शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018



न मुहब्बत न दोस्ती के लिए वक्त रुकता नहीं किसी के लिए। दिल को अपने सज़ा न दे यूँ ही इस ज़माने की बेरुखी के लिए। कल जवानी का हश्र क्या होगा सोच ले आज दो घड़ी के लिए। हर कोई प्यार ढूंढता है यहाँ अपनी तनहा सी ज़िन्दगी के लिए। वक्त के साथ साथ चलता रहे यही बेहतर है आदमी के लिए

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