गुरुवार, 8 जून 2017

क्या है ज्योतिष मित्रोंज्योतिष का अर्थ है.ज्योति यानी प्रकाश ,इस प्रकार ज्योतिषी का अर्थ हुआ जो प्रकाशमान हो .और दूसरों को भी अपने ज्ञान के प्रकाश से रास्ता दिखा सके.वर्तमान समय में ज्योतिषी वह व्यक्ति है जो ,धोती कुरता या कुरता पायजामा पहनता हो तिलक लगाता हो शिखा रखता हो और तमाम श्लोक, मंत्र गिना सकता हैउसका पहनावा और दिखावा निश्चित हो .चाहे उसके अन्दर मर्यादा ,आध्यात्म,आचरण और शुचिता हो, या न हो आचार्य वराहमिहिर ने ,जो की ज्योतिष के प्रणेता थे ,ने एक ज्योतिषी होने की तमाम शर्तें बताई है.जिनमे मूल रूप से आचरण और संस्कारों की बात ही कही गयी है वराहमिहिर ने कोई " ड्रेस कोड" नहीं बताया हैअहंकार तो सर्वथा त्याज्य है उनकी परिभाषा में जबकि वर्त्तमान समय के माननीय ज्योतिषी किसी व्यक्ति के भविष्य के बारे में ऐसे चुनौतियां देते हैं मानो उन्होंने ही उस व्यक्ति का जीवन नियत किया है और जनता यह समझती है ज्योतिषी तो स्वयं भगवान का सोलह कला युक्त अवतार है और वह उसके जीवन की तमाम समस्याओं को नष्ट कर देगा जनता और ज्योतिषी दोनों ही ज्योतिष जैसे महान पराविज्ञान के महत्व को समझे बिना इसका प्रयोग कर रहे हैं और असफलता की दशा में एक दूसरे पर दोषारोपण भी कर रहे हैं कहाँ हैं आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्योतिषी और कहाँ है वह जनता जो इस बात को समझ सके ?हमें हमारी प्राचीन सभ्यता का गौरव है और इसी लिए हमें इसे सभ्यता की अर्वाचीन चुनौतियों से तराशना जरुरी हो जाता है| ज्योतिष शास्त्र भी हमारी वेदिक संस्कृति का एक अनमोल उपहार है| जब हम ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों का अवलोकन करते हैं तो हमें समयांतर पर शास्त्र में किये गए संशोधन नजर आते है| इससे यह प्रतिपादित होता है की संशोधित विचारों को शास्त्र में मान्यता देने में उस काल में कोई छोछ नहीं था| दुर्भाग्य वश जिस समयकाल में शास्त्रों की रचना हुई, हमारे महषींओं ने अपने शिष्यों की मेघा के अनुरूप अपने ज्ञान को सूत्रबद्ध किया| विचारों को मुद्रित करने के साधनों की मर्यादा, अपने ज्ञान को अनुचित हाथों में जाने से रोकने की चेष्ठा एवं कुछ हद तक वर्ण सम्बन्धी धारणाओं की वजह से सूत्रबध्ध ग्रंथों को जन-साधारण स्तर पर लोक-भोग्य स्वरूप में प्रकाशित नहीं किया जा सका| जब बाहरी जगत ने विज्ञान युग में प्रवेश किया, हमारी पुरातन ज्ञान की धरोहर को विदेशी शासन के दुर्व्यवहार से काफी क्षति हुई| इस संधिकाल में ज्योतिष शास्त्र भी अवरुद्ध हुआ| ज्योतिष भी मेघावी मनुष्यों के हाथों से निकल कर धीरे धीरे लालची, कूप-मुन्डको के हाथों का खिलौना बनाता जा रहा है| जो लोग अन्य व ऐसे लोग आज ज्योतिषी के मुखौटे पहन कर साधारण लोगों के ज्योतिष विषयक अज्ञान का भरपूर फायदा उठा रहें हैं| यह धन पीपसुओ ने ऐसे कई दुर्योगों को शास्त्रोमे घुसा दिया जिस का कोई शास्त्रोक्त प्रमाण न हो न ही कोई तार्किक समाधान|ऐसा इसलिए क्योंकि भारतवर्ष में ज्‍योतिष के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कम लोग हैं, अधिकांश का आस्था‍वान चिंतन है , वे हमारे ऋषि महर्षियों को भगवान और ज्योतिष को धर्मशास्त्र समझते है, जबकि ऋषिमुनियों को वैज्ञानिक तथा ज्योतिष शास्त्र् को विज्ञान मानना चाहिएे हैं, जिसमे समयानुकूल बदलाव की आवश्यंकता है। इस प्रकार ज्योतिष विशेषज्ञों के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोणवालों के लिए यह विज्ञान ही है ऐसी ही परिस्थितियों में हम यह मानने को मजबूर हो जाते हैं कि वास्तव में प्रकृति के नियम ही सर्वोपरि हैं। हमलोग पाषाण-युग, चक्र-युग, लौह-युग, कांस्य-युग ......... से बढ़ते हुए आज आई टी युग में प्रवेश कर चुकें हैं, पर अभी भी हम कई दृष्टि से लाचार हैं। नई-नई असाध्य बीमारियॉ ,जनसंख्या-वृद्धि का संकट, कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा ,कहीं भूकम्प तो कहीं ज्वालामुखी-विस्फोट--प्रकृति की कई गंभीर चुनौतियों से जूझ पाने में विश्व के अव्वल दर्जे के वैज्ञानिक भी असमर्थ होकर हार मान बैठे हैं। यह सच है कि प्रकृति के इन रहस्यों को खुलासा कर हमारे सम्मुख लाने में इन वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे हमें अपना बचाव कर पाने में सुविधा होती है। प्रकृति के ही नियमो का सहारा लेकर कई उपयोगी औजारों को बनाकर भी हमने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों का झंडा गाडा है , किन्तु वैज्ञानिकों ने किसी भी प्रकार प्रकृति के नियमों को बदलने में सफलता नहीं पायी है। इसलिए मेरा मानना है ज्योतिष भी एक विज्ञान है पर अभी बहुत शोध बाकी है आचार्य राजेश

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