ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अखिल ब्राह्मण मे विचरण कर रहे ग्रहो का रत्नों (रंगीन मूल्यवान पत्थरों ) से निकटता का संबंध होता है
मनुष्य के जीवन पर आकाशीय ग्रहों व उनकी बदलती चालों का प्रभाव अवश्य पड़ता है, ऐसे मे यदि कोई मनुष्य अपनी जन्म-कुंडली मे स्थित
पाप ग्रहों की मुक्ति अथवा अपने जीवन से संबन्धित किसी अल्पसामर्थ्यवान ग्रह की शक्ति मे वृद्धि हेतु उस ग्रह का प्रतिनिधि रत्न
धारण करता है तो उस मनुष्य के जीवन तथा भाग्य मे परिवर्तन अवश्यभावी हो जाता है बशर्ते की उसने वह रत्न असली ओर दोष रहित होने के साथ-साथ पूर्ण विधि-विधान से धारण किया हो पुखराज की गुणवत्ता
आकार, रंग तथा शुद्धता के आधार पर तय की जाती है। जातकों को अपनी कुंडली के अनुसार पुखराज को धारण करना चाहिए जितना यह मूल्यवान है उतनी ही इस रत्न के लाभ हैं। इस रत्न को धारण करने से आर्थिक 
पाप ग्रहों की मुक्ति अथवा अपने जीवन से संबन्धित किसी अल्पसामर्थ्यवान ग्रह की शक्ति मे वृद्धि हेतु उस ग्रह का प्रतिनिधि रत्न
धारण करता है तो उस मनुष्य के जीवन तथा भाग्य मे परिवर्तन अवश्यभावी हो जाता है बशर्ते की उसने वह रत्न असली ओर दोष रहित होने के साथ-साथ पूर्ण विधि-विधान से धारण किया हो पुखराज की गुणवत्ता
आकार, रंग तथा शुद्धता के आधार पर तय की जाती है। जातकों को अपनी कुंडली के अनुसार पुखराज को धारण करना चाहिए जितना यह मूल्यवान है उतनी ही इस रत्न के लाभ हैं। इस रत्न को धारण करने से जातक की कुंडली का अध्ययन करने से पूर्व उस कुंडली मे वृहस्पति की स्थिति ओर बलाबल पर सर्वप्रथम ध्यान देता है ।
नवग्रहों धरती के नवरत्नों मे से वृहस्पति का रत्न ‘पुखराज’ होता है । इसे ‘गुरु रत्न’ भी कहा जाता है धरती पर जितने भी रंगों के फूल पाए जाते हैं पुखराज उतने ही रंगों में पाया जाता है आमतौर पर यहसफ़ेद, पीला, गुलाबी, आसमानी, हरा लाल संदुरी तथा नीले रंगों मे पाया जाता है । किन्तु वृहस्पति ग्रह के प्रतिनिधि रंग ‘पीला’ होने के कारण ‘पीला पुखराज’ ही इस ग्र्ह के लिए उपयुक्त और अनुकूल रत्न माना गया है प्रायः पुखराज विश्व के अधिकांश देशों मे न्यूनाधिक्य पाया जाता है , परंतु सामान्यतः ब्राज़ील तथा श्रीलंका का पुखराज क्वालिटी मे सर्वोत्तम माना जाता है । वैसे भारत मे भी उत्तम किस्म का पुखराज पाया गया है पुखराज हड्डी का दर्द, काली खांसी , पीलिया , तिल्ली, एकांतरा ज्वर मे धारण करना लाभप्रद है इसे कुष्ठ रोग व चर्म रोग नाशक माना गया है इसके अलावा इस रत्न को सुख व संतोष प्रदाता, बल-वीर्य वनेत्रज्योतिवर्धक माना गया हैआयुर्वेद मे इसको जठराग्नि बढ़ाने वाला , विष का प्रभाव नष्ट करने वाला, वीर्य पैदा करने वाला, बवासीर नाशक , बुद्धिवर्धक , वातरोग नाशक, और चेहरे की चमक मे वृद्धि करने वाला लिखा गया है । जवान तथा सुंदर युवतियाँ अपने सतीत्व को बचाने के लिए प्राचीन काल मे इसे अपने पास रखती थी क्योंकि इसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है । पेट मे वायु गोला की शिकायत अथवा पांडुरोग मे भी पुखराज धारण करना लाभकारी रहता है मित्रों कोई भी रतन राशि या अंक ज्योतिष के हिसाब से मत पहले यह अपनी जन्मकुंडली या हस्तरेखा के हिसाब से ही पहने क्योंकि आजकल TV परओर समाचार पत्रों में बड़ी-बड़ी ऐड आती रहती है कि फला राशि वाले पुखराज पहने तुला राशि वाले हीरा ओर कुंभ वाले नीलम पहनने ऐसा मत करें दोस्तों रतन अगर फायदा कर सकते हैं तो नुकसान भी बहुत करते हैं इसलिए किसी अच्छे ज्योतिषी को जो रतन एक्सपर्ट हो उसको अपनी कुडली दिखाकर ही रत्न धारण करे।अंगूठी अथवा लॉकेट मे जड़वाने के दिन से लेकर चार वर्ष तीन महीने और अट्ठारह दिनों तक पुखराज एक व्यक्ति के पास प्रभावशाली रहता है
नोट। ध्यान रहे इस रत्न धारण करने से पूर्व किसी अनुभवी ज्योतिषी से कुंडली का अध्ययन जरूर करवा ले।
बिना ज्योतिषी सलाह के पुखराज रत्न धारण करने से आपको फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है, इसलिए ध्यान रखें। आचार्य राजेश
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