आम तौर पर वक्री मंगल अपने सामान्य स्वभाव की तरह ही आचरण करते हैं।बृहज्जातक के ग्रह भक्तियोगाध्याय के ष्लोक 31 एवं 32 में कहा गया है कि मंगल के वक्र गमन से दूषित नक्षत्र पीड़ित होकर अपने वर्ग का नाष करता है मंगल अपने उदित नक्षत्र से सातवें आठवें अथवा नौवें नक्षत्र में वक्री होता है तो उसे उष्ण संज्ञक वक्री कहते है यदि 10वें 11वें अथवा 12वें नक्षत्र में वक्री हो तो उसे अश्रुमुख वक्री कहते है इस वक्री स्थिति से राष्ट्र में विपत्ति आती है तथा अकाल पड़ता है। रसों में दोष उत्पन्न होता है तथा रोगों में वृद्धि होती है। यदि अस्त नक्षत्र से 13 वें अथवा 14 वें नक्षत्र में मंगल वक्री हो तो उसे व्याल क्री वक्र कहा जाता है। इसमें खेती का उत्पादन उत्तम होता है साथ ही विष भय होता है। यदि अस्तकालिक नक्षत्र से 15वें या 16 वें नक्षत्र में मंगल वक्री होता है तो उसे रुधिरानन वक्री कहते हैं। इसका परिणाम सुभिक्ष होता है, परंतु प्रजा को भय तथा मुख के रोगों से पीड़ा होती है। यदि अस्त नक्षत्र से 17वें अथवा 18वें नक्षत्र में मंगल वक्री होता है तो उसे अतिमूसल वक्री कहते हैं। उसकी इस वक्री अवस्था में चोरों तथा ड़ाकुओं के कारण धन की हानि, अनावृष्टि तथा शस्त्र भय होता है। यदि मंगल पूर्वा फाल्गुनी अथवा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उदित होकर उत्तराषाढ़ में वक्री हो तथा बाद में रोहिणी में अस्त हो जाए तो तीनों लोकों को पीड़ित करता है। यदि मंगल श्रवण नक्षत्र में उदित होकर पुष्य नक्षत्र में वक्री हो जाए तो शासकों, राष्ट्राध्यक्षों के लिए हानिकारक होता है। यदि मंगल मघा नक्षत्र के मध्य में उदित होकर मघा नक्षत्र में ही वक्री हो जाए तो पृथ्वी पर वर्षा का अभाव होता है तथा शस्त्र भय होता है। कई बार आपने बहुत छोटी आयु में बालक बालिकाओं को चरित्र से से भटकते हुए देखा होगा.विपरीत लिंगी की ओर उनका आकर्षण एक निश्चित आयु से पहले ही होने लगता है.कभी कारण सोचा है आपने इस बात का ?विपरीत लिंग की और आकर्षण एक सामान्य प्रक्रिया है,शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन के बाद एक निश्चित आयु के बाद यह आकर्षण होने लगना सामान्य सी कुदरती अवस्था है.शरीर में मंगल व शुक्र रक्त,हारमोंस,सेक्स ,व आकर्षण को नियंत्रित करने वाले कहे गए हैं.इन दोनों में से किसी भी ग्रह का वक्री होना इस प्रभाव को आवश्यकता से अधिक बढ़ा देता है. यही प्रभाव जाने अनजाने उन्हें उम्र से पहले वो शारीरिक बदलाव महसूस करने को मजबूर कर देता है जो सामान्य रूप से उन्हें काफी देर बाद करना चाहिए था.मंगल का वक्री होना व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, यौन सुख पर सबसे अधिक असर डालता है। चूंकि मंगल पुरुषत्व का प्रतिनिधि ग्रह है इसलिए यह व्यक्ति के ताकत, शक्ति, उत्साह, स्त्रियों के प्रति आकर्षण, झुकाव, संभोग की शक्ति एवं विवाह के प्रति रूझान के बारे में कथन देता है। जब मंगल वक्री होता है तब पुरुष सगाई, विवाह या अपने जीवनसाथी के प्रति गलत निर्णय ले बैठते हैं बाद में जीवनभर पछताते रहते हैं। यदि किसी स्त्री की कुंडली में मंगल वक्री है तथा गोचर में भी वह वक्री हो तो उस स्त्री की विवाह के प्रति, यौन संबंधों के प्रति इच्छाएं पूरी तरह खत्म हो जाती है। वह इन सब चीजों को बकवास मानने लगती है। यहां तक देखा गया है कि वक्री मंगल की स्थिति में महिलाएं विवाह की पूर्व रात्रि में ही भाग जाती हैं। वक्री मंगल के प्रभाव से व्यक्ति झूठे मुकदमों, पारिवारिक कलह में उलझ जाता है। इसी प्रकार वक्री ग्रह कुंडली में आपने भाव व अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुसार अलग अलग परिणाम देते हैं.अततः कुंडली की विवेचना करते समय ग्रहों की वक्रता का ध्यान देना अति आवश्यक है.अन्यथा जिस ग्रह को अनुकूल मान कर आप समस्या में नजरंदाज कर रहे हो होते हैं ,वही समस्या का वास्तविक कारण होता है,व आप उपाय दूसरे ग्रह का कर रहे होते हैं.परिणामस्वरूप समस्या का सही समाधान नहीं हो पाता. लेख के अंत में फिर बता दूं की वक्री होने से ग्रह के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आता,बस उसकी शक्ति बढ़ जाती है.अब कुंडली के किस भाव को ग्रह की कितनी शक्ति की आवश्यकता थी व वास्तव में वह कितनी तीव्रता से उस भाव को प्रभावित कर रहा है,इस से परिणामो में अंतर आ जाता है व कुंडली का रूप व दिशा ही बदल जाती है.
आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें07597718725-०9414481324 नोट रत्नों का हमारा wholesale का कारोबार है असली और लैव टैस्ट रत्न भी मंगवा सकते है
शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018
वक्री मंगल ग्रह
आम तौर पर वक्री मंगल अपने सामान्य स्वभाव की तरह ही आचरण करते हैं।बृहज्जातक के ग्रह भक्तियोगाध्याय के ष्लोक 31 एवं 32 में कहा गया है कि मंगल के वक्र गमन से दूषित नक्षत्र पीड़ित होकर अपने वर्ग का नाष करता है मंगल अपने उदित नक्षत्र से सातवें आठवें अथवा नौवें नक्षत्र में वक्री होता है तो उसे उष्ण संज्ञक वक्री कहते है यदि 10वें 11वें अथवा 12वें नक्षत्र में वक्री हो तो उसे अश्रुमुख वक्री कहते है इस वक्री स्थिति से राष्ट्र में विपत्ति आती है तथा अकाल पड़ता है। रसों में दोष उत्पन्न होता है तथा रोगों में वृद्धि होती है। यदि अस्त नक्षत्र से 13 वें अथवा 14 वें नक्षत्र में मंगल वक्री हो तो उसे व्याल क्री वक्र कहा जाता है। इसमें खेती का उत्पादन उत्तम होता है साथ ही विष भय होता है। यदि अस्तकालिक नक्षत्र से 15वें या 16 वें नक्षत्र में मंगल वक्री होता है तो उसे रुधिरानन वक्री कहते हैं। इसका परिणाम सुभिक्ष होता है, परंतु प्रजा को भय तथा मुख के रोगों से पीड़ा होती है। यदि अस्त नक्षत्र से 17वें अथवा 18वें नक्षत्र में मंगल वक्री होता है तो उसे अतिमूसल वक्री कहते हैं। उसकी इस वक्री अवस्था में चोरों तथा ड़ाकुओं के कारण धन की हानि, अनावृष्टि तथा शस्त्र भय होता है। यदि मंगल पूर्वा फाल्गुनी अथवा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उदित होकर उत्तराषाढ़ में वक्री हो तथा बाद में रोहिणी में अस्त हो जाए तो तीनों लोकों को पीड़ित करता है। यदि मंगल श्रवण नक्षत्र में उदित होकर पुष्य नक्षत्र में वक्री हो जाए तो शासकों, राष्ट्राध्यक्षों के लिए हानिकारक होता है। यदि मंगल मघा नक्षत्र के मध्य में उदित होकर मघा नक्षत्र में ही वक्री हो जाए तो पृथ्वी पर वर्षा का अभाव होता है तथा शस्त्र भय होता है। कई बार आपने बहुत छोटी आयु में बालक बालिकाओं को चरित्र से से भटकते हुए देखा होगा.विपरीत लिंगी की ओर उनका आकर्षण एक निश्चित आयु से पहले ही होने लगता है.कभी कारण सोचा है आपने इस बात का ?विपरीत लिंग की और आकर्षण एक सामान्य प्रक्रिया है,शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन के बाद एक निश्चित आयु के बाद यह आकर्षण होने लगना सामान्य सी कुदरती अवस्था है.शरीर में मंगल व शुक्र रक्त,हारमोंस,सेक्स ,व आकर्षण को नियंत्रित करने वाले कहे गए हैं.इन दोनों में से किसी भी ग्रह का वक्री होना इस प्रभाव को आवश्यकता से अधिक बढ़ा देता है. यही प्रभाव जाने अनजाने उन्हें उम्र से पहले वो शारीरिक बदलाव महसूस करने को मजबूर कर देता है जो सामान्य रूप से उन्हें काफी देर बाद करना चाहिए था.मंगल का वक्री होना व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, यौन सुख पर सबसे अधिक असर डालता है। चूंकि मंगल पुरुषत्व का प्रतिनिधि ग्रह है इसलिए यह व्यक्ति के ताकत, शक्ति, उत्साह, स्त्रियों के प्रति आकर्षण, झुकाव, संभोग की शक्ति एवं विवाह के प्रति रूझान के बारे में कथन देता है। जब मंगल वक्री होता है तब पुरुष सगाई, विवाह या अपने जीवनसाथी के प्रति गलत निर्णय ले बैठते हैं बाद में जीवनभर पछताते रहते हैं। यदि किसी स्त्री की कुंडली में मंगल वक्री है तथा गोचर में भी वह वक्री हो तो उस स्त्री की विवाह के प्रति, यौन संबंधों के प्रति इच्छाएं पूरी तरह खत्म हो जाती है। वह इन सब चीजों को बकवास मानने लगती है। यहां तक देखा गया है कि वक्री मंगल की स्थिति में महिलाएं विवाह की पूर्व रात्रि में ही भाग जाती हैं। वक्री मंगल के प्रभाव से व्यक्ति झूठे मुकदमों, पारिवारिक कलह में उलझ जाता है। इसी प्रकार वक्री ग्रह कुंडली में आपने भाव व अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुसार अलग अलग परिणाम देते हैं.अततः कुंडली की विवेचना करते समय ग्रहों की वक्रता का ध्यान देना अति आवश्यक है.अन्यथा जिस ग्रह को अनुकूल मान कर आप समस्या में नजरंदाज कर रहे हो होते हैं ,वही समस्या का वास्तविक कारण होता है,व आप उपाय दूसरे ग्रह का कर रहे होते हैं.परिणामस्वरूप समस्या का सही समाधान नहीं हो पाता. लेख के अंत में फिर बता दूं की वक्री होने से ग्रह के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आता,बस उसकी शक्ति बढ़ जाती है.अब कुंडली के किस भाव को ग्रह की कितनी शक्ति की आवश्यकता थी व वास्तव में वह कितनी तीव्रता से उस भाव को प्रभावित कर रहा है,इस से परिणामो में अंतर आ जाता है व कुंडली का रूप व दिशा ही बदल जाती है.
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