लेखक: ज्योतिष आचार्य राजेश कुमार, हनुमानगढ़
संसार में हर जीव उस वस्तु की चाहत रखता है जो उसके पास नहीं है। जो पास है, उसका मोल नहीं और जो दूर है, वही अनमोल है। यही जीवन की विडंबना है और ज्योतिष में इस 'अतृप्त चाहत' का नाम ही राहु है। शरीर दिखाई देता है, लेकिन उस शरीर के अंदर चलने वाले विचार दिखाई नहीं देते। राहु उसी विचार का धुआं है। ज्योतिष में शरीर को लगन से देखा जाता है जो कि दृश्य है, लेकिन राहु एक छाया ग्रह है जो अदृश्य है। अगर धुआं सही दिशा में उठे तो भोजन पकता है, और अगर गलत दिशा में फैले तो घर में केवल घुटन और आंखों में जलन पैदा करता है। अधिकांश लोग राहु को केवल एक पापी ग्रह मानकर उससे डरते हैं, जबकि सत्य यह है कि कलयुग में बिना राहु के किसी भी बड़ी सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ी जा सकती। राहु वह 'प्रोजेक्टर' है जो रील (किस्मत) में छपी छोटी सी तस्वीर को बड़े परदे पर 'सिनेमा' बनाकर दुनिया को दिखाता है।
समस्या तब आती है जब प्रोजेक्टर तो चल रहा हो, लेकिन सामने परदा (आधार) न हो। ऐसे में चित्र हवा में बिखर जाते हैं। ठीक इसी प्रकार, कुंडली में यदि राहु बलवान है लेकिन लग्नेश (शरीर का मालिक) कमजोर है, तो व्यक्ति केवल हवाई किले बनाता है। उसके विचार ब्रह्मांड की सैर करते हैं, लेकिन पैर जमीन पर नहीं टिकते। प्रायः देखा जाता है कि राहु की महादशा या अंतर्दशा आते ही लोग आंख मूंदकर 'गोमेद' पहनाने की सलाह दे देते हैं। यह वैसा ही है जैसे किसी व्यक्ति को पहले से ही बुखार (गर्मी) हो और उसे ऊपर से गर्म कंबल ओढ़ा दिया जाए। गोमेद राहु की ऊर्जा को बढ़ाता है, उसे शांत नहीं करता।
प्रस्तुत कुंडली एक ऐसे जातक की है जिसने राहु की शांति और व्यापार बढाने के लिये भारी वजन का गोमेद पहन रखा है। इस जातक का लगन 'सिंह' है और राहु धन भाव यानी द्वितीय भाव में कन्या राशि में बैठा है। सामान्य दृष्टि से देखने पर राहु बुध की राशि में मित्रवत है, लेकिन सूक्ष्म रूप से देखने पर राहु यहाँ 'हस्त' नक्षत्र में गोचर कर रहा है जिसका स्वामी चंद्रमा है। गोमेद पहनने के बाद से जातक की वाणी में कड़वाहट बढ़ गई और संचित धन गलत निर्णयों में बहने लगा। कारण स्पष्ट है—राहु (धुआं) जब बुध (बुद्धि) के घर में और चन्द्रमा (मन/पानी) के नक्षत्र में बैठेगा, तो वह 'बुद्धि और मन' दोनों पर धुंध चढ़ा देगा। ऐसे में गोमेद धारण करने से वह धुंध (Confusion) और गहरी हो गई।
यहाँ एक बहुत गहरा तकनीकी पेच फंसा हुआ था जिसे केवल ऊपरी तौर पर कुंडली देखने वाले ज्योतिषी नहीं देख पाए। सिंह लगन में राहु का राशि स्वामी बुध (Mercury) है। जब बुध का सूक्ष्म विवेचन नक्षत्र और उप-नक्षत्र (Sub-Lord) के स्तर पर किया गया, तो चौंकाने वाला सत्य सामने आया। भले ही बुध राशि कुंडली में सामान्य अवस्था में था, लेकिन नक्षत्र और उप-नक्षत्र के स्तर पर बुध 2, 10 और 11 (धन, कर्म और लाभ) जैसे उत्तम भावों का प्रबल कार्येश (Significator) बन रहा था। यानी खजाना तो बुध के पास था, लेकिन चाबी राहु के धुएं में खो गई थी।
अतः जातक को गोमेद तुरंत उतरवाकर, बुध का रत्न 'पन्ना' (Emerald)—जो कि हरे रंग की आभा लिए है—सोने (सूर्य की धातु) में कनिष्ठा उंगली में धारण करवाया गया। इसके पीछे तीन ठोस कारण थे:
* मैत्री संबंध: बुध और सूर्य (लग्नेश) नैसर्गिक रूप से मित्र हैं। राजा (सूर्य) और राजकुमार (बुध) की युति हमेशा शुभ होती है। सोने में पन्ना पहनाने से शरीर (सूर्य) और बुद्धि (बुध) का मिलन हो गया।
* लाभ का कारक: सिंह लग्न में बुध साक्षात 'लाभ स्थान' (11वां भाव) का स्वामी बनता है। ग्यारहवां भाव इच्छा पूर्ति और 'गेंस' (Gains) का सबसे बड़ा कारक भाव है। पन्ना पहनने से जातक ने सीधे अपने लाभ भाव को जागृत कर दिया।
* नक्षत्र बल: बुध नक्षत्र स्तर पर धन और कर्म का फल देने को तैयार बैठा था।
परिणाम यह हुआ कि बुध के मजबूत होते ही, उसने अपने नक्षत्रों के माध्यम से अच्छे भावों का फल देना शुरू कर दिया। राहु की जो शरारत थी, वह 'सटीक व्यापारिक बुद्धि' में बदल गई और जातक का धन व्यर्थ बहने की बजाय सही निवेश में परिवर्तित होने लगा।
रत्न धारण करना केवल अंगूठी पहनना नहीं है, बल्कि शरीर के 'एंटीना' को सही फ्रीक्वेंसी पर सेट करना है। यदि ग्रह ऊपर से कमजोर दिखे लेकिन नक्षत्र और उप-नक्षत्र से मजबूत हो, तो उसका रत्न रंक को भी राजा बना सकता है। इसलिए, लकीर का फकीर बनने की बजाय, नक्षत्र, मित्रता और भावेश (लाभेश) की गहराई में उतर कर ही यह निर्णय लेना चाहिए कि कौन सा ग्रह आपके जीवन की नैया पार लगाएगा।

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