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शनि का अष्टम भाव में फल | Saturn Effects 8th House. जन्मकुंडली में अष्टम भाव को शुभ नहीं माना गया है। यह त्रिक भाव भी है। इस भाव से व्यक्ति की आयु व मृत्यु के स्वरुप का विचार किया जाता है। शनि इस भाव का तथा मृत्यु का कारक ग्रह भी है।कुंडली का आठवा भाव और शनि दोनों ही बड़े महत्वपूर्ण और चर्चित विषय हैं। आठवां स्थान मृत्यु का भाव कहलाता है। इसलिए अष्टम स्थान को लेकर अक्सर लोग भयभीत रहते हैं। और यदि इस घर में शनि आ जाए यानी आठवें स्थान में शनि आ जाए तो डरना स्वाभाविक ही है।एक कहानी पढी थी कि जब शनि देव ने जन्म लिया और उन्होने अपनी आंखे खोली तो सूर्य देव जो उनके पिता थे उनको कोढ की बीमारी हो गयी,उनका सारथी जो रथ को चलाता था लंगडा हो गया,और रथ में चलने वाले घोडें अन्धे हो गये,मतलब शनि के अष्टम में आने से एक दम सूर्य अस्त हो गया,यही स्थान शनि के जन्म का कहा जाता है। किसी भी जातक की कुंडली में शनि अगर वृश्चिक राशि का है या फ़िर शनि उच्च की राशि में होकर अष्टम स्थान में है तो जातक को मौत के बाद की सम्पत्ति तो मिलेगी,जब मौत के बाद की सम्पत्ति मिलेगी तो सीधी बात है कि किसी भी रिस्तेदार की जो अष्टम भाव से सम्बन्ध रखता हो उसकी सम्पत्ति जातक को मिलेगी। अब अष्टम के रिस्तेदारों को गौर से देखने पर पता चलता है कि पिता का ग्यारहवा भाव और माता मा पंचम भाव यानी जातक के जन्म के बाद माता के परिवार का सूर्य जरूर डूबेगा। दूसरे यह स्थान माता के परिवार के अलावा भी कई स्थानों से सम्बन्ध रखता है,जैसे छठे स्थान से यह तीसरा स्थान है और मामा या छोटी मौसी के लिये भी माना जा सकता है जातक को नाना की भाभी की सम्पत्ति भी मिलेगी। यह स्थान पत्नी के मामा के भाग्य का स्थान भी माना जाता है यानी पत्नी का मामा कभी कभी न कभी भाग्य से जातक को अपनी सम्पत्ति का कुछ हिस्सा दे ही देगा। यह स्थान बडे भाई की पत्नी का मकान भी कहा जाता है यानी बडे भाई की ससुराल में भी सूर्य का डूबना माना जायेगा और सारथी के रूप में रहने वाली बडे भाई की सास भी लंगडी होकर मरेगी और उसकी भी मकान जैसी सम्पत्ति भी जातक के बडे भाई को मिलेगी। इस स्थान को छोटे भाई के रोजाना के कार्य और कार्य के बाद मिलने वाली बीमारियों और कर्जा दुश्मनी बीमारी के लिये भी माना जाता है जातक को छोटे भाई के कर्जा दुशमनी बीमारी को निपटाने के लिये अपने द्वारा खर्चा करने वाली बात इसलिये मानी जा सकती है कि तीसरा भाव पत्नी का भाग्य का भाव कहा जाता है,अगर जातक अपने छोटे भाई के लिये इन बातों में खर्चा करता है तो जातक का भाग्य का घर और अपमान मृत्यु जान जोखिम आदि के लिये सहारा भी मिलने में कोई सन्देह नही किया जा सकता है।
शनि का अष्टम भाव में फल | Saturn Effects 8th House. जन्मकुंडली में अष्टम भाव को शुभ नहीं माना गया है। यह त्रिक भाव भी है। इस भाव से व्यक्ति की आयु व मृत्यु के स्वरुप का विचार किया जाता है। शनि इस भाव का तथा मृत्यु का कारक ग्रह भी है।कुंडली का आठवा भाव और शनि दोनों ही बड़े महत्वपूर्ण और चर्चित विषय हैं। आठवां स्थान मृत्यु का भाव कहलाता है। इसलिए अष्टम स्थान को लेकर अक्सर लोग भयभीत रहते हैं। और यदि इस घर में शनि आ जाए यानी आठवें स्थान में शनि आ जाए तो डरना स्वाभाविक ही है।एक कहानी पढी थी कि जब शनि देव ने जन्म लिया और उन्होने अपनी आंखे खोली तो सूर्य देव जो उनके पिता थे उनको कोढ की बीमारी हो गयी,उनका सारथी जो रथ को चलाता था लंगडा हो गया,और रथ में चलने वाले घोडें अन्धे हो गये,मतलब शनि के अष्टम में आने से एक दम सूर्य अस्त हो गया,यही स्थान शनि के जन्म का कहा जाता है। किसी भी जातक की कुंडली में शनि अगर वृश्चिक राशि का है या फ़िर शनि उच्च की राशि में होकर अष्टम स्थान में है तो जातक को मौत के बाद की सम्पत्ति तो मिलेगी,जब मौत के बाद की सम्पत्ति मिलेगी तो सीधी बात है कि किसी भी रिस्तेदार की जो अष्टम भाव से सम्बन्ध रखता हो उसकी सम्पत्ति जातक को मिलेगी। अब अष्टम के रिस्तेदारों को गौर से देखने पर पता चलता है कि पिता का ग्यारहवा भाव और माता मा पंचम भाव यानी जातक के जन्म के बाद माता के परिवार का सूर्य जरूर डूबेगा। दूसरे यह स्थान माता के परिवार के अलावा भी कई स्थानों से सम्बन्ध रखता है,जैसे छठे स्थान से यह तीसरा स्थान है और मामा या छोटी मौसी के लिये भी माना जा सकता है जातक को नाना की भाभी की सम्पत्ति भी मिलेगी। यह स्थान पत्नी के मामा के भाग्य का स्थान भी माना जाता है यानी पत्नी का मामा कभी कभी न कभी भाग्य से जातक को अपनी सम्पत्ति का कुछ हिस्सा दे ही देगा। यह स्थान बडे भाई की पत्नी का मकान भी कहा जाता है यानी बडे भाई की ससुराल में भी सूर्य का डूबना माना जायेगा और सारथी के रूप में रहने वाली बडे भाई की सास भी लंगडी होकर मरेगी और उसकी भी मकान जैसी सम्पत्ति भी जातक के बडे भाई को मिलेगी। इस स्थान को छोटे भाई के रोजाना के कार्य और कार्य के बाद मिलने वाली बीमारियों और कर्जा दुश्मनी बीमारी के लिये भी माना जाता है जातक को छोटे भाई के कर्जा दुशमनी बीमारी को निपटाने के लिये अपने द्वारा खर्चा करने वाली बात इसलिये मानी जा सकती है कि तीसरा भाव पत्नी का भाग्य का भाव कहा जाता है,अगर जातक अपने छोटे भाई के लिये इन बातों में खर्चा करता है तो जातक का भाग्य का घर और अपमान मृत्यु जान जोखिम आदि के लिये सहारा भी मिलने में कोई सन्देह नही किया जा सकता है।
इस भाव के शनि की सवारी के लिये मैने कही सुना था कि इसके रथ को आठ सांप खींच रहे है उन आठ सांपों का शरीर एक है और फ़न आठ है,यानी शेषनाग का रूप माना जा सकता है,अक्सर जब हम इस शनि के लिये अपनी आराधना में भगवान श्रीकृष्ण के रूप को यमुना में गिरी गेंद को निकालने के लिये कालियादाह में जाकर और शेषनाग को नाथ कर उसके फ़नों पर ता ता थैया करते हुये देखते है तो आठवें शनि की बुरी बातों में कुछ कमी मिलती है,कुछ स्थानों पर इस शनि की सवारी को भैंसे के रूप में माना जाता है और जब व्यक्ति की मौत होती है तो वह भैंसे पर सवार यमराज को देखकर या लोक मान्यता को समझ कर मान ही सकता है कि शनि का रूप मृत्यु के देवता के रूप में भी है और तभी यूनान के लोग शनि की पूजा करते थे,शनि को इन्साफ़ का देवता भी मानते थे,एक बुजुर्ग ऋषि के रूप में मान्यता भी रखते थे। अन्ग्रेजी में शनि का नाम Saturan रखा गया है।
हर आदमी को तांत्रिक लोगों से डर लगता है,कारण आठवें भाव का शनि तांत्रिक बनने की योग्यता देता है,जातक के अन्दर इतने दुख भेजता है कि वह अपने को दुनियादारी से दूर लेजाकर शमशान को ही अपनी कार्यस्थली बनाता है और तांत्रिक शक्तियों के लिये अपने प्रयास करता है। वह शीत वायु नमी गरमी बरसात आदि को सहन करने की क्षमता रखता है भार को खींचने की योग्यता रखता है,कैसा भी भोजन खाने की हिम्मत रखता है और पचाता भी है शराब और तामसी वस्तुओं का सेवन करता है,उसके पास उन रूहानी ताकतों का आवागमन हो जाता है जो पहले से ही दुखी होती है या तांत्रिक कारणों से परेशान रही होती है। अक्सर देखा जाता है कि इस प्रकार के व्यक्ति लम्बी उम्र तक जिन्दा रहते है,कहावत भी है कि जो समय से भोजन को प्राप्त कर लेता है वह जल्दी मर जाता है और जो भूखा रहता है और भोजन के प्रयास को करता रहता है उसके अन्दर उन ताकतों का विकास हो जाता है जो किसी भी बीमारी को दूर रखने के लिये काफ़ी होती है।
अष्टम स्थान के शनि को शनि की उतरती और नीची साढेशाती के रूप में जाना जाता है। जातक के अन्दर मान अपमान का भेद और अपने मन के अन्दर ही कितने ही विचारों की लडाई अपने आप चलने लगती है और उन लडाइयों के कारण वह कुछ करने जाता है और कुछ करने लगता है। उसे जितनी लोग सहायता के लिये सामने आते है उन्हे वह दूर करता है और जो लोग गालियां देते है उनके ऊपर वह रहम करता है और गाली सुनने की आदत पड जाती है। अक्सर इस शनि के द्वारा जातक को अपने जीवन साथी से हमेशा मतभेद के साथ रहना पडता है कारण जीवन साथी का विचार जातक के परिवार के प्रति बिलकुल बेकार का ही माना जाता है वह पिता के परिवार से दूरिया रखने या किसी भी प्रकार की चालाकीकरने के लिये भी माना जाता है,जातक के जीवन साथी का व्यवहार इतना रूखा और बेकार सा हो जाता है कि वह कभी भी जातक के परिवार को परिवार नही समझ कर अपने मान अपमान को हमेशा सामने रखता है यही कारण होता है कि जातक जब अपनी शनि की उम्र में आता है तो अपने जीवन साथी से अपने आप दूरिया बना लेता है और जीवन साथी को जवानी के दिनों में किये गये व्यवहार के लिये पश्चाताप करना पडता है। अगर जातक का सूर्य कुछ मजबूत है तो जातक के पुत्र जातक के जीवन साथी के लिये अपनी स्वार्थी मर्यादा को कायम रखते है और जैसे ही उनका स्वार्थ पूरा होता है वे अपने स्वभाव से जातक के जीवन साथी के साथ दुर्व्यवहार करने लगते है,जातक के लिये जातक का जीवन साथी कई प्रकार के आक्षेप और विक्षेप भी देता है।
शनि के इस भाव के प्रभाव को दूर करने के लिये एक अच्छा उपाय यह भी कहा गया है कि जातक अगर खुद ही दुखों को अपने सीने से लगाकर चले और सुखों से दूरिया बना ले तो जातक को दुख परेशान ही नही कर सकते है,वह अगर अपने को अपमान में भी सुखी माने,सर्दी गर्मी और बरसात के असर को सहन करने की क्षमता को रखे तथा हितू नातेदार रिस्तेदार से भली बुरी सुनने का आदी बना रहे उसे यह चिन्ता नही हो कि कल क्या मिलेगा तो शनि दुख दे ही नही सकता है और एक दिन ऐसा आता है सभी सुख उस जातक के आगे पीछे घूमने लगते है और वह उन दुखों को देखने के बाद सुखों से नफ़रत पैदा कर लेता है।
इस भाव के शनि के कारण जातक की बहिन बुआ बेटी को या तो हमेशा दुखी ही देखा गया है या वे शनि जैसी सिफ़्त वाले लोगों से अपने सम्बन्ध बनाकर जातक को अपमानित करने के लिये पूरे प्रयास करने में कसर नही रखती है। जातक को जब कोई साधन नही मिलता है तो जातक अपने को उन्ही की शरण में लेजाकर पटक देता है और अपने को अपमानित होने में उसे कोई दुख नही होता है,अक्सर इस भाव के शनि वाले जातक के रिस्तेदारों से कभी नही बनती है वे अपनी चालाकी और अपने द्वारा जातक से मुफ़्त में प्राप्त करने के कारण बिगाडखाता कर लेते है और जब भी जातक के लिये कोई बात होती है तो केवल बुराई को ही सामने करने से बाज नही आते है।
इस भाव के शनि वाले जातक अक्सर ध्यान समाधि की तरफ़ चले जाते है और जब वे ध्यान समाधि के बाद अपने अन्तर्मन के अन्दर सूर्य की उस किरण को प्राप्त करते है जिसे अन्तर्ग्यान के रूप में जाना जाता है तो जातक को सभी प्रकार की शान्ति मिलती है,जातक उस ज्योति की किरण को दुबारा से प्राप्त करने के लिये कई प्रयास रोजाना करने लगता है और उसी प्रकाश के सहारे चलते चलते वह एक दिन सिद्ध पुरुष या स्त्री की श्रेणी में आजाता है लोग उसके पीछे घूमते है और वह किसी प्रकार के सुख को अपने पास नही आने के लिये कृतसंकल्प रहता है।यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में हो तो ऐसे में शनि दशा स्वास्थ कष्ट और संघर्ष उत्पन्न करने वाली होती है। अष्टम में शनि होना किसी भी स्थिति में शुभ तो नहीं है पर यदि यहाँ स्व उच्च राशि में हो या बृहस्पति से दृष्ट हो तो समस्याएं बड़ा रूप नहीं लेती और उनका समाधान होता रहता है।
यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में होने से ये समस्याएं उत्पन्न हो रही हों तो निम्नलिखित उपाय करना लाभदायक होगा।
1. ॐ शम शनैश्चराय नमः का जप करें।
2. साबुत उड़द का दान करें।
3. शनिवार को पीपल पर सरसों के तेल का दिया जलायें।--
4-नित्य अपने माता पिता से आशीर्वाद लें।
5-मजदूर वर्ग से प्रेम से पेश आयें और उनकी परेशानी में उनका साथ निभाएं।
---किसी जरूरतमंद की सहायता करें। इस शनि के प्रभाव को दूर करने के लिये और अपने अपमान आदि को दूर करने के लिये एक उपाय लालकिताब में बताया गया है कि जातक अगर चांदी का चौकोर टुकडा अपने गले में डाले रहता है तो चन्द्र मंगल की युति बनाकर वह दुखों से कुछ सीमा तक दूर रह सकता है।
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