🛑 'शनि' का मैग्नेटिक सच या पाखंड का डरावना मायाजाल? 🛑ऋषियों का 'खगोल' बनाम आज का 'पाखंड' (परिवर्तन की गहराई)
प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने ग्रहों को 'पिंड' और उनकी गति को 'गणित' माना था। लेकिन समय के साथ, इस विज्ञान का स्वरूप कैसे बदला, इसे समझना आवश्यक है:
प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने ग्रहों को 'पिंड' और उनकी गति को 'गणित' माना था। लेकिन समय के साथ, इस विज्ञान का स्वरूप कैसे बदला, इसे समझना आवश्यक है:
ऋषियों का काल हमारे ऋषि 'दृक-गणित' (के ज्ञाता थे। उनके लिए शनि केवल एक पिंड था जो सूर्य की परिक्रमा 30 वर्षों में करता है। उन्होंने पाया कि जब यह विशाल चुंबकीय पिंड पृथ्वी के करीब आता है, तो मानव मस्तिष्क के 'न्यूरो-ट्रांसमिटर्स' और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में हलचल होती है। उन्होंने इसे 'अनुशासन' का समय कहा, न कि 'आतंक' का।
मध्यकाल जब आम जनमानस को जटिल गणित समझ नहीं आया, तो इसे समझाने के लिए ग्रहों का 'मानवीकरण' किया गया। शनि को 'बूढ़ा', 'लंगड़ा' और 'धीमा' कहा गया ताकि लोग उसकी मंद गति (Slow Motion) को समझ सकें।
आधुनिक काल आज इस मानवीकरण को 'ईश्वर' का दर्जा देकर डराने के व्यापार में बदल दिया गया है। ऋषियों ने 'दान' का विधान इसलिए किया था ताकि समाज में संसाधनों का पुनर्वितरण हो सके, लेकिन आज वह दान पाखंडियों की जेब भरने का जरिया बन गया है।
आज जब हम 5G और अंतरिक्ष विज्ञान के युग में हैं, तब भी सदियों पुराने खगोल विज्ञान (Astronomy) को "डर के व्यापार" में बदला जा रहा है। आइए, अंधविश्वास की उन परतों को विज्ञान और तर्क की कसौटी पर कसते हैं।
🌌 1. ग्रहों का प्रभाव: देवता नहीं, 'चुंबकीय तरंगें'
ब्रह्मांड में मौजूद हर विशाल पिंड का अपना एक गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) होता है। शनि (Saturn) एक विशाल चुंबकीय शक्ति वाला ग्रह है। ऋषियों ने ग्रहों की इन विद्युत-चुंबकीय तरंगों के मानव मस्तिष्क पर पड़ने वाले सूक्ष्म प्रभाव को "दशा" कहा था। लेकिन आज इसे एक "क्रोधित देवता" बनाकर डराया जाता है, ताकि लोग तर्क छोड़कर अंधविश्वास की शरण में आ जाएं।
🏛️ 2. 'प्राण-प्रतिष्ठा' और 'शनि दृष्टि' का विरोधाभास
मंदिरों में दावा किया जाता है कि मूर्ति में 'प्राण-प्रतिष्ठा' करके उसे 'जागृत' कर दिया गया है। यहाँ एक तार्किक प्रश्न उठता है:
प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि "शनि की सीधी दृष्टि और छाया कष्टकारी होती है।"
यदि पुजारी की बात सच है और मूर्ति वाकई 'जागृत' है, तो फिर भक्तों को मूर्ति के बिल्कुल सामने खड़ा क्यों किया जाता है? क्या भक्त पर शनि की सीधी दृष्टि पड़कर उसे और कष्ट नहीं मिलना चाहिए?
हकीकत यह है कि प्राचीन काल में शनि की 'शिला' (Natural Stone) होती थी, जिसकी कोई आँखें नहीं होती थीं। आज की डरावनी मूर्तियां केवल मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का जरिया हैं।
🚫 3. कलर टेप और ज़मीन में दबाने का 'मूर्खतापूर्ण' खेल
ज्योतिष और वास्तु के नाम पर आज एक नया धंधा शुरू हुआ है—कलर टेप बेचना और ज़मीन में सामान दबवाना। जरा तर्क लगाइए:
ज़मीन में दबाने का पाखंड: ठग लोग आपको तांबा, कील या कोई पोटली ज़मीन में दबाने को कहते हैं, जिसके ऊपर आप पक्का फर्श, मार्बल या टाइल्स लगा देते हैं।
तार्किक सवाल: अगर आपने कोई चीज़ ठोस फर्श के नीचे दबा दी, तो उसका 'असर' बाहर कैसे आएगा? क्या उस दबी हुई चीज़ के पास कोई ड्रिल मशीन है जो टाइल्स को छेदकर ऊपर आएगी?
धरती के अंदर अरबों सालों से खनिज और धातुएं दबी पड़ी हैं, जब उनका असर फर्श फाड़कर ऊपर नहीं आता, तो एक छोटी सी पोटली आपकी किस्मत कैसे बदल देगी?
🎓 4. पढ़े-लिखे लोगों की 'बौद्धिक गुलामी'
हैरानी तब होती है जब डिग्रीधारी और पढ़े-लिखे लोग भी अपनी तर्क बुद्धि ताक पर रख देते हैं। वे यह नहीं सोचते कि:
किसी के घर पर रंगीन टेप चिपकाने से ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रवाह कैसे बदल सकता है?
क्या ग्रह इतने कमज़ोर हैं कि वे एक टेप या दबी हुई कील से हार जाएंगे?
पढ़े-लिखे लोग भी डरे हुए हैं और इसी डर का फायदा पाखंडी उठा रहे हैं। जब इंसान अपनी बुद्धि का इस्तेमाल बंद कर देता है, तभी पाखंड का जन्म होता है।
✅ निष्कर्ष
NASA की वेबसाइट पर जाकर ग्रहों की भौतिक स्थिति देखें। जागृत पत्थर को नहीं, बल्कि अपनी 'चेतना' (Consciousness) को करना है। अगर आपका 'मंगल' अशांत है, तो डर नहीं, शारीरिक मेहनत करें। अगर 'शनि' का प्रभाव है, तो आलस्य त्यागकर न्यायपूर्ण जीवन जिएं। सच्चा ज्ञान डराता नहीं, बल्कि आपको तर्क और सत्य की राह दिखाता है।
अंधविश्वास की बेड़ियाँ तोड़ें, अपनी तर्क बुद्धि को जाग्रत करें!
आचार्य राजेश
#JyotishScience #SaturnTruth

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