बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

मित्रो आज वात करते है दीपावाली की अमावस की रात गहरा गहन अंघेरा हम दीये जलाते है ओर पुरी रोशनी करते है ओर सोचते है दीये जलाकर अंघेरा दुर हो गया है कोन सा अंघेरा अव अंघेरा भी दो तरह का है वाहर भी ओर भीतर भी वाहर तो रोशनी हो गई पर भीतर तो ओर गहरा अंघेरा है यह तो कभी सोचा ही नही भीतर का दीया कैसे जगेगा कोन सा तेल डालना होगा ओर तेल कहा मिलेगा वाहर के दीये तो तेल से जलते है ओर वाती भी चाहिये भीतर के दीवे के लिऐ ना तेल चाहिऐ ना वाती ईस लिऐ पलटु साहिव ने कहा उलटा कुँआ गगन मे दीया जले वीन वाती वीन तेल दीया सतत जल रहा है वस पर्दा हटाना होगा जव हमे हमारा दीया मिलेगा तव असल मे दिवाली होगी ओर हर क्षण ओर हर पल दीवाली आओ दीया जलाऐ जय माँता दी जय माँकाली आचार्य राजेश

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