बुधवार, 10 दिसंबर 2025

अष्टम भाव का शनि-चंद्र: 'विष योग' नहीं, यह 'नीलकंठ योग' है-

🕉️ अष्टम भाव का शनि-चंद्र: 'विष योग' नहीं, यह 'नीलकंठ योग' है-------------------------------------------------
मित्रों मेरी कोशिश रहती है कि मैं सही जानकारी आपको दे सकूं ताकि ज्योतिष के अंदर जो भी बुराइयां चल रही है उसको दूर किया जा सके और आपको समझ में आ जाए इसलिए इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर किया करें ताकि दूसरे लोगों को भी लाभ मिल सके
​लाल किताब का एक बेहद गहरा राज़ है:
"आठ में बैठा शनि चन्द्र, कुये से भाप निकलती है,
बर्फ़ पिघलती धीरे-धीरे, उमर आखिरी फ़ल देता है।"
​ एक पुरानी कहावत है— "चंद्र-शनि की माया, फकीर बनाए या राया।"
​साधारण ज्योतिषी इसे 'विष योग' कहकर डरा देते हैं। वे कहते हैं "चंद्रमा (मन) पर शनि (दुःख) बैठ गया, अब जीवन नर्क है।" लेकिन सत्य को देखने के लिए चर्म-चक्षु नहीं, 'ज्ञान-चक्षु' चाहिए। गहराई से देखें, तो यह विष योग नहीं, बल्कि "नीलकंठ योग" है।
​1. सन्नाटे की गूंज: अकेलापन नहीं, यह 'एकांत' है 🌑
चंद्रमा 'मन' है और शनि 'वैराग्य'। जब ये दोनों अष्टम (गुप्त भाव) में मिलते हैं, तो शनि मन की चंचलता को 'फ्रीज़' (जमा) कर देता है। दुनिया इसे 'डिप्रेशन' या 'अकेलापन का नाम लेकर ज्योतिषी लोग डरतेहै, लेकिन असल में यह 'समाधि' की अवस्था है।
कुदरत इस जातक को भीड़ से अलग करती है ताकि वह खुद से बात कर सके।
"गहरी नदियां ही शांत बहती हैं।"
जिसका मन बाहर से टूटता है, वही भीतर से जुड़ता है। यह योग जातक को 'अंतर्मुखी'  बनाकर उसे उस सत्य से मिलाता है जो शोर में सुनाई नहीं देता।
​2. कोयला या हीरा? दबाव का महत्व 💎
विज्ञान कहता है कि कोयला और हीरा दोनों कार्बन हैं। फर्क सिर्फ 'दबाव' (Pressure) का है।
अष्टम भाव का शनि जातक पर मानसिक दबाव डालता है, संघर्ष देता है। कमजोर लोग इस दबाव में टूटकर 'कोयला' रह जाते हैं (जिसे विष योग मान लिया जाता है)। लेकिन जो साधक इस दबाव को सह लेता है, शनि उसे तराशकर 'हीरा' बना देता है।
यह योग आपसे पूछता है— "क्या तुम जलने को तैयार हो? क्योंकि कुंदन बनने के लिए आग में तो तपमान ही पड़ेगा।"
​3. 'तीसरी आँख' का जागरण 👁️
अष्टम भाव 'गूढ़ रहस्यों' का पाताल लोक है। जब शनि-चंद्र यहाँ मिलते हैं, तो जातक को 'पूर्वाभास' की शक्ति मिलती है। ऐसे लोगों की जुबान पर अक्सर सरस्वती बैठती है। यह साधारण 'विष' नहीं है, यह वह शक्ति है जो इंसान को 'त्रिकालदर्शी' बनाने की क्षमता रखती है।

4. शिव का हलाहल: जहर ही दवा है 🐍
समुद्र मंथन में विष (हलाहल) को केवल महादेव ने कंठ में रोका था।
जिसकी कुंडली में यह योग है, उसमें शिवत्व का अंश है। वह जीवन के कड़वे अनुभवों (विष) को पीता है, लेकिन उसे न तो पेट में उतारता है (न खुद को बर्बाद करता है) और न ही बाहर उगलता है (न दूसरों को कोसता है)। वह उस विष को 'कंठ' में रोककर अनुभव की शक्ति बना लेता है।
​⚠️ सावधानी: 'लकीर के फकीर' न बनें ⚖️
यहाँ एक गंभीर चेतावनी है। "अधजल गगरी छलकत जाए।"
हर अष्टम शनि-चंद्र बुरा नहीं होता और हर युति साधु नहीं बनाती। ज्योतिष में "एक लाठी से सबको हांकना" सबसे बड़ी मूर्खता है।
सिक्के के दो पहलू होते हैं। परिणाम इन सूक्ष्म बातों पर बदल जाता है:
🔹 अंशों का खेल (Degrees): क्या दोनों ग्रह जुड़े हैं या दूर हैं?
🔹 नक्षत्र का भेद: क्या यह शनि के नक्षत्र में है या चंद्र के?
🔹 लग्न की स्थिति: लग्नेश कहाँ बैठा है?
​इसलिए, किसी ऐसे विद्वान और सात्विक ज्योतिषी से ही परामर्श लें जो आपको डराए नहीं, बल्कि आपकी कुंडली के इस 'छिपे हुए खजाने' को खोजने में मदद करे।
​🏁 निष्कर्ष
अगर आपकी कुंडली में अष्टम शनि-चंद्र है, तो आप साधारण नहीं हैं। कुदरत ने आपको 'भीड़ का हिस्सा' बनने के लिए नहीं, बल्कि 'भीड़ का मार्गदर्शन' करने के लिए चुना है।
आप 'विष योग' के मारे नहीं, 'नीलकंठ' बनने की यात्रा पर हैं। अपने भीतर के शिव को जगाएं।
​आचार्य राजेश कुमार
(वैदिक एवं लाल किताब विशेषज्ञ)
📍 हनुमानगढ़, राजस्थान

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