गुरुवार, 30 जनवरी 2020

कालसर्प योग हैं या दोष है क्या है सच क्या है झूठ?

https://youtu.be/rLabGPgeiFU
कालसर्प दोष एक ऐसा योग है या  दुर्योग है जिसका नाम सुनते ही जनमानस में भय व चिंता व्याप्त हो जाती है। साढ़े साती और काल सर्प योग का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं. इनके प्रति लोगों के मन में जोड भय बना हुआ है इसका फायदा उठाकर बहुत से ज्योतिषी लोगों को लूट रहे हैं. बात करें काल सर्प योग की तो इसको भी ्कुछ विद्वान इसे सिरे से नकारते हैं, तो कुछ इसे बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। मेरे देखे दोनों गलत हैं।कालसर्प दोष' को न तो महिमामंडित कर प्रस्तुत करना सही है और न ही इसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाना उचित है। शास्त्रों में सर्पयोग के नाम से स्वीकार किया गया है। उसी को ही आजकल काल सर्प का नाम दिया गया है चूंकि राहु को शास्त्रों में 'काल' कहा गया है और केतु को 'सर्प' की संज्ञा दी गई है इसलिए इसका नाम 'कालसर्प'  कहा गया है वराहमिहिर ने अपनी संहिता 'जानक नभ संयोग' में इसका सर्पयोग के नाम से उल्लेख किया है, वहीं 'सारावली' में भी 'सर्पयोग' का वर्णन मिलता है।अधिकांश ग्रन्थों में सर्पयोग की व्याख्या तो मिलती है किन्तु कालसर्प योग की व्याख्या किसी भी मानक ग्रन्थ में नहीं मिलती है।सी पिछली शता‍ब्‍दी के सातवें या आठवें दशक तक के अधिकांश ज्‍योतिषी भी इस योग के बारे में नहीं जानते थे, लेकिन इस योग के हर इंसान पर लागू किए जा सकने वाले फलादेशों ने कुछ ऐसा चमत्‍कार पैदा किया कि बड़ी संख्‍या में लोगों ने इसे मानना शुरू कर दिया।

पिछले कुछ सालों में तो कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) ने तेजी से विकास किया है। अब बाजार में आ रही पुस्‍तकों और कई ज्‍योतिषियों के कारण तो कालसर्प दोष के प्रति काफ़ी गलत धारणा लोगों के अन्दर व्याप्त हो रही हैं,हर कोई हर किसी को किसी न किसी प्रकार से कालसर्प दोष का अधिकारी बना कर पैसा बनाने की जुगत में लगा हुआ है,सबसे पहले राहु और केतु के बारे मे जानना जरूरी है,अगर किसी प्रकार से राहु और के केतु के एक तरफ़ सभी ग्रह आजाते है तो उसके बारे में कह दिया जाता है कि अमुक को कालसर्प दोष है,और हर मर्ज की एक दवा बताते हुऐ कहा जाता है,कालसर्प दोष की शांति करवा लेनी चाहिऐ,शांति के नाम पर पूजा जाप और  और न जाने कहां कहां स्नान और हवन आदि करने के लिये बोला जाता है.लेकिन होता वही है जो होना है,कर्म की गति तो रुकती नही है,राहु और केतु के बारे में जानने के लिये मैं आपको "लालकिताब ज्योतिष" की तरफ़ लिये चलता हूँ,लालकिताब में साफ़ तरीके से लिखा है, कि राहु की सिफ़्त सरस्वती की है,और केतु को गणेशजी की उपाधि दी गयी है,अगर सरस्वती और गणेशजी दोनो खराब है,तो फ़िर विद्या और साधन का महत्व ही नही रह जाता है,क्यों कि सरस्वती को विद्या की देवी कहा गया है,और गणेशजी को साधनों का देवता कहा गया है,गणेशजी को प्रथम पूज्य कहा गया है,हर किसी स्थान पर दैहिक,दैविक,और भौतिक कारणो में साधन के रूप में विद्यमान देवता को अगर बुरी नजर से देखा जाये तो कितना अच्छा है,यह तो कोई अनपढ भी समझ सकता है,दैहिक कारणों में गणेशजी शरीर के अन्दर खाने के समय हाथ के रूप में देखने के लिये आंख के रूप में,पचाने के लिये आंत के रूप में और मल त्याग करने के लिये गुदा के रूप में उपस्थित है,संतान पैदा करने के लिये लिंग और भग के रूप में,सोचने के लिये दिमाग के रूप में,आंखॊं की रक्षा करने के लिये पलक के रूप में सिर में बाल के रूप में,सुनने के लिये कान के रूप में जिंदा रखने के लिये ह्रदय के रूप में और खून में रुधिर कणिका के रूप में विद्यमान हैं,दैहिक कारणों में ही पुत्र के रूप में आगे का वंश चलाने के रूप में,भानजे के रूप में शारीरिक नाम को चलाने के रूप में,ससुराल में साले के रूप में,ननिहाल में नाना और मामा के रूप में विद्यमान है,घर की रखवाली के लिये कुत्ते के रूप में,लिखने के लिये पेन के रूप में,लोगों से संचार व्यवस्था रखने के लिये कम्प्यूटर के रूप में,और कम्प्यूटर में की बोर्ड और माउस के रूप में,टेलीफ़ोन और मोबाइल के रूप में,यू.एस.बी. पोर्ट में कोई भी नया सिस्टम लगाने के रूप में जब गणेशजी हर जगह विद्यमान है,यह सब दैहिक और भौतिक कारणों के अन्दर आजाते है,गाडी में ड्राइवर और टायर ट्यूब के रूप में,चलाते वक्त स्टेयरिंग के रूप में,सरकार में नेता के रूप में,आफ़िस में अधिकारी के रूप में,सडक पर साइनबोर्ड के रूप में,कोरियर कम्पनी में पत्र बांटने के रूप में,गणेशजी की महत्ता तो है ही,इसके अलावा देवताओं में बता ही चुका हूँ,कि वे सर्वपूज्य और प्रथम मान्य है,तो गणेशजी और माता सरस्वती का इतना अपमान क्यों काल सर्प दोष के नाम पर किया जा रहा है,लोग कहते हैं कि शत्रुता के चलते राहु खत्म कर देता है,केतु हाथ पैर तोड देता है,मगर शत्रुता वाले कारण कौन पैदा करता है,राहु केतु तो करने नही आते है न?,अगर आप हिन्दू धर्मालम्बी है,तो आपने भगवान शिव का नाम तो सुना होगा पूजा पाठ भी किया होगा,शिव परिवार को ही लेलो,शिवजी का वाहन नंदी है यानी बैल,और माता भवानी का वाहन है शेर,दोनों के अन्दर कितनी मित्रता है,शेर का भोजन ही बैल है,अब उनके पुत्र गणेशजी को लेलो,उनका वाहन चूहा है और शिवजी के गले में नागों की माला है,नाग का भोजन ही चूहा है,इधर कार्तिकेयजी को लेलो,उनका वाहन है मोर और शिवजी के गले में नाग हैं,मोर का भोजन ही नाग हैं,लेकिन शत्रुता को भी अगर काम में ले लिया जावे तो वह शत्रुता भी फ़ायदा देती है.इसे और अच्छी तरह से समझने के लिये लोहे और तेल का संगम समझना भी उचित होगा,तेल तरल है,लोहा कठोर है,लोहे को लोहे से लडाने के बाद उससे लाखों तरह के काम लिये जाते है,और तरल तेल से लोहे को स्मूथ चलाने के लिये तेल का काम लिया जाता है,तलवार तेज धार रखती है,उसमें मूंठ अगर गोल नही लगाई जावे तो वह चलाने वाला का हाथ ही काट डालेगी,इस तरह से लोहा अगर केतु है,तो तेल राहु है,तलवार अगर राहु है तो उसमे लगी मूंठ केतु है,इसी तरह से बन्दूक अगर केतु है तो उसमे चलने वाली बारूद की गोली राहु है,बिजली का तार अगर केतु है तो उसके अन्दर चलने वाला करेंट राहु है,किताब अगर केतु है तो उसके अन्दर लिखा हुआ राहु है,कम्प्यूटर अगर केतु है तो उसके अन्दर चलने वाले सोफ़्टवेयर राहु है,बैटरी अगर केतु है तो करेंट राहु है,मोबाइल अगर केतु है,तो उसके अन्दर लगी बैटरी राहु है.इस प्रकार से राहु और केतु को समझा जा सकता है.
अकेले राहु केतु कभी परेशान नही करते जैसे
श्यामसुंदर के दो पुत्र है,दोनो की कुन्डली मे काल सर्पदोष है,बडे की कुन्डली में राहु चौथा और केतु दसवां है,राहु के साथ शुक्र भी है और चन्द्रमा भी,केतु के साथ कोई भी नही है,केतु छठे शनि को देख रहा है,इधर राहु चन्द्र और शुक्र का बल लेकर भी शनि को देख रहा है,चन्द्र और शुक्र राहु का बल लेकर केतु से विपरीत हैं,शनि ने अपने धन के त्रिकोण मै बैठ कर (दूसरा,छठा और दसवां भौतिक सम्पदा के लिये देखा जाता है,दूसरा धन है तो छठा रोजाना के कार्य करने और कर्जा दुश्मनी बीमारी के लिये हुज्जत का घर है और दसवां घर कार्य और पिता तथा सरकार के लिये गिना ही जाता है) केतु ने शनि को देखा है,शनि कर्म का कारक है,कर्म भी छठे घर का यानी केवल नौकरी के द्वारा ही धन कमाने का उद्देश्य,केतु टेलीफ़ोन के लिये भी गिना जाता है,टेलीफ़ोन का काम भी किया है,लेकिन शनि ठंडा ग्रह भी है,चालाकी से भरा ग्रह भी है,नीच प्रकृति का ग्रह भी है,कन्या का शनि होने के नाते आजीवन लडकियों के लिये काम करने वाला शनि भी है,शनि और राहु के बीच में गुरु,सूर्य,और बुध भी फ़ंसे है,गुरु जीव है तो सूर्य आत्मा,गुरु जीव है तो बुध बुद्धि,सूर्य बुध दोनो मिलकर सरकारी लखटकिया हैं,मेला,प्रदर्शनी के अन्दर पैदा गिनने का काम भी करते है,कार्य किया तो जायेगा,लेकिन केतु का बल लेकर,अगर साथ में सहायक है तो काम बन्दा कर सकता है,और बिना सहायक के वह बेकार सा ही है,शनि यानी कर्य को सहारा देने के लिये सूर्य पिता के रूप में है,पिता के बाद पुत्र का उदय है,और वह सहायक के रूप में है,सूर्य सरकार है,वह भी समय पर सहायक होगी लेकिन पुत्र के लिये,गुरु शनि को सहारा दे रहा है,गुरु ज्ञान का कारक है जो भी काम किया जायेगा वह ज्ञान का सहारा लेकर किया जायेगा,गुरु और सूर्य पांचवें भाव में विराजमान है,हर काम को मजाक के रूप में किया जायेगा,एम्यूजमेन्ट का सहारा लेकर किया जायेगा,राहु चौथे घर में माता का बल देता है,मकान का बल देता है,पानी का बल देता है,चौथे घर में शुक्र माया नगरी को पैदा करता है,वह माया बिजली की रोशनी की माया हो या बारूद की आतिशबाजी की माया,अथवा राहु यानी बात की सत्यता की माया,वाहन की माया,जानने वाले लोगों की माया,ह्रदय की खूबसूरती की माया,चौथा घर खेत है,खेती में चन्द्र यानी चावल की माया,शुक्र यानी गेंहूं की माया,हरी घास या चरी की माया,राहु चन्द्र मिलकर मन को अशान्त करते है,राहु विद्या और चन्द्र ह्रदय,हमेशा हर बात में विद्या का प्रयोग करने की माया,शुक्र पत्नी है,तो चन्द्र छलिया औरत भी है,एक औरत के द्वारा छलने की माया,राहु पितामह है,और चन्द्र शुक्र मिलकर पितामह के लिये सूचित करते है कि वे भी अपनी पत्नी के यानी दादी के अलावा शुक्र पत्नी तो चन्द्र छलिया औरत से सम्बन्ध या ठगे गये थे,शुक्र खेती है,चौथा घर पानी है,चन्द्र पानी में पैदा होने वाली फ़सल है,यानी खेती में चावल का पैदा होना भी मिलता है,सफ़ेद वस्तुओं का पैदा होना भी मिलता है.राहु खाद है,चन्द्र से सफ़ेद और शुक्र से हरा रखने के लिये,सफ़ेद खाद यानी यूरिया का प्रयोग भी खेती के लिये होता है,राहु बिजली है,चन्द्र पानी है,शुक्र खेती है,तीनो का संगम करने के लिये बिजली से पानी निकालकर खेती करने वाली बातें भी मिलती है,राहु कुआ है,चन्द्र पानी है,शुक्र कच्चा घर भी है,जन्म का स्थान भी यही मिलता है,इस प्रकार से राहु हर जगह से सहायक मिलता है,केतु का काम सहायक होना भी मिलता है,शनि काम और दूसरे भाव के प्रति धन वाले काम,केतु तार है,तो शनि काम है,जातक तार का काम भी जानता है,केतु को चन्द्र देख रहा है,आमने सामने की टक्कर है,सहायक होना केवल पानी के लिये,माता के लिये घर के लिये और जान पहिचान वाले लोगों के लिये,लेकिन राहु को बल मिला,चन्द्र का शुक्र का,पितामह को शुक्र यानी खेती मिली,शुक्र यानी उनकी पत्नी यानी दादी के द्वारा,चन्द्र ने राहु का बल लिया,पितामह ने काफ़ी कुयें बनवाये,पितामह की हैसियत के बारे में भी राहु ने बखान किया,शुक्र और राहु मिलकर मायानगरी बना देते है,चन्द्र अपने घर में विराजमान है,माया नगरी का काम राहु ने दिया तो पितामह ने केतु यानी उस मायानगरी का सहायक बन कर यानी मल्टीनेशनल कम्पनी में ओहदेदार पोस्ट पर रह कर काम किया.इस प्रकार मालुम चलता है कि कभी राहु और केतु मिलकर परेशान नही करते हैं.वाकी अगली पोस्ट
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