गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

पुजा पाठ करने पर भी हम दुखी क्यो

संसार में जितने भी पूजा पाठी लोग है उनसे अगर पूँछा जाये कि आप कितने सुखी हैं? तो उनका जबाब यही होता है कि हम तो इतनी पूजा पाठ करते है फ़िर भी दुखी है और पडौसे में जो बिलकुल ही पूजा पाठ नही करता है वह बहुत सुखी है उसके पास हर चीज उपलबध है और उसे आसपास वाले सभी जानते है।
पूजा पाठ करने वाले लोग कई तरह की पूजा पाठ करते है कोई मन्दिर में जाता है,किसी ने अपने घर पर ही मन्दिर बना रखा है,कोई रामायण भागवत और तरह तरह के धार्मिक ग्रंथ पढता है कोई अपने गुरु को मानता है और गुरू की कही हुयी बात को लेकर चलता है कोई गुरु मंत्र को लगातार जपे जा रहा है कोई अपने सभी कामो को एक तरफ़ रखकर अपने में ही मस्त है और कोई समाधि लगा रहा है कोई ध्यान लगा रहा है कोई तीर्थ यात्रा में भटक रहा है कोई नदी का स्नान कर रहा है कोई जल चढा रहा है कोई प्रसाद बांट रहा है कोई अगरबत्ती जला रहा है कोई दीपक जलाकर हाथ जोड कर बैठा है,कोई किसी प्रकार से कोई किसी प्रकार से अपने को पूजा पाठ में लगाये है और कोई किसी में लेकिन सुख फ़िर भी नही मिल रहा है।जब जीवन में कष्ट संघर्ष आते हैं तो पूजा -पाठ ,मंदिर -गुरुद्वारा ,भगवान -देवी ,ज्योतिषी -तांत्रिक अधिक दिखाई देते हैं |हम जीवन में कष्टों का समाधान अक्सर वहां खोजते हैं जहाँ सीधा कष्ट का कोई मतलब नहीं होता |कष्ट -दुःख होने पर हम अपनी शक्ति बढाने ,कष्टों का कारण जान उन्हें हल करने की बजाय भगवान् की कृपा से उसे हटाने का प्रयास करते हैं पर अक्सर हमें असफलता मिलती है |बहुत प्रयास के बाद भी जब कोई अंतर नहीं आता तो हम अक्सर लोगों को कहते सुनते हैं की इतनी पूजा –आराधना करते हैं किन्तु कोई लाभ नजर नहीं आता ,पता नहीं भगवान् है भी की नहीं ,या वह हमारी सुनता क्यों नहीं |हम तो रोज पूरे श्रद्धा से इतनी देर तक पूजा करते हैं |पर हमारे कष्ट कम होते ही नहीं |पाप करने वाले ,पूजा न करने वाले सुखी हैं और हम इतनी सदाचारिता से रहते हैं ,पूजा–पाठ करते हैं ,अपने घर में भगवान् को बिठाये हैं पर हम कष्ट ही कष्ट उठा रहे हैं |हमने अपने पिछले अंक में कुछ कारणों का विश्लेष्ण इस सम्बन्ध में किया है|


अधिकतर लोग भगवान् या देवी /देवता को मनुष्य मानकर चलते हैं जबकि वास्तविकता यह है की यह सब उर्जाये या शक्तियाँ हैं ,जिनके विशिष्ट गुणों के कारण हमने काल्पनिक रूप से उन्हें अपने जैसा मानकर ,अपने से जोड़ने के लिए उन्हें विशिष्ट आकृति ,विशिष्ट हथियार ,विशिष्ट रूप दिए हैं |इन्हें अपनी बात सुनाने के लिए इनके पद्धति के अनुसार ही पूजा ,अर्चना करनी होती है या भावनात्मक रूप से भी तब यह सुनती हैं जब आपकी भावना मीरा जैसी गहन हो जाए की कृष्ण को आना ही पड़े |यह उक्ति की “कलयुग केवल नाम अधारा “कष्टों -दुखों में फंसे होने पर पुकारने पर काम नहीं आती |आपकी पुकार में इतनी शक्ति होनी चाहिए की भगवान् नामक ऊर्जा आपसे जुड़ जाए |आपकी पूजा -अर्चना -साधना में इतनी शक्ति होनी चाहिए की सम्बंधित शक्ति का संपर्क आपके ऊर्जा से हो जाए |जब यह शक्ति संतुलन आपको कष्ट दे रहे समस्या के ऊर्जा से अधिक होगी तभी आपके कष्ट कम होंगे |भगवान् की आपसे जुडी शक्ति अगर कम हुई तो कष्ट कम नहीं होंगे |भगवान् की शक्ति सबसे बड़ी होती है पर महत्त्व यह रखता है की उसकी कितनी शक्ति आपसे जुडी है |इसे ही कहते हैं पुकार पर सुनना |जब अधिक शक्ति आपसे जुडती है तो वह शक्ति आपके मनोभावों के अनुसार क्रिया करती है और आपकी सफलता बढती है ,कार्य सफल होते हैं ,कष्ट कम होते हैं |
अधिकतर लोगों के कष्ट उनके भाग्य में भी नहीं होते ,अपितु इसके कारण उन्हें प्रभावित कर रहे नकारात्मक प्रभाव होते हैं |भाग्य तो ग्रहों ,नक्षत्रों के संयोग से उत्पन्न प्रभाव हैं |यह प्रभाव पूरा मिले तो कहते हैं की पूरा भाग्य मिल रहा |ऐसे में ज्योतिषी की सारी भविष्यवाणी सही होती है |पर कितने लोगों के लिए ज्योतिषी की भविष्यवाणी सही होती है ?,कुछ बाते सही हो जाती हैं और कुछ नहीं |अच्छी बातें कम सही होती हैं और बुरी बातें जितना बताते हैं उससे भी अधिक सामने आती हैं |ऐसा नकारात्मक प्रभावों के कारण होता है |इनके कारन ही आपके कष्ट बढ़ा जाते हैं |कारण यह होते हैं और लोग दोष भगवान् को देते हैं |भगवान् तो नहीं कहता की आप वास्तु दोष उत्पन्न करें ,आप पितरों को असंतुष्ट रखें ,आप भूत -प्रेत -आत्माओं को पूजें ,आप कुल देवता /देवी को भूल जाएँ |जब आप ऐसा करते हैं तो भगवान् को क्यों दोष दे रहे |किसी ने आप या आपके परिवार पर किसी प्रकार का अभिचार ,टोना -टोटका ,भूत -प्रेत भेज दिया ,आपकी किसी गलती से ब्रह्म -जिन्न -पिशाच आपके या आपके परिवार को प्रभावित करने लगा ,आपकी पूजा में इतनी शक्ति है नहीं की भगवान् की ऊर्जा आपसे इतनी जुड़े की इन शक्तियों को हटा सके तो यह आपको प्रभावित करेंगे ही |इसमें भगवान की कोई गलती नहीं |सच है की वह सर्वशक्तिमान है ,पर उसे पूरी शक्ति से आप बुलायेंगे तभी वह आएगा और आपसे जुड़ेगा |ब लोगों को बताया जाता है की आप पर या घर पर नकारात्मक उर्जा का प्रभाव है जिसके कारण कष्ट आ रहे हैं तो कुछ लोग यह भी कहते मिलते हैं की हम तो शिव ,हनुमान ,कृष्ण ,दुर्गा आदि की पूजा करते हैं रोज नियमित फिर हमें कष्ट क्यों है ,नकारात्मकता कैसे है |क्या यह भगवान् इसे नहीं हटा सकते ,या कोई तांत्रिक अभिचार कर रहा है तो क्यों ये देवी देवता रक्षा नहीं कर रहे |हमारे कष्ट क्या उन्हें दिखाई नहीं देते |क्यों वे हमारी नहीं सुन रहे |कुछ अंध श्रद्धालु अंक इसे पूर्व जन्म का दोष देकर अपने को संतुष्ट रखने का प्रयत्न करते हैं की यह हमारे पूर्व जन्म के दोष हैं जिससे कोई पूजा पाठ नहीं लग रहा |इन सब की बातों में जाकर जो देखने को मिला वह मन की जिज्ञासा को जानने का एक अजूब सा अनुभव ही कहा जा सकता है। पूजा पाठ का उद्देश्य अपने इष्ट को मानना होता है और जो अपने को किसी भी प्रकार के ईश्वर में लगाकर चल रहा है और उसे कोई ईश्वर से चाहत नही है केवल कर्म में विश्वास रखकर चल रहा है तो उसे फ़ल की प्राप्ति जरूर होती है। लेकिन जो पूजा किसी उद्देश्य विशेष से की जाती है उसके अन्दर अधिकतर फ़ल नही मिल पाते है और जो भी कार्य पूजा पाठ के प्रति किया जाता है वह बेकार का ही साबित होता है। इसके साथ ही पूजा पाठ का रूप जो अधिकतर सामने आया उसके अन्दर पूजा पाठ करने का मुख्य उद्देश्य लोगों का मानसिक डर भी देखने को मिला। अक्सर डर पैदा करने के लिये कई प्रकार की धारणायें समाज में चल रही है,वह समाज चाहे किसी भी जाति धर्म  देश और संस्कृति से जुडा हो,सभी में अपनी अपनी तरह की भावनायें लोगों के ह्रदय में निवास कर रही है।यह सब पूजा पाठ करने से क्या कोई फ़ल मिल सकता है और यह पूजा पाठ हम किसके कहने से कर रहे है,यह सब बातें समझने के लिये बहुत ही गहरे में जाना पडेगा।
   इस संसार में हर जीव को अपने अपने कर्मों का भुगतान करने के लिये जन्म लेना पडा है। कोई अपनी चाहत से जन्म लेकर इस संसार में नही आया है,प्रकृति का रूप अपने आप जन्म देता है और वही मौत को देता है। इस जन्म लेने और मरने के बीच की कहानी को ही जीवन का नाम दिया गया है। जब हम माता के पेट से जन्म लेते है तो परिवार सामने आता है,परिवार की प्राथमिक शिक्षायें हमारे दिलो दिमाग में घर कर जातीं है। लेकिन सभी बातें घर नही कर पाती है जैसे जैसे जीवन चलता है वैसे वैसे समय के अनुसार भी समाज की शिक्षायें स्कूल कालेज की शिक्षायें आदि भी जीवन में आती जाती हैं। इन शिक्षाओं के प्रति हम कभी अपने घर में और कभी बाहर की बातें सुनते है,कहते है,प्रतिक्रिया करते है,इन सब बातों के अन्दर और मिलने वाली शिक्षाओं के अन्दर जो मुख्य बातें होती है वे दिमाग में घर कर जाती है,किसी एक बात को बार बार कहा जाये तो वह बात भी दिमाग में घर कर जाती है काफ़ी समय तक भूली नही जा सकती है,जब कोई कारण अचानक सामने आता है तो वह बात जो पहले दिमाग में कफ़ी समय से घर कर गयी थी अचानक प्रकट होकर सामने आती है और हमारा दिमाग उसी बात की तरफ़ जाना शुरु हो जाता है। एक बार जब हम किसी बात की तरफ़ चले जाते है तो वह बात हमेशा के लिये भी याद रह जाती है। लेकिन जब किसी बात को बुद्धि से सोचा जाता है तो हर बात के दो पहलू मिलते है। एक तो किसी बात को मान लिया जाये और एक उस बात को नही माना जाये,अगर मान लिया जाता है तो उसके पीछे मान लेने के कारण भी देखने पडते है और नही माना जाता है तो उस बात के कारणो को खोजने की बात दिमाग में घूमती है। दिमाग किसी बात को जान लेने के लिये इसलिये और अधिक उतावला होता है क्योंकि हमने या तो उस बात को पहले कभी देखा या सुना नही है,और दूसरे अगर देखा और सुना है तो उससे कुछ भिन्नता होनी चाहिये। भिन्नता के लिये भी अपने को पहले उस पहली बात पर जाना पडेगा जो हमने देखी है,लेकिन कुछ अलग देखी है तो इसे भी अलग से देखने की चाहत दिमाग में पैदा होगी। हमारा दिमाग भूलने का आदी है,इसी बात का ख्याल भी दिमाग में आता है,जैसे हमारे साथ कोई आफ़त एक्सीडेंट आदि हुआ होता है जिस समय तक पीडा रहती है उस समय तक तो उस घटना का ज्यों का त्यों ब्यौरा दिमाग में रहता है लेकिन कालान्तर में जब सब कुछ ठीक होजाता है तो उस बात का दिमाग से निकलना धीरे धीरे शुरु हो जाता है,अक्सर को घटना हमारे दिमाग में घूमती है,और हम उस घटना से डरने लग जाते है,वही डर हमारे दिमाग में तब तक भरा रहता है जब तक कि उसका कोई अटल नियम हमारे पल्ले नही पड जाये। सन्यासियों के मुंह से एक बात सुनी जा सकती है कि "जा मौज कर भरोसा रख सब ठीक होगा",इतना सा वाक्य जीवन में आने वाले संकटों से अचानक दूर करने लगता है,मतलब हमे आसरा मिल गया होता है कि हमारे ऊपर कोई संकट इसलिये नही आ सकते है क्योंकि अमुक सन्यासी ने हमारे प्रति कह दिया है,इस बात और तब अधिक बल मिल जाता है जब उस सन्यासी के आसपास के माहौल को देखते है,कितनी भीड होती है सन्यासी किसी को देखने के लिये भी सामने नही आ पाते है,उनके आसपास कितने लोग घिरे रहते है,जितना अधिक सम्मोहन होता है उतना ही हमारे अन्दर विश्वास जमता चला जाता है।मैने के लाटरी सट्टा खेलने वाले से पूंछा कि वह पहले बहुत पूजा पाठ किया करता था,लेकिन आज तू शराब पीकर लाटरी को खेलता है,पहले तेरे पास अपनी साइकिल नही होती थी,आज तू बडी से बडी गाडी को कुछ नही समझता है। उसका एक जबाब सुनकर मुझे काफ़ी आश्चर्य हुआ कि वह शराब पीने का आदी नही है,लेकिन जुआ और लाटरी सट्टा आदि के लिये हिम्मत की जरूरत पडती है,वह केवल लाटरी खेलने के समय तक नशे में रहना चाहता है उसके बाद उसे नशे की कोई जरूरत नही पडती है,वह जब नशा कर लेता है तो उसका दिमाग एक ही बात पर निर्भर हो जाता है कि उसे जीतना है,लेकिन कभी कभी नशा कम होने से हार भी हो जाती है लेकिन नशे के अन्दर वह जरूर जीतता है,आखिर उस नशे के अन्दर कौन सी शक्ति है,जो उस व्यक्ति को आराम से जीतने के लिये आगे से आगे ले जाती है। उसका भी इस बात पर जबाब था कि जब नशा हो जाता है तो जो लोग दिमाग से जीतने के स्वप्न देखते है अपने अपने आकडे लगाते रहते है तब तक मैं मन चाहे नम्बर पर दांव लगा चुका होता हूँ,अक्सर दिमाग वाले लोग इतिहास को सामने रखकर लाटरी खेलते है मै कभी इतिहास को सामने रखकर लाटरी को नही खेलता हूँ,मेरे सामने तो आज का नम्बर होता है वह भी अचानक दिमाग में आया हुआ और उसी नम्बर पर मैं विश्वास करता हूँ और जीतता जाता हूँ,किसी भी नम्बर को मैं डर कर नही खेलता और न ही मुझे अलग अलग नम्बरों से खेलने की जरूरत होती है जो भी नम्बर सुबह से मेरे दिमाग में गूंजने लगता है उसे ही मैं अपने दिमाग में पक्का कर लेता हूँ मेरा दिमाग भटके नही इसके लिये मैं नशे का सहारा लेता हूँ। मन में समझ में आया कि लोग अपने दिमाग को बलवान बनाने के लिये और मानसिक शक्ति को स्थिर रखने के लिये शराब के नशे का प्रयोग करते है,लेकिन वे नशे वाले बेकार होते है जो जरा सी पीकर अपने मन के उद्गारों को गाली गलौज से दूर करते है। हर व्यक्ति के अन्दर किसी न किसी प्रकार का नशा होता जरूर है वह चाहे शराब से बिलकुल सम्बन्ध नही रखता हो लेकिन वह बिना नशे के तरक्की कर ही नही सकता है यह एक अटल दावा मैने कई लोगों के मुंह से सुना है। अगर किसी ने अपने जीवन को बडी शिक्षा के अन्दर लगा लिया है तो उसके अन्दर अपनी शिक्षा का नशा है कि मैं इतना पढा लिखा हूँ,किसी ने अधिक धन किसी भी प्रकार से कमा लिया है तो उसको अपने धन का नशा होता है कि मैं इतने पैसे वाला हूँ,किसी ने अपनी इज्जत को इतना अधिक प्राप्त कर लिया है कि वह अपने दिमाग से अपनी इज्जत के नशे को दूर नही कर पाता है। भगवान के प्रति जाने का नशा भी लोगों के अन्दर होता है,जब तक वे भगवान की पूजा पाठ नही कर लेंगे उन्हे एक अजीब सा डर लगा रहेगा,वह डर उन्हे उनके दिन भर के काम और रात की नींद को पूरी नही करने देगा,लेकिन अगर वे अपने पूजा पाठ के नशे को किसी प्रकार से समय काल और परिस्थिति के अनुसार कुछ समय के लिये नही कर पाते है तो उन्हे चैन नही आता है और दिमाग का भटकाव अधिक से अधिक पूजा पाठ की तरफ़ ही चलता रहता है।
 मेरे एक मित्र ने मुझे बताया  हमारे पास में एक काली के भक्त रहते है वे दिन भर तो किसी होटल में काम करते है लेकिन शाम को उनके यहां काली का दरबार जरूर लगता है। माता काली के नाम से लोग उनके पास आते है और जो भी उनकी मनोकामना होती है उसके अनुसार माता के पास आकर मांगते है,उन्हे कुछ मन्त्रों का ज्ञान है वे जब कोई उनके पास आकर अपनी फ़रियाद को करता है तो वे कुछ जाने हुये मंत्रों का उच्चारण करते है और फ़रियादी से कह देते है जाओ तुम्हारा काम हो जायेगा,फ़रियादी अपने स्थान पर चला जाता है और जब वह वापस आता है तो उसका सोचा गया काम पूरा हो जाता है। इस बात की सत्यता को समझने के लिये मैने उन सज्जन से कहा कि मै भी अपनी फ़रियाद को पूरा करने के लिये कुछ आपका साथ चाहता हूँ,तो उन्होने मुझे भी वही मंत्र दे दिया और कहा कि जब भी काम शुरु करो इस मंत्र का जाप कर लेना और अपने काम में लग जाना,मैने उनकी बात को पूरा माना और जब भी मै अपने काम को चालू करता उनके मंत्र को जरूर जाप कर लेता,मेरा काम भी पूरा हो गया तो उनसे मैने कहा कि इस मंत्र के कारण मेरा काम पूरा हो गया लेकिन इसके बीच में ऐसा कोई हादसा या चमत्कार नही हुआ जो मुझे समझ में आता कि मंत्र वाली देवी मेरे सामने आकर उस काम को पूरा कर गयीं हो,उन्होने जबाब दिया कि आप अपने दिमाग से काम करते है जो नौकरी करता है वह पूजा पाठ कम करता है कारण उसे चिन्ता नही होती है कि शाम को भोजन के लिये उसे भी धन की जरूरत पडेगी उसे पता है कि उसकी तन्खाह महिने के शुरु में मिलेगी और उसका काम चलने लगेगा,लेकिन जो लोग अपना काम करते है उनके सामने कोई मालिक नही होता है और इन्सान की आदत के अनुसार बिना मालिक के सहारे के उसे काम करने से डर लगता है कि कहीं किये जाने वाले काम में असफ़ल नही हो जाऊं,इस डर के कारण अधिकतर कामों के अन्दर इन्सान लगातार असफ़फ़लता की सोच रखने के कारण असफ़ल ही हो जाता है,लेकिन जब उसे सहारे के रूप में एक मंत्र मिल जाता है जो उसके दिमाग में यह भाव भर देता है कि अमुक आदमी का काम इस मंत्र ने सफ़ल कर दिया था तो यह मंत्र मेरे काम को भी सफ़ल करेगा,इस विश्वास से वह व्यक्ति अपने काम को करता रहता है और वह मंत्र की मालिकी से सफ़ल हो जाता है,मुझे उन काली भक्त का विचार समझ में आ गया था।
   कई बार हमने देखा है कि कई लोग धार्मिक स्थानों की तरफ़ अपना अधिक झुकाव रखते है,जब भी उनके ऊपर कोई आफ़त आती है तो वे अपने आप किसी न किसी धार्मिक स्थान की तरफ़ जाने का अपना मानस बना ही लेते है,और जब वे अपने धार्मिक स्थान से लौट कर आते है तो वे अधिकतर उनकी समस्या से दूर हो जाते है। इस बात के अन्दर एक बात समझ में आयी कि जब व्यक्ति एक ही दायरे में लगातार घूमता रहता है तो उसके आसपास के कार्यों और समझने वाले और नही समझने वाले लोगों का घेरा बना रहता है उसके दिमाग में वही रोजाना की बातें ही दिमाग में चलती रहती है,वही देखना वही सुनना और वही करना,लेकिन जैसे ही वह धार्मिक स्थान की तरफ़ जाता है उसका दिमाग जलवायु और अलग अलग प्रकार के लोगों से मिलने तथा अचानक दिमाग के अन्दर धर्म स्थान के धार्मिक वातावरण का प्रभाव पहले की चिन्ताओं को दूर कर देता है, इस प्रकार से दिमाग का बदलाव उसी प्रकार से होता है जैसे कि चलते हुये कम्पयूटर को रीफ़्रेस कर दिया जाये। अगर किसी प्रकार की पूजा पाठ को नही भी किया जाये और विश्वास को दिमाग में बैठा लिया जाये कि जो कार्य किया जायेगा वह जितनी उसकी कार्यक्षमता है उसके अनुसार पूरा जरूर होगा तो वह व्यक्ति उस काम का नशा लेकर अपने साथ चलने लगेगा,वह काम को करेगा और काम के अन्दर उस शराबी की तरह जरूर सफ़ल होगा,यह सब ऊर्जा का खेल है |देवी/देवता सब उर्जायें हैं |जो जितनी शक्ति से इन्हें जो दिखाता है उनसे वैसा करा लेता है |यह पूजा -साधना करने वालों की आँखों से ,उसके मनोभावों से सब देखती है |यह तब होता है जब वह व्यक्ति से जुडती हैं |मात्र पूजा करने ,माथा पटकने से यह नहीं देखती |इन्हें कुछ दिखाने के लिए ,इन्हें सुनाने के लिए इन्हें खुद से जोड़ना होता है और खुद से इन्हें जोड़ना आसान नहीं होता |जब आप इतना डूब जाएँ उनके भाव में की वह और आप एकाकार हो जाएँ तब वह आपसे जुड़ता है और तभी वह आपकी सुनता है |इसके पहले तक आप जितनी ऊर्जा उत्पन्न कर रहे और आपको जितनी ऊर्जा विपरीत प्रभावित कर रही इसके शक्ति संतुलन पर ही आपका जीवन चलता है |यह उपरोक्त कुछ कारण हैं जो लोगों की पूजा के अपेक्षित परिणाम में बाधक होते हैं |यद्यपि और भी कारण होते हैं पर अधिकतर कष्ट के और पूर्ण परिणाम न मिलने के ये कारण हैं |इन पर अगर ठीक से ध्यान दिया जाए तो लाभ बढ़ सकती है |लेकिन सितारों पर विश्वास जरूर रखना पडेगा।

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