रात में आकाश में कई पिण्ड चमकते रहते हैं, इनमें से अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं और एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा (Star) कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्ड के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे – यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है जिसका अर्थ इधर-उधर घूमने वाला है। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया।
हमारे लिये आकाश में सबसे चमकीला पिण्ड सूरज है, फिर चन्द्रमा और उसके बाद रात के तारे या ग्रह। तारे स्वयं में एक सूरज हैं। ज्यादातर, हमारे सूरज से बड़े ओर चमकीले, पर इतनी दूर हैं कि उनकी रोशनी हमारे पास आते आते बहुत क्षीण हो जाती है इसलिये दिन में नहीं दिखायी पड़ते पर रात में दिखायी पड़ते हैं। कुछ प्रसिद्ध तारे इस प्रकार हैं:
सबसे प्रसिद्ध तारा, ध्रुव तारा (Polaris या North star) है। यह इस समय पृथ्वी की धुरी पर है इसलिये अपनी जगह पर स्थिर दिखायी पड़ता है। ऐसा पहले नहीं था या आगे नहीं होगा। ऐसा क्यों है, इसके बारे में आगे चर्चा होगी।
तारों में सबसे चमकीला तारा व्याध (Sirius) है। इसे Dog star भी कहा जाता है क्योंकि यह Canis major(बृहल्लुब्धक) नाम के तारा समूह का हिस्सा है।
मित्रक (Alpha Centauri), नरतुरंग (Centaurus) तारा समूह का एक तारा है। यदि सूरज को छोड़ दें तो तारों में यह हमसे सबसे पास है। प्रकाश की किरणें 1 सेकेन्ड मे 3x(10)8 मीटर की दूरी तय करती हैं। एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो कि प्रकाश की किरणें एक साल में तय करती हैं। इसकी हमसे दूरी लगभग 4.3 प्रकाश वर्ष है। वास्तव में यह एक तारा नहीं है पर तीन तारों का समूह है जो एक दूसरे के तरफ चक्कर लगा रहें हैं, इसमें Proxima Centauri हमारे सबसे पास आता है।
ग्रह और चन्द्रमा, सूरज नहीं हैं। यह अपनी रोशनी में नहीं चमकते पर सूरज की रोशनी को परिवर्तित करके चमकते हैं। तारे टिमटिमाते हैं पर ग्रह नहीं। तारों की रोशनी का टिमटिमाना, हवा में रोशनी के अपवर्तन (refraction) के कारण होता है। यह तारों की रोशनी पर ही होता है क्योंकि तारे हमसे बहुत दूर हैं और इनके द्वारा आती रोशनी की किरणें हम तक पहुंचते पहुंचते समान्तर हो जाती हैं पर ग्रहों कि नहीं।प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र
पहले के ज्योतिषाचार्य वास्तव में उच्च कोटि के खगोलशास्त्री थे और अपने देश के खगोलशास्त्री दुनिया में सबसे आगे। अपने देश में तो ईसा के पूर्व ही मालुम था कि पृथ्वी सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाती हैप्राचीन भारत में अन्य प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तथा उनके द्वारा किया गया कार्य इस प्रकार है:
याज्ञवल्क्य ईसा से दो शताब्दी पूर्व हुऐ थे। उन्होने यजुर्वेद पर काम किया था। इसलिये यह कहा सकता है कि अपने देश ईसा के पूर्व ही मालुम था कि पृथ्वी सूरज के चारों तरफ घूमती है। यूरोप में इस तरह से सोचना तो 14वीं शताब्दी में शुरु हुआ।
आर्यभट्ट (प्रथम) (476-550) ने 'आर्य भटीय' नामक ग्रन्थ की रचना की। इसके चार खंड हैं– गीतिकापाद, गणितपाद, काल क्रियापाद, और गोलपाद। गोलपाद खगोलशास्त्र (ज्योतिष) से सम्बन्धित है और इसमें 50 श्लोक हैं। इसके नवें और दसवें श्लोक में यह समझाया गया है कि पृथ्वी सूरज के चारो तरफ घूमती है।
भास्कराचार्य (1141-1185) ने 'सिद्धान्त शिरोमणी' नामक पुस्तक चार भागों में लिखी है– पाटी गणिताध्याय या लीलावती (Arithmetic), बीजागणिताध्याय (Algebra), ग्रह गणिताध्याय (Astronomy), और गोलाध्याय। इसमें प्रथम दो भाग स्वतंत्र ग्रन्थ हैं और अन्तिम दो सिद्धांत शिरोमणी के नाम से जाने जाते हैं। सिद्धांत शिरोमणी में पृथ्वी के सूरज के चारो तरफ घूमने के सिद्धान्त को और आगे बढ़ाया गया है।
यूरोप में खगोल शास्त्र
यूरोप के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तथा उनके द्वारा किया गया कार्य इस प्रकार है:
टौलमी (90-168) नाम का ग्रीक दर्शनशास्त्री दूसरी शताब्दी में हुआ था। इसने पृथ्वी को ब्रम्हाण्ड का केन्द्र माना और सारे पिण्डों को उसके चारों तरफ चक्कर लगाते हुये बताया। इस सिद्धान्त के अनुसार सूरज एवं तारों की गति तो समझी जा सकती थी पर ग्रहों की नहीं।
कोपरनिकस (1473-1543) एक पोलिश खगोलशास्त्री था, उसका जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ। यूरोप में सबसे पहले उसने कहना शुरू किया कि सूरज सौरमंडल का केन्द्र है और ग्रह उसके चारों तरफ चक्कर लगाते हैं।
केपलर (1571-1630) एक जर्मन खगोलशास्त्री था, उसका जन्म 16वीं शताब्दी में हुआ था। वह गैलिलियो के समय का ही था। उसने बताया कि ग्रह सूरज की परिक्रमा गोलाकार कक्षा में नहीं कर रहें हैं, उसके मुताबिक यह कक्षा अंड़ाकार (Elliptical) है। यह बात सही है।
गैलिलियो (1564-1642) एक इटैलियन खगोलशास्त्री था उसे टेलिस्कोप का आविष्कारक कहा जाता है पर शायद उसने बेहतर टेलिस्कोप बनाये और सबसे पहले उनका खगोलशास्त्र में प्रयोग कियाटौलमी के सिद्धान्त के अनुसार शुक्र ग्रह पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाता है और वह पृथ्वी और सूरज के बीच रहता है इसलिये वह हमेशा बालचन्द्र (Crescent) के रूप में दिखाई देगा। कोपरनिकस के मुताबिक शुक्र सारे ग्रहों की तरह सूरज के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है इसलिये चन्द्रमा की तरह उसकी सारी कलायें (phases) होनी चाहिये। गैलिलियो ने टेलिस्कोप के द्वारा यह पता किया कि शुक्र ग्रह की भी चन्द्रमा की तरह सारी कलायें होती हैं इससे यह सिद्ध हुआ कि ग्रह – कम से कम शुक्र तो – सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं। गैलिलियो ने सबसे पहले ग्रहों को सूरज का चक्कर लगाने का प्रयोगात्मक सबूत दिया। पर उसे इसका क्या फल मिला। चर्च ने यह कहना शुरू कर दिया कि यह बात ईसाई धर्म के विरूद्ध है और गैलिलियो को घर में नजरबन्द कर दिया गया।भौतिक शास्त्र में हर चीज देखी नहीं जा सकती है और किसी बात को सत्य केवल इसलिये कहा जाता है कि उसको सिद्धान्तों के द्वारा समझाया जा सकता है। यदि पृथ्वी को सौरमंडल का केन्द्र मान लिया जाय तो किसी भी तरह से इन ग्रहों की गति को नहीं समझा जा सकता है पर यदि सूरज को सौरमंडल का केन्द्र मान लें तो इन ग्रहों और तारों दोनों की गति को ठीक प्रकार से समझा जा सकता है। इसलिए यह बात सत्य मान ली गयी कि सूरज ही हमारे सौरमंडल के केन्द्र में है जिसके चारों तरफ पृथ्वी एवं ग्रह घूम रहे हैं। Iपृथ्वी की गतियॉं
हमारी पृथ्वी की बहुत सारी गतियां हैं:
पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे में एक चक्कर लगा रही है। इसलिये दिन और रात होते हैं।
पृथ्वी सूरज के चारों तरफ एक साल में एक चक्कर लगाती है। यदि हम उस तल (plane) की कल्पना करें जिसमें पृथ्वी और सूरज का केन्द्र, तथा उसकी परिक्रमा है तो पायेंगे कि पृथ्वी की धुरी, इस तल से लगभग साढ़े 23 डिग्री झुकी है पृथ्वी के धुरी झुके रहने के कारण अलग-अलग ऋतुयें आती हैं। हमारे देश में गर्मी के दिनों में सूरज उत्तरी गोलार्द्ध में रहता है और जाड़े में दक्षिणी गोलार्द्ध में चला जाता है। यानी कि साल के शुरू होने पर में सूरज दक्षिणी गोलार्द्ध में रहता है पर वहां से चलकर उत्तरी गोलार्द्ध और फिर वापस दक्षिणी गोलार्द्ध के उसी विन्दु पर पहुंच जाता है।
पृथ्वी की धुरी भी घूम रही है और पृथ्वी की धुरी लगभग 25700 साल में एक बार घूमती है। इस समय हमारी धुरी सीधे ध्रुव तारे पर है इसलिये ध्रुवतारा हमको घूमता नहीं दिखाई पड़ता है और दूसरे तारे घूमते दिखाई देते हैं। हजारों साल पहले हमारी धुरी न तो ध्रुव तारा पर थी और न हजारों साल बाद यह ध्रुव तारा पर होगी। तब ध्रुवतारा भी रात में पूरब की तरफ से उदय होगा और पश्चिम में अस्त होता दिखायी देगा।
हमारा सौरमंडल एक निहारिका में है जिसे आकाश गंगा कहा जाता है। इसका व्यास लगभग 1,00,000 प्रकाश वर्ष है। हमारी पृथ्वी आकाश गंगा के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष दूर है और हमारा सौरमंडल भी इस आकाश गंगा के चक्कर लगा रहा है और हमारी पृथ्वी भी उसके चक्कर लगा रही है।
हमारी आकाश गंगा और आस-पास की निहारिकायें भी एक दूसरे के पास आ रही हैं। यह बात डाप्लर सिद्धान्त से पता चलती है। हमारी पृथ्वी भी इस गति में शामिल है।
मुख्य रूप से हम पृथ्वी की पहली और दूसरी गति ही समझ पाते हैं, तीसरी से पांचवीं गति हमारे जीवन से परे है। वह केवल सिद्धान्त से समझी जा सकती है, उसे देखा नहीं जा सकता है। हमारे विषय के लिये दूसरी और तीसरी गति महत्वपूर्ण है।तारा समूह
ब्रम्हाण्ड में अनगिनत तारे हैं और अनगिनत तारा समूह। कुछ चर्चित तारा समूह इस प्रकार हैं:सप्त ऋषि (Great/ Big bear or Ursa Major): यह उत्तरी गोलार्ध के सात तारे हैं। यह कुछ पतंग की तरह लगते हैं जो कि आकाश में डोर के साथ उड़ रही हो। यदि आगे के दो तारों को जोड़ने वाली लाईन को सीधे उत्तर दिशा में बढ़ायें तो यह ध्रुव तारे पर पहुंचती है।ध्रुवमत्स्य/ अक्षि (Little Bear or Ursa Minor): यह सप्त ऋषि के पास उसी शक्ल का है इसके सबसे पीछे वाला तारा ध्रुव तारा है।कृतिका (कयबचिया) Pleiades: पास-पास कई तारों का समूह है हमारे खगोलशास्त्र में इन्हें सप्त ऋषि की पत्नियां भी कहा गया है।
मृगशीर्ष (हिरन- हिरनी) Orion: अपने यहां इसे हिरण और ग्रीक में इसे शिकारी के रूप में देखा गया है पर मुझे तो यह तितली सी लगती है।बृहल्लुब्धक (Canis Major): इसकी कल्पना कुत्ते की तरह की गयी पर मुझे तो यह घन्टी की तरह लगता है। व्याध (Sirius) इसका सबसे चमकीला तारा है। अपने देश में इसे मृगशीर्ष पर धावा बोलने वाले के रूप में देखा गया जब कि ग्रीक पुराण में इसे Orion (शिकारी) के कुत्ते के रूप में देखा गया।
शर्मिष्ठा (Cassiopeia): यह तो मुझे कहीं से सुन्दरी नहीं लगती यह तो W के आकार की दिखायी पड़ती है और यदि इसके बड़े कोण वाले भाग को विभाजित करने वाली रेखा को उत्तर दिशा में ले जायें तो यह ध्रुव तारे पर पहुंचेगी।महाश्व (Pegasus): इसकी कल्पना अश्व की तरह की गयी पर यह तो मुझे टेनिस के कोर्ट जैसा लगता है।
जाहिर है मैं इन सब तारा समूह के सारे तारे देख कर आकृतियों कि कल्पना नहीं कर रहा हूं, पर इन तारा समूह के कुछ खास तारों को ले कर ही कल्पना कर रहा हूं।
राशियां (Signs of Zodiac)
यह तो थे आकाश पर कुछ मुख्य तारा समूह। इन सब का नाम हमने कभी न कभी सुना है। इनके अलावा बारह तारा समूह जिन्हें राशियां कहा जाता है उनका नाम हम अच्छी तरह से जानते हैं। इन सब को छोड़ कर, किसी तारा समूह के लिये तो खगोलशास्त्र की पुस्तक ही देखनी पड़ेगी। बारह तारा समूह, जिन्हें राशियां कहा जाता है, उनके नाम तो हम सब को मालुम हैं पर साधरण व्यक्ति के लिये इन्हें आकाश में पहचान कर पाना मुश्किल है। यह बारह राशियां हैं,मेष से लेकर मीन तकइन 12 तारा समूहों को ही क्यों इतना महत्व दिया गया? इसके लिये पृथ्वी की दूसरी और तीसरी गति महत्वपूर्ण है।
यदि पृथ्वी, सूरज के केन्द्र और पृथ्वी की परिक्रमा के तल को चारो तरफ ब्रम्हाण्ड में फैलायें, तो यह ब्रम्हाण्ड में एक तरह की पेटी सी बना लेगा। इस पेटी को हम 12 बराबर भागों में बांटें तो हम देखेंगे कि इन 12 भागों में कोई न कोई तारा समूह आता है। हमारी पृथ्वी और ग्रह, सूरज के चारों तरफ घूमते हैं या इसको इस तरह से कहें कि सूरज और सारे ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष इन 12 तारा समूहों से गुजरते हैं। यह किसी अन्य तारा समूह के साथ नहीं होता है इसलिये यह 12 महत्वपूर्ण हो गये हैं। इस तारा समूह को हमारे पूर्वजों ने कोई न कोई आकृति दे दी और इन्हें राशियां कहा जाने लगा मित्रों यदि आप किसी आखबार या टीवी पर राशिचक्र को देखें या सुने तो पायेंगें कि वे सब मेष से शुरू होते हैं, यह अप्रैल-मई का समय है। क्या आपने कभी सोचा हैकि यह राशि चक्र मेष से ही क्यों शुरू होते हैं? चलिये पहले हम लोग विषुव अयन (precession of equinoxes) को समझते हैं, उसी से यह भी स्पष्ट होगा।
विषुव अयन (precession of equinoxes)
विषुव अयन और राशि चक्र के मेष राशि से शुरू होने का कारण पृथ्वी की तीसरी गति है। साल के शुरु होते समय (जनवरी माह में) सूरज दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है और वहां से उत्तरी गोलार्द्ध जाता है। साल के समाप्त होने (दिसम्बर माह) तक सूरज उत्तरी गोलार्द्ध से होकर पुनः दक्षिणी गोलार्द्ध पहुचं जाता है। इस तरह से सूरज साल में दो बार भू-मध्य रेखा के ऊपर से गुजरता है। इस समय को विषुव (equinox) कहते हैं। यह इसलिये कि, तब दिन और रात बराबर होते हैं। यह सिद्धानतः है पर वास्तविकता में नहीं, पर इस बात को यहीं पर छोड़ देते हैं। आजकल यह समय लगभग 20 मार्च तथा 23 सितम्बर को आता है। जब यह मार्च में आता है तो हम (उत्तरी गोलार्द्ध में रहने वाले) इसे महा/बसंत विषुव (Vernal/Spring Equinox) कहते हैं तथा जब सितम्बर में आता है तो इसे जल/शरद विषुव (fall/Autumnal Equinox) कहते हैं। यह उत्तरी गोलार्द्ध में इन ऋतुओं के आने की सूचना देता है।
विषुव का समय भी बदल रहे है। इसको विषुव अयन (Precession of Equinox) कहा जाता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घन्टे में एक बार घूमती है। इस कारण दिन और रात होते हैं। पृथ्वी की धुरी भी घूम रही है और यह धुरी 25,700 साल में एक बार घूमती है। यदि आप किसी लट्टू को नाचते हुये उस समय देखें जब वह धीमा हो रहा हो, तो आप देख सकते हैं कि वह अपनी धुरी पर भी घूम रहा है और उसकी धुरी भी घूम रही है। विषुव का समय धुरी के घूमने के कारण बदल रहा है। इसी लिये pole star भी बदल रहा है। आजकल ध्रुव तारा पृथ्वी की धुरी पर है और दूसरे तारों की तरह नहीं घूमता। इसी लिये pole star कहलाता है। समय के साथ यह बदल जायगा और तब कोई और तारा pole star बन जायगा।
पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 25,700 साल में एक बार घूमती है। वह 1/12वें हिस्से को 2141 या लगभग 2150 साल में तय करती है। वसंत विषुव के समय सूरज मेष राशि में ईसा से 1650 साल पहले (1650BC) से, ईसा के 500 साल बाद (500 AD) तक लगभग 2150 साल रहा। अलग-अलग सभ्यताओं में, इसी समय खगोलशास्त्र या ज्योतिष का जन्म हुआ। इसीलिये राशिफल मेष से शुरु हुआ पर अब ऐसा नहीं है। इस समय वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, मीन राशि में है। यह लगभग ईसा के 500 साल बाद (500 AD) से शुरु हुआ। यह अजीब बात है कि विषुव के बदल जाने पर भी हम राशिफल मेष से ही शुरु कर रहें है – तर्क के हिसाब से अब राशिफल मीन से शुरु होने चाहिये, क्योंकि अब विषुव के समय सूरज, मेष राशि में न होकर, मीन राशि में है।
ईसा के 500 साल (500 AD) के 2150 साल बाद तक यानि कि 27वीं शताब्दी (2650 AD) तक, वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, मीन राशि में रहेगा। उसके बाद वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, कुम्भ राशि में चला जायगा। यानि कि तब शुरु होगा कुम्भ का समय। अब आप हेयर संगीत नाटक के शीर्षक गीत Aquarius की पंक्ति ‘This is the dawning age of Aquarius’ का अर्थ समझ गये होंगे। अकसर लोग इस अर्थ को नहीं समझते – ज्योतिष में भी कुछ ऐसा हो रहा है।यदि आप किसी आखबार या टीवी पर राशिचक्र को देखें या सुने तो पायेंगें कि वे सब मेष से शुरू होते हैं, यह अप्रैल-मई का समय है। क्या आपने कभी सोचा हैकि यह राशि चक्र मेष से ही क्यों शुरू होते हैं? चलिये पहले हम लोग विषुव अयन (precession of equinoxes) को समझते हैं, उसी से यह भी स्पष्ट होगा।
विषुव अयन (precession of equinoxes)
विषुव अयन और राशि चक्र के मेष राशि से शुरू होने का कारण पृथ्वी की तीसरी गति है। साल के शुरु होते समय (जनवरी माह में) सूरज दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है और वहां से उत्तरी गोलार्द्ध जाता है। साल के समाप्त होने (दिसम्बर माह) तक सूरज उत्तरी गोलार्द्ध से होकर पुनः दक्षिणी गोलार्द्ध पहुचं जाता है। इस तरह से सूरज साल में दो बार भू-मध्य रेखा के ऊपर से गुजरता है। इस समय को विषुव (equinox) कहते हैं। यह इसलिये कि, तब दिन और रात बराबर होते हैं। यह सिद्धानतः है पर वास्तविकता में नहीं, पर इस बात को यहीं पर छोड़ देते हैं। आजकल यह समय लगभग 20 मार्च तथा 23 सितम्बर को आता है। जब यह मार्च में आता है तो हम (उत्तरी गोलार्द्ध में रहने वाले) इसे महा/बसंत विषुव (Vernal/Spring Equinox) कहते हैं तथा जब सितम्बर में आता है तो इसे जल/शरद विषुव (fall/Autumnal Equinox) कहते हैं। यह उत्तरी गोलार्द्ध में इन ऋतुओं के आने की सूचना देता है।
विषुव का समय भी बदल रहे है। इसको विषुव अयन (Precession of Equinox) कहा जाता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घन्टे में एक बार घूमती है। इस कारण दिन और रात होते हैं। पृथ्वी की धुरी भी घूम रही है और यह धुरी 25,700 साल में एक बार घूमती है। यदि आप किसी लट्टू को नाचते हुये उस समय देखें जब वह धीमा हो रहा हो, तो आप देख सकते हैं कि वह अपनी धुरी पर भी घूम रहा है और उसकी धुरी भी घूम रही है। विषुव का समय धुरी के घूमने के कारण बदल रहा है। इसी लिये pole star भी बदल रहा है। आजकल ध्रुव तारा पृथ्वी की धुरी पर है और दूसरे तारों की तरह नहीं घूमता। इसी लिये pole star कहलाता है। समय के साथ यह बदल जायगा और तब कोई और तारा pole star बन जायगा।
पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 25,700 साल में एक बार घूमती है। वह 1/12वें हिस्से को 2141 या लगभग 2150 साल में तय करती है। वसंत विषुव के समय सूरज मेष राशि में ईसा से 1650 साल पहले (1650BC) से, ईसा के 500 साल बाद (500 AD) तक लगभग 2150 साल रहा। अलग-अलग सभ्यताओं में, इसी समय खगोलशास्त्र या ज्योतिष का जन्म हुआ। इसीलिये राशिफल मेष से शुरु हुआ पर अब ऐसा नहीं है। इस समय वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, मीन राशि में है। यह लगभग ईसा के 500 साल बाद (500 AD) से शुरु हुआ। यह अजीब बात है कि विषुव के बदल जाने पर भी हम राशिफल मेष से ही शुरु कर रहें है – तर्क के हिसाब से अब राशिफल मीन से शुरु होने चाहिये, क्योंकि अब विषुव के समय सूरज, मेष राशि में न होकर, मीन राशि में है।
ईसा के 500 साल (500 AD) के 2150 साल बाद तक यानि कि 27वीं शताब्दी (2650 AD) तक, वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, मीन राशि में रहेगा। उसके बाद वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, कुम्भ राशि में चला जायगा। यानि कि तब शुरु होगा कुम्भ का समय। अब आप हेयर संगीत नाटक के शीर्षक गीत Aquarius की पंक्ति ‘This is the dawning age of Aquarius’ का अर्थ समझ गये होंगे। अकसर लोग इस अर्थ को नहीं समझते – ज्योतिष में भी कुछ ऐसा हो रहा है।पुराने समय के ज्योतिषाचार्य बहुत अच्छे खगोलशास्त्री थे।पर समय के वदलते कुछ लोगो ने उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि किसी व्यक्ति के पैदा होने के समय सूरज जिस राशि पर होगा, उस आकृति के गुण उस व्यक्ति के होंगे। इसी हिसाब से उन्होंने राशि फल निकालना शुरू कर दिया। हालांकि इसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि आप ज्योतिष को उसी के तर्क पर परखें, तो भी राशी फल गलत बैठती है।
यदि ज्योतिष का ही तर्क लगायें तो – विषुव अयन के समय सूरज की स्थिति बदल जाने के कारण – जो गुण ज्योतिषों ने मेष राशि में पैदा होने वाले लोगों को दिये थे वह अब मीन राशि में पैदा होने वाले व्यक्ति को दिये जाने चाहिये। यानी कि, हम सबका राशि फल एक राशि पहले का हो जाना चाहिये
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