https://youtu.be/9WaPJ7ofLsg
मित्रों मेरी पिछली पोस्ट भी इस विषय पर हैं यानि काल सर्प पर यह जरूर पढ़ें कालसर्प दोष को लेकर लोगों में काफी भय और आशंका-कुशंकाएं रहती हैं, लेकिन कुछ आसान और अचूक उपायों से इसके असर को कम किया जा सकता है। कोई इसे कालसर्प दोष कहता है तो कोई योग। कोई इसे मानता है और कोई नहीं, मित्रों अगर आपको किसी एस्ट्रोलॉजर में कालसर्प बताया है कि आपकी कुंडली में कालसर्प योग है तो पहले आप उसकी अच्छी तरह जांच कर ले क्या कालसर्प योग बनता है कि नहीं बनता और वह जो आपको अशुभ फल दे रहा है या अशुभ फल दे रहा है समय आपको कोई परेशानी आ रही है तो किसी वजह से आ रही है किसी अन्य ग्रह की वजह से यह सब देखना जरूरी होता है मित्रो
मित्रों मेरी पिछली पोस्ट भी इस विषय पर हैं यानि काल सर्प पर यह जरूर पढ़ें कालसर्प दोष को लेकर लोगों में काफी भय और आशंका-कुशंकाएं रहती हैं, लेकिन कुछ आसान और अचूक उपायों से इसके असर को कम किया जा सकता है। कोई इसे कालसर्प दोष कहता है तो कोई योग। कोई इसे मानता है और कोई नहीं, मित्रों अगर आपको किसी एस्ट्रोलॉजर में कालसर्प बताया है कि आपकी कुंडली में कालसर्प योग है तो पहले आप उसकी अच्छी तरह जांच कर ले क्या कालसर्प योग बनता है कि नहीं बनता और वह जो आपको अशुभ फल दे रहा है या अशुभ फल दे रहा है समय आपको कोई परेशानी आ रही है तो किसी वजह से आ रही है किसी अन्य ग्रह की वजह से यह सब देखना जरूरी होता है मित्रो
किसी भी प्रकार के कालसर्प दोष की समाप्ति के लिये ज्योतिष में भगवान शिव की आराधना को मुख्य बताया गया है। समुद्र मन्थन के समय में समुद्र से निकले चौदह रत्नों में हलाहल विष को जगत में स्थापित करने के लिये जगह नही थी,उस विष की गर्मी से सम्पूर्ण जगत जब जलने लगा तो भगवान शिव को बुलाना पडा,उन्होने उस विष जो अपने गले में स्थापित किया और नीलकंठ कहलाये। उसी समय जब समुद्र से अमृत निकला तो उसे लेकर देवताओं और दैत्यों में युद्ध शुरु हो गया,आखिर में भगवान विष्णु को मोहिनी का रूप धारण करना पडा और देवताओं को उनका प्रिय अमृत तथा दैत्यों को उनकी प्रिय सुरा का पान करवाया गया,लेकिन असुरों की सेना से एक दैत्य निकला और देवताओं की सेना में जाकर शामिल हो गया,धोखे से उस दैत्य ने अमृत का पान कर लिया,सूर्य और चन्द्र की निगाह उस दैत्य पर पड गयी,उन्होने भगवान विष्णु को इशारे से बता दिया,उनके सुदर्शन चक्र ने उस दैत्य का सिर धड से अलग कर दिया,लेकिन अमृत शरीर में चला गया था इसलिये वह सिर और धड दोनो ही हमेशा के लिये अमर हो गये,सिर का नाम राहु और धड का नाम केतु रखा गया। यह कथा केवल ज्योतिष और पुराणों की शिक्षा को कंठस्थ रखने के लिये बनाई गयी। इसका विश्लेषण इस प्रकार से है। इस संसार रूपी समुद्र में जब जातक जन्म लेता है तो उसे अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्राप्त साधनो और विद्या के द्वारा संसार का मन्थन शुरु करता है। उस मन्थन में कभी तो शरीर को हमेशा पूर्ण रखने वाले साधन प्रकट हो जाते है,कभी बहुत ही दुख दायी विष रूपी कष्ट पैदा हो जाते है। कभी लक्ष्मी रूपी धन की आवक हो जाती है,कभी ऐरावत रूपी वाहन आदि की प्राप्ति हो जाती है। कभी कभी ऐसी रोजी रोजगार की उपलब्धि हो जाती है जो कामधेनु रूपी गाय बनकर जीवन को सुरक्षित चलाने के लिये अपना सहयोग करती है। इसी बीच मे सात्विक विचार जो देवताओं के रूप में होते है,और गलत विचार जो दैत्यों के रूप में होते है,अपनी अपनी शक्ति से मिलने वाले साधन रूपी मथानी और विद्या रूपी शेषनाग की रस्सी से संसार रूपी समुद्र का मंथन करते है। शिव रूपी गरल जब पैदा होता है जो क्रोध के रूप में माना जाता है,अगर उस क्रोध रूपी वचनों को संसार रूपी सागर में छोड दिया जाये तो वह पूरे जग को जलाने में अपना कार्य करेगा,जैसे कोई बहुत ही खतरनाक अस्त्र बना लिया और उसे अगर सुरक्षित स्थान में नही रखा गया तो वह किसी भी समय दुरात्मा के द्वारा संसार को ठिकाने लगाने से बाज नही आयेगा,उस समय उस शस्त्र को किसी सुरक्षित और शांत प्रिय स्थान में स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही जब बहुमूल्य अमृत निकलता है तो कोई भी दुरात्मा अपने को बुरे विचारों से पूर्ण रखने के बाद भी स्थापित रखना चाहता है तो उसे ही आत्मा रूपी विष्णु के द्वारा ज्ञान रूपी सुदर्शन चक्र से काटना पडता है,यह कारण मानसिक सोच रूपी चन्द्रमा और द्रश्य कारणों के रूपी सूर्य से इंगित किया जाता है,लेकिन जो बुरा कारण अगर किसी प्रकार से भले भलाई वाले शस्त्र से विभूषित हो गया तो वह उस शस्त्र को अपने शरीर में भलाई रूपी रूपी जामा पहिन कर बुरे आचरण करने लगेगा और इस कारण से जो अच्छे विचारों से सुसज्जित लोग है वे उस बुरे विचारों वाले व्यक्ति के कारण बदनाम होने लगेंगे। यही बात राहु और केतु के रूप में मानी जाती है। राहु और केतु को छाया ग्रह के रूप में भी मानने के कारण है,जब कोई व्यक्ति अपने ही विचारों में खो जाये और उसे अपने आसपास के बारे में पता नही चले तो वह जीवन की गति में कुछ से कुछ करने लगता है। उसका शरीर अपने ही विचारों में खोये रहने के कारण जो भी उसके पास साधन होते है उनके अन्दर विद्या रूपी शक्ति को संचार देने से रुक जाता है,शरीर की मानसिक गति जब बिगड जाती है तो शरीर के अन्दर की ऊर्जा का स्थान केन्द्रित नही हो पाता है,पाचन क्रिया से लेकर सोने जागने तथा रोजाना के काम करने की गति भी बिगड जाती है। इस बिगाड से शरीर की ऊर्जा रूपी शक्ति समाप्त होती जाती है और शरीर धीरे धीरे कमजोर होता हुआ बरबाद होने लगता है। अक्सर देखा होगा कि जब व्यक्ति तन्द्रा में नही होता है तो उसे पानी के छींटे दिये जाते है यह एक प्राथमिक उपचार होता है। इसके बाद भीड भाड और समुदाय के अन्दर उस व्यक्ति को स्थापित किया जाता है जिससे उसके अन्दर चलने वाले विचार धीरे धीरे समाप्त होने लगते है और वह अपने द्वारा किये जाने वाले वास्तविक कामो की तरफ़ अग्रसर होने लगता है। हमारे देश में तीर्थ स्थानों का महत्व तभी पूर्ण माना जाता है जब वहां पर स्नान करने के साधन हों,उन साधनों के अन्दर किसी न किसी प्रकार की प्रभाव वाली शक्ति का साक्षात करना हो,जैसे गंगा स्नान समुद्र स्नान और किसी जल विशेष की छींटे देना आदि। इन कारणों से लगातार चलने वाले दिमागी सोच मे परिवर्तन सोच मे परिवर्तन देना और उस परिवर्तन के बाद स्थिति में सुधार लाना आदि बाते मानी जाती है। सम्बन्धित देवता के प्रसाद के रूप में भी मीठा प्रसाद ही अधिकतर मामले में काम में लाया जाता है,साथ ही प्रसाद के रूप में खील और बतासे तथा शक्कर दाने प्रयोग में लाये जाते है,जो लार विचारों के समय में खारी हो गयी होती है उस लार को स्नान ध्यान या पूजा के बाद जब मानसिक स्थिरता को सुधारा जाता है तो उस प्रसाद को लेने के बाद मीठा स्वाद खारे पन में अन्तर लाता है। स्थान बदलना भी एक प्रकार से सुखद माना जाता है। तत्वों की पूर्ति भी शरीर मे बल देने वाली होती है जैसे रत्न धारण करना भोजन करना या करवाना मन्त्र ध्वनि से शरीर की गति में परिवर्तन करना यन्त्र में ध्यान लगाने से दिमागी दबाब को कम करना आदि। कालसर्प योग का एक बेहतर और सर्व सुलभ उपाय है कि रोजाना सुबह को जागकर ऊँ नम: शिवाये का इकत्तीस बार दक्षिण की तरफ़ फ़ेस करके जाप करना और दोपहर को शिवलिंग पर एक धार में जल चढाते हुये यही मन्त्र जपना,सोने से पहले इसी प्रकार की क्रिया करना।जो लोग शिवजी से अपनी आध्यात्मिक शक्ति से जुडे है उन्हे यह पता है कि उनके शिवलिंग के साथ या उनकी छवि के साथ सर्प को दर्शाया गया है। शिव लिंग को तो सर्प के फ़न से ढका बताया गया है और जललहरी से उस सर्प के प्रवेश को दिखाकर बाकी का पूंछ वाला हिस्सा जललहरी के पास दर्शाया गया है। शिव जो संहार के कारक है और शिवलिंग की जललहरी को सम्भालने का कार्य माता पार्वती के रूप मे दिखाया गया है। यह दोनो ही रूप में शिव और शक्ति को दर्शाया गया है। राहु जो सांप के फ़न से और पूंछ केतु के रूप मे मानी जाती है। केतु रक्षा करने वाला होता है और राहु समाप्त करने वाला होता है। दोनो ही छाया ग्रह है,भगवान शिव के अलावा भी भगवान विष्णु की तस्वीर को देखा जाये तो क्षीर सागर में शेषनाग के ऊपर भगवान विष्णु की शैया है और राहु के रूप मे शेषनाग के फ़न की छाया उनके ऊपर है। राहु को आकाश और केतु को पाताल का कारक भी कहा गया है,आदि काल से राहु के लिये आसमानी सहायता और केतु से जमीनी सहायता का रूप मान्यता मे है जब आसमानी बारिस नही होती है तो जमीनी पानी से जीने के लिये पौधो और फ़सलो की रक्षा करना भी पाया जाता है। देवताओं और असुरों की सहायता से सागर के मंथन की कथा भी सभी ने सुनी होगी उस मंथन से निकलने वाला हलाहल भी था और अमृत भी था। हलाहल को भगवान शिव ने पान किया था अमृत को पान करने के लिये देवताओं को छद्म वेष मे भगवान विष्णु ने अपने अनुभव को आधार बनाया था,लेकिन उस जगत व्यापी अन्तर्यामी भगवान विष्णु ने सूर्य और चन्द्र के अन्दर यह भावना पैदा कर दी थी कि एक असुर भी अमृत पान को कर गया है। सुदर्शन चक्र से उस असुर के दो हिस्से कर दिये गये,सिर का हिस्सा राहु नाम से और धड वाला हिस्सा केतु के नाम से जाना गया। ईश्वर की प्रत्येक लीला मे राहु केतु का खात्मा करने की कथा का वृतान्त है। वह राम रावण युद्ध में रावण जिसके बीस सिर और दस भुजा का वर्णन दिया है। भगवान श्रीकृष्ण की कथा मे कालियादह में कालिया नाग के फ़न को नाथ कर अपने पौरुष का वर्णन और अपने को श्यामल रंग में रंगने की कथा है। चण्ड मुण्ड विनाश मे भी काली जो केतु के रूप मे मानी जाती है का वृतान्त दुर्गासप्तशती जो मार्कण्डेय पुराण यानी देवी भागवत में भी कही गयी है। आदि बातो से पता चलता है कि व्यक्ति का आजीवन इन्ही ग्रहों की चाल से जुडा होना माना जाता है।
जो लोग पौराणिक बातो को या चलने वाली मर्यादा को खतम करने की कोशिश तीसरे राहु से करते है उनके लिये यह भी माना जाता है कि वही तीसरा राहु जब उल्टी गति से दूसरे भाव मे आता है तो कुटुम्ब नाश के साथ धन नाश और बुद्धि नाश के लिये भी अपना प्रभाव देता है। अक्सर इस राशि वालो को जब राहु तीसरे से दूसरे भाव मे प्रवेश करता है तो जहर खाकर या किसी पारिवारिक क्लेश के कारण अपनी आत्महत्या तक करते हुये देखा गया है।
कालसर्प दोष की मान्यता दक्षिण के मन्दिरों देखी जाती है,नासिक में भी कालसर्प दोष का निवारण किया जाता है.
रामेश्वरम मे नागनादिर मन्दिर और रामकुण्ड के पास मे बनी शेषनाग की वाटिका कालसर्प योग की निवृत्ति से ही जोडे गये है,जहां राहु को समुद्र और केतु को शिव लिंग के रूप मे मान्यता दी गयी है.
सुचिन्द्रम मे हनुमानजी के घुटने मे मक्खन लगा कर कालसर्प दोष की पूजा की जाती है.
इसी मन्दिर में नवग्रह की आराधना करने के लिये जो कालसर्प योग की सीमा मे आते है एक वस्त्र जो नीचे का होना जरूरी है और केवल पुरुष वर्ग के द्वारा ही पूजा की जाती है,ऊपर का वस्त्र धारण करने के बाद या तो पूजा लगती नही है या वह वस्त्र ही किसी न किसी कारण से कुछ समय मे बरबाद हो जाता है.
बंगाल मे भी दक्षिणेश्वर के पास मे बारह महादेव को शिव के रूप मे और माता काली को केतु के रूप मे प्रस्तुत किया गया है.
कालीघाट मे भी साततल्ला शमशान को राहु और कालीमाता को केतु के रूप मे प्रस्तुत किया गया है।
आसाम के कामाख्या मन्दिर मे भी शिवलिंग का अन्तर्भाग स्थापित करने के बाद उसके अन्दर माता कामाख्या को विराजमान किया गया है.जो भक्त गये होंगे उन्हे जो एक अहसास हुआ होगा वह राह और जो उन्हे द्रश्य हुआ होगा वह केतु के रूप मे माना जा सकता है.
अमरनाथ जाने पर भी बनने वाला शिवलिंग केतु और पहाडों की दुर्गम यात्रा को राहु के रूप मे माना जाता है.
हिमाचल की जितनी भी देवियां है वह केतु के रूप मे दुर्गा के रूप मे पूजी जाती है और उनके द्वारा दी जाने वाली शक्ति को राहु को रूप मे माना जाता है.
(कृपया अपने अधूरे ज्ञान से चलने वाली मान्यताओं के प्रति लोगों की धारणा को समाप्त नही करे,पहले ही धारणाओ और मर्यादाओं को समाप्त करने में अंग्रेजी शासन और पूर्व के शासको ने अपनी कमी नही छोडी है आज के मानव की जो हालत है वह किसी भी प्रकार से शांति दायक नही है जिसे देखो वह अपनी ही धुन मे बहा जा रहा हैमित्रों अगली पोस्ट में हम राहु के साथ अन्य ग्रहों की युतियो के बारे में बात करेंगे
मित्रोंअपनी या अपने बच्चों की जन्मकुण्डली बनवाने या जन्मकुण्डली विश्लेषण करवाने लिए कॉल करें 9414481324/
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