शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

गुरु शुक्र का परिवर्तन यानी परिवार से अदालत तक

 गुरु शुक्र का परिवर्तन यानी परिवार से अदालत तक
गुरु तुला राशि का हो और शुक्र धनु राशि का हो तो गुरु और शुक्र का आपसी परिवर्तन योग माना जाता है। व्यक्ति के अन्दर एक प्रकार से सम्बन्धो को बेलेन्स करने के लिये अनौखी क्षमता का विकास होना शुरु हो जाता है और उन सम्बन्धो को आपसी सहमति से नही सुलझाया जा सकता है वह या तो बडे सामाजिक कारणो से सुलझाया जा सकता है या फ़िर सीधे अदलाती मामले से ही सुलझाया जा सकता है। इन दोनो ग्रहो पर जैसे ही राहु की छाया आती है वैसे ही सम्बन्धो मे किसी न किसी बात से उत्तेजना आनी शुरु हो जाती है और जीवन साथी आपस मे एक दूसरे को शक की नजर से देखना शुरु कर देते है,अक्समात ही एक दिन किसी कमन्यूकेशन या इसी प्रकार की बात पर दोनो मे कहा सुनी हो जाती है बात अगर समाज तक रहती है तो समाज सुलझा सकता है अगर बात अदालत मे चली जाती है तो फ़िर दोनो के अन्दर इस राहु की करामात से अदालती कामो मे अहम के कारण उलझना और वकीलो आदि के कानूनी दाव पेच मे वही कमाइया बरबाद करना जो जीवन को अच्छे क्षेत्र के लिये प्रयोग मे लायी जा सकती थी। यह जातक की कमी से नही माना जाता है और न ही किसी प्रकार की गलत शिक्षा या सामाजिक बदलाव के बारे मे जाना जाता है यह केवल जन्म समय के ग्रह और गोचर से उन पर गलत ग्रहो की मार के कारण ऐसा हो जाता है। तुला राशि भौतिकता की राशि है और व्यापार से सम्बन्ध रखती है। गुरु धर्म और पारिवारिक सम्बन्धो के साथ साथ एक दूसरे के प्रति आस्था रखने वाला ग्रह है। इस ग्रह का तुला राशि मे जाने का मतलब है कि जातक अपने सम्बन्ध को भी व्यापारिक नजर से देखना शुरु कर देता है कि कौन सा सम्बन्ध फ़ायदा देने वाला है और कौन सा सम्बन्ध नुकसान देने वाला है। अक्सर जीवन साथी को कमाई की नजर से देखने वाले लोग जीवन साथी के अन्दर अन्य लोगो से कम्पेयर करने वाले लोग जीवन साथी को दूसरे लोगो का आकार प्रकार बताकर प्रताणित करने वाले लोग इसी गुरु की श्रेणी मे आते है। यह गुरु अगर चौथे भाव मे होता है तो माता का स्वभाव व्यवसायिक हो जाता है और वह माता अपने ही घर मे अपने ही लोगो के साथ यह सोचना शुरु कर देती है कि अमुक सन्तान फ़ायदा देने वाली है और अमुक सन्तान नुकसान देने वाली है इस प्रकार से घर के अन्दर जो भावना चलती है वह भावना एक दूसरे के प्रति गलत हो जाती है घरो के अन्दर बंटवारा होना और घरो के अन्दर एक सदस्य को उत्तम देखना तथा एक सदस्य को नीचा देखना इसी प्रकार के घरो मे देखा जाता है। इसके साथ ही यह गुरु अगर तुला राशि का होकर लगन मे विराजमान हो जाता है तो जातक अपने शरीर और अपने नाम के अनुसार ही अपने को ही व्यापारिक भावना से देखना शुरु कर देता है साथ ही उससे यह भी कहते सुना जा सकता है कि उसके अमुक साथी अमुक कार्य मे आगे बढ गये है और वह अपने स्थान पर अपने को सही रास्ते पर नही ले जा पाआ है इसका एक कारण अक्सर भाग्य को भी कोशने के लिये माना जा सकता है। इस गुरु का प्रभाव तब और भी खराब हो जाता है अगर तुला राशि मे सूर्य भी गुरु के साथ हो और अपनी युति से उन लोगो का साथ मिल जाये जो हमेशा ही नीची राजनीति को बताकर घरो के अन्दर भेद भाव और राजनीति फ़ैलाकर सम्बन्धो को खराब भी कर देते है तथा विवाह आदि के प्रभाव को एक प्रकार की व्यवसायिक भावना से देखने लगते है।शुक्र जब धनु राशि का होकर अगर चन्द्र मंगल की नवम पंचम युति को ले लेता है तो भी जातक के लिये एक प्रकार से सम्बन्धो मे पारिवारिक और सामाजिक मर्यादा का खात्मा हो जाना माना जा सकता है। कारण चन्द्रमा अपनी युति से मंगल को उत्तेजना मे ले जाताहै और विचार हमेशा उत्तेजना से पूर्ण होते है जातक के अन्दर यही भावना रहती है कि इस प्रकार का रिस्ता करने के बाद उसे जीवन मे क्या मिला है अगर उसका रिस्ता अमुक के साथ हो जाता तो वह बहुत बडी हैसियत से या सुखो के अन्दर अपने को ले जा रही होती या ले जा रहा होता। उसके मित्र की पत्नी अधिक कमाने वाली है या उसकी सहेली का पति पैसा कमाने वाला है वह अपने अपने जीवन साथी को हमेशा ही कोशने के लिये अपने फ़ालतू समय मे लगा कर माना जा सकता है। शुक्र का धनु राशि मे होना मर्यादा मे भी और धर्म भी भौतिकता को देखना होता है और इस प्रकार से अगर स्त्री की कुंडली मे शुक्र धनु राशि का है तो जैसे ही राहु की छाया शुक्र पर आती है स्त्री को एक प्रकार से चमक दमक की तरफ़ जाना माना जा सकता है यह चमक दमक उसके परिवारिक जीवन मे एक प्रकार से आग लगा देती है यह बात अक्सर उन लोगो मे भी देखी जाती है जिनके पति या तो मारकेटिंग के कामो से जुडे होते है या दो भाई होकर अपने भाइयों के साथ रहने के लिये मजबूर होते है वे लोग जैसे ही इस प्रकार के कारण स्त्री के अन्दर देखते है पहले तो वे चुप रहते है लेकिन जैसे ही राहु का पूरा प्रकोप शुक्र के साथ होता है वह अपनी अपनी धारणा से उस स्त्री को प्रताणित करने लगते है या अपने उद्देश्य को बताकर किनारा करने की कोशिश करने लगते है। जव भी राहु का प्रकोप धनु राशि पर रहा है जिनकी कुंडली मे धनु राशि का शुक्र है और तुला राशि का गुरु है तथा वे विवाहित जीवन को बिता रहे होते है उनके लिये यह समय बहुत ही कठिन माना जा सकता है इस कारण से अक्सर विवाहित जीवन टूटते माने जा सकते है और स्त्री की कुंडली मे होने से स्त्री को अगर समझौता की नीति का पता है तो ठीक है अन्यथा उसे जीवन भर अन्य पुरुषों के साथ राहु की गति के अनुसार सम्बन्ध बनाना और अपने को जीवन भर एक के बाद दूसरे पुरुषों की शैया को सजाने का काम ही माना जा सकता है। कर्क राशि का राहु जब भी धनु राशि पर आता है तो जातक या जातिका को वैवाहिक जीवन को बरबाद करने के लिये देखा जा सकता है,एक हंसते खेलते परिवार मे अचानक सम्बन्धो के मामले मे विवाद पैदा हो जाते है और शादी सम्बन्ध गेंद की भांति उछाल दिये जाते है।

इन मामलो मे स्त्री को ही पुरुष के प्रति की गयी गल्तियों के लिये अपने को समर्पित करना ठीक माना जाता है,अन्यथा गुरु जो पुरुष का कारक है और स्त्री जो जीवन संगिनी की कारक है का अपने जीवन मे दूषित होना कोई नही रोक सकता है,कानून केवल कुछ समय के लिये राहत दे सकता है लेकिन परिवार समाज सन्तान तथा जीवन का ध्येय कुछ भी नही माना जा सकता है। मित्रों आप की कोई समस्या है और उपाय चाहते हैं तो आप अपनी कुंडली दिखाकर उपाय कर सकते हैं प्रत्येक कुंडली फीस 1100  केवल
[ http://acharyarajesh.in/2019/08/23/%e0%a4%b6%e0%

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कर्म फल और ईश्वर

परमात्मा हमारे/मनुष्यों के कर्मों का फल स्वयं देने नहीं आता। वह ऐसी परिस्थिति और संयोग बनाता है, जहाँ मनुष्य को फल मिल जाता है। यूं कहें कि ...