रविवार, 23 अक्टूबर 2016

शरीर एक नाव है एँव आत्मा एक यात्री यही सत्य है सभी कहते हैँ यदि यह सत्य भी है महान तो शरीर ही हुआ ना जीवन भर ढोता रहा जो इस यात्री का बोझ जो केवल मूक साथी था इस घाट से उस घाट की बीच की दूरी का इस आशा मेँ इस पर सवार किंचित यह नाव समय के धारे के विपरीत बह कर उसे मिला देगी उस परम से जिसका वो एक अँश है उसे क्या बोध कि इस नाव के साथ बँधी हैँ और बहुत सी नाँवेँ जो विवश करती है उसे सिर्फ बहाव के साथ बहने को और उन नावोँ पर सवार उस जैसे यात्री अनसुना कर देते है इस नाव के अंत्रनाद को जय माता दी

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