सोमवार, 12 जून 2017

अस्त गृह .............. सूर्य के निकट डिग्री वाले गृह अस्त माने जाते है। अस्त गृह को लेकर लोगो मे भ्रम है की इसके कारक तत्व कमजोर हो जाते है जबकी वास्तविकता ये है कि अस्त गृह राजा के खास मन्त्री और पिता का सबसे लाडला बेटा है। किन्तु जैसे वट वृक्ष के नीचे उगे वाले पोधे आसानी से अस्तित्व नही बना पाते वैसे ही अस्त गृह देर से फल देते है किन्तु जब देते है तो अच्छा फल देते है या यू कह सकते है की सूर्य राजा है और अस्त गृह के कारकतत्वो को समझ कर इस्तेमाल करना आये तो इनकी सरकार मे चलती बहुत है। ..................... ग्रहों के अस्त होने के अंश: --------------------------- आकाश मंडल में जब भी कोई ग्रह सूर्य से एक निश्चित दूरी में या उसके अंदर आ जाता है तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपना तेज व शक्ति खोने लगता है जिसके कारण वह आकाश मंडल में दिखाई देना बंद हो जाता है, उस समय इसे अस्त ग्रह की संज्ञा दी जाती है। प्रत्येक ग्रह की सूर्य से यह समीपता का मापन अंशों में किया जाता है तथा इस मापन के अनुसार प्रत्येक ग्रह सूर्य से निम्नलिखित दूरी के अंदर आने पर अस्त हो जाता है : १. चन्द्रमा सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। २. मंगल सूर्य के दोनों ओर 17 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ३. बुध सूर्य के दोनों ओर 14 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। किन्तु यदि बुध अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हों तो वह सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ४. गुरू सूर्य के दोनों ओर 11 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ५. शुक्र सूर्य के दोनों ओर 10 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। किन्तु यदि शुक्र अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हों तो वह सूर्य के दोनों ओर 8 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ६. शनि सूर्य के दोनों ओर 15 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। ७. राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी भी अस्त नहीं होते हैं। अस्त ग्रह निर्बल हो जाता है और वह अपना फल सूर्य के माध्यम से प्रदान करता है। अस्त ग्रहो का अपना एक विशेष महत्व होता है। इसलिए अस्त ग्रहो की ओर ध्यान देना आवश्यक है अब बात करते है ग्रह अस्त कैसे होता है? कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दुरी के अंदर आ जाता है तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपना तेज और शक्ति खोने लगता है जिसके कारण वह सौर मंडल में दिखाई देना बंद हो जाता है ऐसे ग्रह को अस्त ग्रह कहते है।प्रत्येक ग्रह की सूर्य से यह समीपता अंशो में मापी जाती है इस मापदंड के अनुसार हर एक ग्रह सूर्य से निम्नलिखित दुरी के अंदर आ जाने से अस्त हो जाता है: चंद्रमा सूर्य के दोनों और 12 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।बुध सूर्य के दोनों ओर 14 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।लेकिन बुध अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हो तो वह सूर्य के दोनों और 12 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त होता है।गुरु सूर्य के दोनों ओर 11 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।शुक्र सूर्य के दोनों और 10 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।बुध की तरह शुक्र भी यदि अपनी सामान्य गति की बनिस्पत वक्र गति से चल रहे हो तो वह सूर्य के दोनों ओर 8 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाते है।शनि सूर्य के दोनों ओर 15 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी अस्त नही होते।हमेशा वक्री रहते है। किसी भी ग्रह के अस्त हो जाने से उसके प्रभाव में कमी आ जाती है तथा वह ग्रह कुंडली में ठीक तरह से कार्य करने में सक्षम नही रह जाता।किसी भी अस्त ग्रह की प्रभावहीनता का सही अनुमान लगाने के लिए उस ग्रह का कुंडली में स्थिति के कारण बल, सूर्य का उसी कुंडली में विशेष बल व अस्त ग्रह की सूर्य से दुरी देखना आवश्यक होता है।उसके बाद ही उस ग्रह की कार्य क्षमता के बारे में सही जानकारी प्राप्त होती है।उदाहरण के लिए, किसी कुंडली में गुरु सूर्य से 11 अंश दूर होने पर अस्त ही कहलाएंगे तथा 1 अंश दूर पर भी अस्त कहलाएंगे लेकिन पहली स्थिति में कुंडली में गुरु का बल दूसरी स्थिति के मुकाबले अधिक होगा क्योंकि जितना ही कोई ग्रह सूर्य के पास आ जाता है उतना ही उसका बल कम होता जाता है।

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