आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें07597718725-०9414481324 नोट रत्नों का हमारा wholesale का कारोबार है असली और लैव टैस्ट रत्न भी मंगवा सकते है
सोमवार, 13 मार्च 2017
मित्रों आज त्योहार 2 दिन होने लग गया है आखिर ऐसा क्योहै।आज होली है और होली परं यह बात मेरे ध्यान में आई है सोचा आप लोगों से शेयर करुपहले लोग जानते थे कि वसंत ऋतु में फागुन का महींना आता है और फागुन के आखिरी दिन पूर्णमासी को हिरणाकश्यम की बहन ने प्रहलाद को अपनी गोद में बिठाकर जलाने का प्रयास किया था क्योंकि हिरणाकश्यम अपने बेटे प्रहलाद को मार डालना चाहता था और होलिका को वरदान था वह नहीं जलेगी । हुआ था उल्टा। होलिका जल गई और प्रहलाद बीच में खड़े रह गए । उसके दूसरे दिन हिरणाकश्यप मारा गया था । फागुन का अन्तिम दिन एक ही होगा, दो नहीं हो सकते।इसी प्रकार मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को होती थी क्योंकि इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में जाते हैं । हमेशा से सुनते आए हैं कि भीष्मपितामह को इच्छामृत्यु का वरदान था और उन्होंने मकर संक्रान्ति के ही दिन अपने प्राण त्यागे थे । यदि आज वाले ज्योतिषी होते तो 14 की जगह 15 को संक्रान्ति बता देते तो भीष्म को एक दिन और शरसैया पर यानी वाणों की नोक पर लेटे रहना पड़ता ।रामचन्द्र जी लंका जीत कर अयोध्या लौटे तो वहां खुशियां मनाई गईं थी, दीपमालिका सजी थी और समय के साथ यह दीपावली का पर्व बन गया । यह पर्व क्वार के महीने में अमावस्या के दिन पड़ता है लेकिन अब इस अमावस्या को भी ज्योतिषी लोग इधर उधर खिसका देते है । ब होली, दीवाली और मकर संक्रान्ति इधर उधर खिसकते हैं तो स्वाभाविक है शेष सभी त्योहार अपनी जगह बदलेंगे । लेकिन जगह बदलने से उतनी तकलीफ नहीं जितनी दो दिन त्योहार मनाने से होती है मुस्लिम त्योहारों में ज्योतिष ज्ञान का अहंकार नहीं है । चांद दिखेगा तो त्योहार होगा और नहीं दिखेगा तो नहीं होगा । हिन्दू ज्योतिषी तो ग्रहों की चाल जानने का दम भरते हैं तब क्या आजकल उनकी चाल बदल गई है।हार दो दिन मनाने का कोई औचित्य नहीं, केवल पचाग वनाने वाले ज्योतिषियों का अहंकार है । हम जानते हैं कि त्योहार तिथियों के हिसाब से होते हैं और तिथ का आरम्भ सूर्योदय से होता है और उदया तिभि मानी जाती है । तब दो दिन एक ही तिथि हो ही नहीं सकती । यदि हिन्दू समाज के ज्योतिषी अपना अहंकार नहीं छोड़ेंगे तो त्योहारों के प्रति आस्था समाप्त हो जाएगी । आशा है वे ऐसा नहीं चाहेंगे हमारे त्यौहारों का एक ही दिन निश्चित हो और पूरा भारत मिलकर ब त्योहार मनाए ।परक्या हो रहा है उज्जैन से कुछ प्रचार निकल रहा है बनारस से कुछ निकल रहा है पंजाब में किसी दिन त्यौहार होता है तो उत्तर प्रदेश में उसके अगले दिन इसी तरह अलग अलग तरह से सारे त्योहार भी दो दिन में वट जाता है यह हमारे हिंदूओं मे ऐसा क्यों हो रहा है मेरी पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें send करें ताकि औरो तक यह मैसेज पहुंच सके. आचार्य राजेश
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