‍ती कहते है।तंत्र कहता है, प्रत्‍येक वस्‍तु गहरे में ध्‍वनि तरंग है। इस लिए पूरी साकार सृष्‍टि ध्‍वनियों के विभिन्‍न मिश्रणों का परिणाम है। ध्‍वनि के इस सिद्धांत से ही मंत्र शास्‍त्र पैदा हुआ है। मंत्र की शक्‍ति उसके शब्‍दों के अर्थ में नहीं है। उसकी तरंगों की सघनता में है। ध्‍वनि सूक्ष्‍म तल पन प्रकाशबन जाती है। और उसके रंग भी होते है। जो सामान्‍य चक्षु को नहीं दिखाई देते। तांत्रिक यंत्र ऊपर से देखने पर ज्‍यामिति की भिन्‍न-भिन्‍न आकृतियां दिखाई देती है। लेकिन यंत्र का रहस्‍य समझने के लिए ज्‍यामिति की रेखाओं के पार जाना पड़ेगा। यंत्र एक शक्‍ति का रेखांकन है। वह विशिष्‍ट वैशिवक शक्‍ति का एक प्रकटीकरण है।यंत्र की रेखाएं, कोण, बिंदु और इनका आपसी संबंध, इनका राग-रागिनियों से गहरा रिश्ता है। जैसे हर राम के सुनिश्‍चित सुर होते है, उनका परस्‍पर मेल होता है वैसे यंत्र की रेखाओं का आपसी स्‍वमेल होता है।ध्यान रखें कि मंत्रों की शक्ति असीम है क्योंकि, मंत्र एक वैज्ञानिक विचारधारा हैइस विज्ञान को ठीक से समझने के लिए…. आप किसी गाने का उदाहरण ले सकते हो जिस प्रकार हम किसी रोमांटिक गाने को सुनकर प्यार की दुखद गाने को सुनकर दुःख की और, देशभक्ति गाने को सुनकर ओज का अनुभव करते हैं उसी प्रकार विभिन्न मंत्रोच्चार का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होता हैअसल में आधुनिक भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार मन्त्रों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं

(1) शब्दों की ध्वनि

(2) आंतरिक विद्युत धारा… इसे विज्ञान की पारिभाषित शब्दावली में “अल्फा तरंग” भी कहा जा सकता है।

गौर करने लायक बात यह है जब किसी मंत्र का उच्चारण किया जाता हैतो  उस से ध्वनि उत्पन्न होती हैऔर, उस ध्वनि के उत्पन्न होने पर अंत:करण में कंपन उत्पन्न होता है तथा, यह ध्वनि कंपन के कारण तरंगों में परिवर्तित होकर वातावरण में व्याप्त हो जाती है  एवं, इसके साथ ही आंतरिक विद्युत भी (तरंगों में) इसमें व्याप्त रहती है।इस तरह यह आंतरिक विद्युत जो शब्द उच्चारण से उत्पन्न तरंगों में निहित रहती है.शब्द की लहरों को व्यक्ति विशेष तथा दिशा विशेष की ओर भेजती है अथवा , इच्छित कार्य में सिद्धि दिलाने में सहायक होती है।यह बात वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा भी मान ली गई है कि  ध्यान, मनन, चिंतन आदि की अवस्था में जब रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप शरीर में विद्युत जैसी एक धारा प्रवाहित होती है (इसे हम शारीरिक विद्युत कह सकते हैं) तथा, मस्तिष्क से विशेष प्रकार का विकिरण उत्पन्न होता है . जिसका नाम “अल्फा तरंग” रखा गया है (इसे हम मानसिक विद्युत कह सकते हैं)यही अल्फा तरंग मंत्रों के उच्चारण करने पर निकलने वाली ध्वनि के साथ गमन कर दूसरे व्यक्ति को प्रभावित कर या इच्छित कार्य करने में सहायक होती हैऔर, वो मंत्र जिस उद्देश्य से जपा जा रहा है, उसमें सफलता दिलाने में यह सहायक सिद्ध होते हैं।g इसे हम वैज्ञानिक भाषा मेंमानसिक विद्युत” या “अल्फा तरंग” को “ज्ञानधारा” भी कह सकते हैं। मनोविज्ञान के विद्वानों ने प्रयोगों और परीक्षणों के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य के मस्तिष्क में बार-बार जिन विचारों अथवा शब्दों का उदय होता है उन शब्दों की एक स्थाई छाप मानस पटल पर अंकित हो जाती है और एक समय ऐसा भी आता है  जब वह स्वयं ही मंत्रमय हो जाता (मंत्र की लय में खो जाता) है और यदि यह विचार आनंददायक हों, मंत्र कल्याणकारी हो,तो इन्हीं के परिणाम मनुष्य को आनंदानुभूति करवाने वाले सिद्ध होते हैं fक्योंकि, कभी-कभी मनुष्य के जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब उसका मन खिन्न एवं दुखी होता है।तो , ऐसा उस मनुष्य के अपने ही पूर्व संचित कर्म के परिणामस्वरूप ही होता हैआपको यह जानकार काफी ख़ुशी होगी कि. अमेरिका के ओहियो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार.सरयुक्त फेफड़ों, आंत, मस्तिष्क, स्तन, त्वचा और फाइब्रो ब्लास्ट की लाइनिंग्स पर जब सामवेद के मंत्रों और हनुमान चालीसा के पाठ का प्रभाव परखा गया. तो , कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि में भारी गिरावट आई.जबकि, इसके विपरीत तेज गति वाले पाश्चात्य और तेज ध्वनि वाले रॉक संगीत से कैंसर की कोशिकाओं में तेजी के साथ बढ़ोतरी हुई।सिर्फ इतना ही नहीं मंत्र चिकित्सा के लगभग पचास रोगों के पांच हजार मरीजों पर किए गए क्लीनिकल परीक्षणों के अनुसार. दमा एवं अस्थमा रोग में सत्तर प्रतिशत स्त्री रोगों में 65 प्रतिशत.त्वचा एवं चिंता संबंधी रोगों में साठ प्रतिशत.उच्च रक्तदाब यानी हाइपरटेंशन से पीड़ितों में पचपन प्रतिशत.आर्थराइटिस में इक्यावन प्रतिशत.डिस्क संबंधी समस्याओं मेंइकतालीसप्रतिशत,. आंखों के रोगों में इकतालीस प्रतिशत तथा एलर्जी की विविध अवस्थाओं में चालीस प्रतिशत का औसत लाभ हुआ.इस तरह हम गर्व से कह सकते हैं किनिश्चित ही हमारे हिन्दू सनातन धर्म के मंत्र चिकित्सा उन लोगों के लिए तो वरदान है . जो पुराने और जीर्ण क्रॉनिक रोगों से ग्रस्त हैंकहा गया है कि जब भी कोई व्यक्ति गायत्री मंत्र का पाठ करता है.तो अनेक प्रकार नाएं इस मंत्र से होती हुई व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं...!यहाँ तककि जर्मन वैज्ञानिक भी कहते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति अपने मुंह से कुछ बोलता है तो , उसके बोलने में सिर्फ 175 प्रकार के आवाज का जो स्पंदन और कंपन होता है.जव, कोई कोयल पंचम स्वर में गाती है तो उसकी आवाज में 500 प्रकार का प्रकंपन होता है ......लेकिन जब दक्षिण भारत के विद्वानों से जब विधिपूर्वक गायत्री मंत्र का पाठ कराया गया......तो यंत्रों के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि गायत्री मंत्र का पाठ करने से संपूर्ण स्पंदन के जो अनुभव हुए. वे 700 प्रकार के थे।इस शोध के बाद. जर्मन वैज्ञानिकों का कहना है कि........ अगर कोई व्यक्ति पाठ नहीं भी करे... और, सिर्फ पाठ सुन भी ले तो भी उसके शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है .क्योंकि इसके अंदर जो वाइब्रेशन है, वह अदभुत है.आप एक प्रयोग करे, किसी राह चलते आदमी को माँ बहन की गाली दे, ये भी एक तरह का भड़काऊ मंत्र है, आप उसका फल 2 मिनिट मे ही अपने गाल पर तमाचे के रूप मे देख लेगे॥हमेशा याद रखें हमारा हिन्दू सनातन धर्म .मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है.क्योंकि यही एक ऐसा धर्म है , जो बुद्धि-विवेक से .और, वैज्ञानिकता से युक्त युक्त है.एवं पुरे समाज के कल्याण हेतु है ! आचार्य राजेश

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