।सिर्फ मंदिर के पुजारी, कंप्यूटर या 'पड़ोसी' की राय सुनकर अच्छे रिश्ते मत ठुकराइए: नाड़ी दोष का वह 'अंतिम सच' जो आपको जानना जरूरी है
(एक वैज्ञानिक, शास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक और शोधपूर्ण विश्लेषण)
"आचार्य जी, लड़का लाखों में एक है, लड़की भी सुयोग्य है... सब कुछ मिल रहा है, लेकिन पंडित जी ने मना कर दिया है कि 'नाड़ी एक है', शादी नहीं हो सकती, वरना अनर्थ हो जाएगा।"
यह वाक्य मैंने अपने ज्योतिषीय अनुभव में हजारों बार सुना है। जब मैं उन कुंडलियों का गहराई से विश्लेषण करता हूँ, तो पाता हूँ कि वहां नाड़ी दोष वास्तव में था ही नहीं—वह तो शास्त्रों के नियमों से कब का रद्द (Cancel) हो चुका था!
आज समाज में माता-पिता दो तरह की बड़ी गलतियाँ कर रहे हैं, जिससे उनके बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है:
* कंप्यूटर का 'अधूरा ज्ञान': कंप्यूटर केवल 'गणित' जानता है, 'ज्योतिष' के अपवाद (Exceptions) नहीं। वह दोष तो दिखा देता है, लेकिन उसका परिहार (Cancellation) नहीं दिखाता।
* 'विशेषज्ञ' की सलाह पर 'अज्ञानी' का वीटो: कई बार किसी विद्वान के 'हाँ' करने के बाद भी, लोग किसी रिश्तेदार या कम जानकार पंडित की डराने वाली बात सुनकर सोने जैसा रिश्ता ठुकरा देते हैं।
याद रखें: हीरे की परख जौहरी को होती है, सब्जी वाले को नहीं। इसलिए विशेषज्ञ की राय पर भरोसा करें।
आज मैं, आचार्य राजेश कुमार, आपको नाड़ी दोष के वे अकाट्य तर्क, 13 शास्त्रीय प्रमाण और उपाय दे रहा हूँ जो आपकी आँखें खोल देंगे।
1. सबसे पहले समझें: नाड़ी कोई भूत नहीं, यह 'विज्ञान' है
ज्योतिष में जिसे हम 'नाड़ी' कहते हैं, वह केवल नक्षत्रों का खेल नहीं है। यह हमारे शरीर और डीएनए का विज्ञान है:
* आयुर्वेद (त्रिदोष): नाड़ी वात, पित्त और कफ का संतुलन है। विवाह में अलग नाड़ी इसलिए देखी जाती है ताकि पति-पत्नी की शारीरिक ऊर्जा (Energy) में टकराव न हो।
* रक्त समूह (Blood Group Logic): ऋषियों ने हजारों साल पहले 'आर.एच. फैक्टर' (Rh Factor) को नापने के लिए नाड़ी बनाई थी। अगर आज मेडिकल रिपोर्ट में पति-पत्नी का ब्लड ग्रुप कंपैटिबल (मैच) है, तो नाड़ी दोष का 90% भय वहीं खत्म हो जाता है।
2. सबसे बड़ा शास्त्रीय भेद: क्या नाड़ी दोष 'सबके लिए' है?
(यह नियम 90% लोग नहीं जानते)
शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि नाड़ी दोष हर किसी पर समान रूप से लागू नहीं होता। 'मुहूर्त चिंतामणि' और 'ज्योतिर्विदाभरणम्' स्पष्ट कहते हैं:
> "ब्राह्मणेषु नाड़ी दोषः, क्षत्रियेषु वर्ण दोषः।
> वैश्येषु गण दोषश्च, शूद्रेषु योनि दोषः।।"
>
इसका अर्थ:
* ब्राह्मण: नाड़ी दोष मुख्य रूप से ब्राह्मणों के लिए अनिवार्य है (मंत्र/साधना ऊर्जा के कारण)।
* क्षत्रिय: इनके लिए 'वर्ण दोष' मुख्य है।
* वैश्य: इनके लिए 'गण दोष' (मैत्री/समाज) मुख्य है।
* शूद्र: इनके लिए 'योनि दोष' (शारीरिक सुख) मुख्य है।
निष्कर्ष: आज हम सिर्फ एक 'नाड़ी' को पकड़कर बैठ गए हैं और उसे सब पर थोप रहे हैं। अगर आप ब्राह्मण वर्ण (वृत्ति से) नहीं हैं, तो नाड़ी दोष का प्रभाव वैसे भी बहुत कम हो जाता है।
3. सबसे गहरा 'सूत्र': गोत्र और डीएनए का विज्ञान
(यह तर्क नाड़ी दोष का सबसे बड़ा 'काट' है)
महर्षि वसिष्ठ का अभेद्य सूत्र: वसिष्ठ संहिता स्पष्ट कहती है—
> "असगोत्रैकमार्गेषु न नाड़ीं परिचिंतयेत्।"
>
अर्थ: यदि वर और वधु का गोत्र अलग-अलग है, तो नाड़ी दोष का भय रखने की आवश्यकता ही नहीं है।
वैज्ञानिक सत्य: अलग गोत्र का मतलब है कि लड़का और लड़की का DNA अलग है। जब डीएनए ही अलग हो गया, तो नाड़ी (जो रक्त का कारक है) का दोष अपने आप 80% खत्म हो जाता है। गोत्र 'मूल' (जड़) है, नाड़ी केवल 'पत्ता' है।
4. शास्त्रों के अकाट्य प्रमाण (13 महाग्रंथों का निचोड़)
हम ऋषियों का नाम लेकर डरते हैं, लेकिन उन्हीं ऋषियों ने हमें बचाव के रास्ते भी दिए हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के 13 प्रमुख ग्रंथों का निचोड़ यहाँ देखिए:
* 'मुहूर्त चिंतामणि' (राम दैवज्ञ): पंचांगों के इस आधार ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृत्तिका, पुष्य, श्रवण, रेवती और उत्तराभाद्रपद—इन नक्षत्रों में नाड़ी दोष शून्य (Null) होता है।
* 'ज्योतिर्विदाभरणम्' (कालिदास कृत): महाकवि कालिदास कहते हैं— "ग्रहैकमैत्र्यं यदि राशि वश्यं..." यानी यदि वर-वधु के राशि स्वामियों (Rashi Lords) में मित्रता है, तो नाड़ी दोष निष्प्रभावी हो जाता है।
* 'प्रश्न मार्ग' (दक्षिण भारतीय महाग्रंथ): यह ग्रंथ एक बहुत बड़ी बात कहता है— "मनः प्रवृत्तिः प्रथमं..." अर्थात यदि लड़का-लड़की का मन मिलता है और प्रेम सच्चा है, तो यह 'मनो-मैत्री' नाड़ी दोष के विष को काट देती है।
* 'वसिष्ठ संहिता' (महर्षि वसिष्ठ): "असगोत्रैकमार्गेषु..." यानी यदि गोत्र अलग है (DNA अलग है), तो नाड़ी दोष का विचार छोड़ देना चाहिए।
* 'नारद संहिता' (देवर्षि नारद): यदि नक्षत्र एक हो, लेकिन चरण (Padas) अलग-अलग हों, तो नाड़ी दोष भंग माना जाता है।
* 'गौतम संहिता': यदि वर-वधु की 'राशियाँ मित्र' हों, तो एक नाड़ी होने पर भी विवाह शुभ और संतानदायक होता है।
* 'बृहस्पति संहिता': यदि कन्या की कुंडली में गुरु (Jupiter) बलवान हो या सप्तम भाव पर गुरु की दृष्टि हो, तो नाड़ी दोष वैवाहिक सुख को नष्ट नहीं कर सकता।
* 'गर्ग संहिता': यदि कुंडली में 'नव-पंचम' योग (राशियाँ एक-दूसरे से 5वीं और 9वीं) है, तो नाड़ी दोष प्रभावहीन है।
* 'भावार्थ रत्नाकर': यदि वर-वधु दोनों की कुंडली में शुक्र (Venus) अच्छी स्थिति में है, तो भोग और सुख में कोई बाधा नहीं आती, चाहे नाड़ी एक ही क्यों न हो।
* 'महर्षि अत्रि': समसप्तक राशियाँ (एक-दूसरे से 7वीं) 'गौरी-शंकर योग' बनाती हैं, जो दोष नाशक है।
* 'राज मार्तण्ड': यह ग्रंथ कहता है— "दांपत्योर्बलयोरेकः..." यानी राशि स्वामी की मित्रता नाड़ी दोष को नष्ट कर देती है।
* 'होरा सार': यदि कुंडली में 'दीर्घायु योग' है, तो नाड़ी दोष मृत्यु का कारण नहीं बन सकता।
* 'पीयूषधारा': कुछ विशिष्ट नक्षत्रों (जैसे विशाखा, श्रवण आदि) के संयोग में नाड़ी दोष नहीं लगता।
5. व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक तर्क
* समान फ्रीक्वेंसी (Resonance): अगर पति-पत्नी दोनों की नाड़ी एक है, तो इसका एक सकारात्मक अर्थ यह भी है कि उनकी मानसिक तरंगें (Frequency) एक हैं। वे एक-दूसरे को बिना बोले समझ सकते हैं।
* परीक्षा का गणित: गुण मिलान 36 अंकों की परीक्षा है। नाड़ी के 8 अंक होते हैं। अगर किसी को 36 में से 28 अंक मिल रहे हैं (नाड़ी के 8 काटकर), तो क्या आप उसे 'फेल' कहेंगे? बिल्कुल नहीं!
6. यदि दोष फिर भी हो, तो क्या करें? (विशेषज्ञ उपाय)
मान लीजिए शास्त्रानुसार दोष भंग नहीं हो रहा, लेकिन प्रेम सच्चा है और विवाह करना अनिवार्य है, तो हमारे ऋषियों ने इसके 'प्रायश्चित' और 'उपाय' भी बताए हैं।
आचार्य राजेश कुमार के ।
* रत्न विज्ञान: कुंडली विश्लेषण करवाकर, वर या वधु के कमजोर ग्रहों को बल देने वाले विशिष्ट रत्न धारण करें (विशेषकर बृहस्पति और शुक्र के रत्न)।
* निष्कर्ष: आचार्य राजेश की सलाह
नाड़ी दोष के नाम पर भयभीत होकर अच्छे रिश्तों को न ठुकराएं। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर 'गणित' जानता है, 'ज्योतिष' नहीं।
यदि कुंडली में 'एक नाड़ी' बताई गई है, तो घर बैठे निर्णय न लें। किसी योग्य ज्योतिषी से पूछें— "क्या शास्त्रों का परिहार (Cancellation) लग रहा है?" अगर हाँ, तो निडर होकर विवाह करें।
ज्योतिष जीवन संवारने के लिए है, डराने के लिए नहीं।
लेखक:
ज्योतिष आचार्य राजेश कुमार
(वैदिक ज्योतिष, लाल किताब, नाड़ी ज्योतिष, वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ)
निवास: हनुमानगढ़, राजस्थान।
(नोट: आचार्य राजेश जी हनुमानगढ़ के एक प्रतिष्ठित ज्योतिषी और महाकाली के अनन्य सेवक हैं। देश-विदेश में उनके अनेक यजमान जुड़े हुए हैं और वे अपने सटीक फलादेश, रत्नों के विशेष ज्ञान और ईमानदार मार्गदर्शन के लिए जाने जाते हैं।)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें