लाल किताब के अनुसार उम्र का पैंसठवां साल
ग्यारह जमता गद्दी पर सम्मुख अष्टम आजाता,
घर दूसरा तीजे से अपने आप ही जुड जाता,
धर्म तीसरे जाकर बैठे कर्म धर्म को पनपाता,
चौथा अपने ही घर में रहता सम्मुख खर्चा दिखलाता,
गद्दी पंचम में लग जाती,बीमारी ग्यारह भाव भरे,
पंचम छुपजाता छ: में जाकर सप्तम बारहबाट करे,
लालकिताबी वर्षफ़ली का रूप अनौखा देखा है,
मानव जीवन की गाथा है किये कर्म का लेखा है॥
अhttps://youtu.be/3qu9NkJ-vRshttps://youtu.be/3qu9NkJ-vRsर्थ:- पैंसठवें साल में ग्यारहवा भाव पहले भाव में आजाता है,मित्रमंडली से खूब छनने लगती है,जीवन के दूसरे पडाव की मित्रमंडली न तो कुछ लेने वाली होती है और न ही कुछ देने वाली होती है। छुपे रहस्यों को खोजने में सहायता भी करती है,और बात बात में अपमान भी करती है,जितनी भी दूर की बातें होती है सामने आकर खडी हो जाती है। ग्यारहवां भाव बडे भाई की गद्दी भी कहलाता है,जब पहले भाव में यह गद्दी लग जाती है तो अपने को बडे भाई होने का अहसास होने लगता है और जो भी कार्य छोटों के लिये मानसिक रूप से किये जाने होते है वे किये जाते है,पहली गद्दी पर ग्यारह के आसीन होते ही कुटुम्ब सामने आने लगता है,वह कुटुम्ब जो पिता परिवार से जुडा होता है,अन्य रिस्तेदारों की कोई मौका परस्ती काम नही आती है,दखल भी नही होता है। ग्यारह के गद्दी पर आसीन होते ही सातवां घर यानी पत्नी या पति सीधे बारह का रास्ता अपना लेते है,वे या तो यात्रा में रहते है या अपने को दुनिया से कूच करने का कारण पैदा कर लेते है। ग्यारह के गद्दी पर आते ही सातवां सीधे से ग्यारह से लेने की फ़िराक में रहने लगता है वह जो भी लेता है वह केवल लाभ के कारणों के लिये ही माना जाता है,और बारह के अन्दर जो सातवां घर विद्यमान है वह खर्चा भी किराये में बीमारी में रहन सहन में अपनी सन्तान के लिये बीमारी में सन्तान के कर्जा को चुकाने में पुत्र वधू वाले कारणों में खर्चा करने लगता है। ग्यारह के गद्दी पर आते ही आठवां सप्तम में आजाता है,जीवन साथी के कुटुम्ब में किसी प्रकार की मृत्यु या अपमान के बारे में राय देने या लेने की बात सामने आती है,जो भी अपमान जोखिम जीवन साथी के कुटुम्ब से पूर्व में मिला होता है सबके लिये चुकाने का समय सामने होता है,जीवन साथी का प्रभाव शमशानी प्रभाव सा हो जाता है।अगर सामने होता है तो बिच्छू जैसा बर्ताव करने का कारण भी मिलता है। ग्यारहवे के गद्दी पर जाने के बाद धर्म भाग्य का भाव तीसरे में जाकर बैठ जाता है। छोटे भाई बहिनो के पास में पूर्वजों से सम्बन्धित कार्य करने का कारण बनने लगता है,छोटी यात्रायें केवल धार्मिक स्थानों या न्याय वाले घरों में ही होती है। चौथा घर चौथे ही घर में विद्यमान होता है इसलिये एक बार पैदा होने वाले स्थान पर जरूर जाना पडता है। गद्दी पंचम में स्थापित हो जाती है इसलिये सन्तान के घर में निवास करना और सन्तान की सन्तान के प्रति बीमारी आदि से जूझने का समय भी मिलता है,सन्तान के जीवन साथी के प्रति दुश्मनी कर्जा बीमारी से छुटकारे का कारण भी सोचना पडता है। छठे घर में पंचम के बैठने से सन्तान को किये जाने वाले कार्यो में दिक्कत का सामना करना पडता है,अस्पताली कारण बनते रहते है। सन्तान की सन्तान को जीवन साथी के द्वारा आश्रय दिया जाना भी मिलता है। अष्टम का स्थान सप्तम में आजाने से जीवन साथी के प्रति नकारात्मक भाव ही मिलता है,जीवन साथी जीवन के गूढ कारण खोजने और अपमान देने जीवन को क्षति देने के कारणों के प्रति लगाव रखता है,जीवन साथी का किसी प्रकार से तंत्र मंत्र या शमशानी शक्तियों के प्रति लगाव का होना भी माना जाता है। अष्टम भाव में तीसरे घर के आजाने से जो भी अपमान और बीमारी तथा जोखिम वाले कारण होते है उनके अन्दर छोटे भाई बहिन ही छुटकारा दिलवाने के लिये गुप्त रूप से कार्य करते रहते है,अपने को प्रदर्शन के मामले में गुप्त रूप से रहकर ही समय को निकालना पडता है। दसवां घर धर्म के घर में आजाने से कार्यों को धर्म से सम्बन्धित भाग्य से सम्बन्धित कानून से विदेश से सम्बन्धित ही करने पडते है। बारहवें घर का दसवें घर में बैठने से जो भी कार्य किये जाते है उनके अन्दर यात्रा का होना जरूरी होता है खर्चा कार्यों की मुख्य श्रेणी में आजाता है,पिछले पांच साल से रहने वाले स्थान के प्रति खर्चा भी करना पडता है चाहे वह निर्माण के कार्यों के लिय हो या वाहन सम्बन्धी हो या सामाजिक रूप से अपनी प्रतिष्ठा को बनाने के लिये ही हो। ग्यारहवें भाव में छठा घर बैठ जाने से लाभ की जगह पर अस्पताली खर्चा करना अथवा किसी ब्याज का आना किराये के प्रति कोई बुराई ले लेना आदि भी माना जाता है।
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