रविवार, 4 फ़रवरी 2018

अंकों का खेल अंक ज्योतिष



       मित्रों आज बात करते हैं अंक ज्योतिष        की अंक विद्या पर बात करने से पहले         हम लोग ओमेन नाम की फिल्म की चर्चा       करेंगे।
डेमियन: ओमेन – फिल्म
1976 में एक फिल्म आयी थी जिसका नाम ओमेन (Omen) था। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार की है कि एक अमेरिकन राजनयिक (Diplomat) के पुत्र की म़ृत्यु हो जाती है और उसकी जगह एक दूसरा बच्चा रख दिया जाता है। इस बच्चे का नाम डेमियन (Damien) है। यह बच्चा वास्तव में एक शैतान का बच्चा है और आगे चलकर इसके एन्टीक्राइस्ट (Antichrist) बनने की बात है। यह बात बाइबिल की एक भविष्यवाणी में है। कुछ लोगों को पता चल जाता है कि यह शैतान का बच्चा है और उसे मारने का प्रयत्न किया जाता है पर पुलिस जिसे नहीं मालुम कि वह शैतान का बच्चा है, उसे बचा लेती है। यह फिल्म यहीं पर समाप्त हो जाती है।
इस फिल्म के बाद, 1978 में दूसरी फिल्म Damien: Omern II नाम से आयी। यह डैमियन के तब की कहानी है, जब वह 13 साल का हो जाता है। 1981 में इस सीरीज में तीसरी फिल्म Oemn III: The Final Conflict आयी। इस सिरीस की चौथी फिल्म टीवी के लिये 1991 में Omen IV : The Awakening के नाम से बनी। इन फिल्मों में यह महत्वपूण है कि डेमियन के शैतान का बच्चा होने की बात कैसे पता चली।
डेमियन के सर की खाल (Scalp) पर बालों से छिपा 666 अंक लिखा था। इस नम्बर को शैतान का नम्बर कहा जाता है। इससे पता चला कि यह शैतान का बच्चा है। पर क्या आप जानते हैं कि इस नम्बर को क्यों शैतान का नम्बर क्यों कहा जाता है। चलिये कुछ अंक लिखने के इतिहास के बारे में जाने, जिससे यह पता चलेगा।
अंक लिखने का इतिहास
अधिकतर सभ्यताओं में लिपि के अक्षरों को ही अंक माना गया। रोमन लिपि के अक्षर I को एक अंक माना गया क्योंकि यह शक्ल से एक उंगली जैसा है। इसी तरह II को दो अंक माना गया क्योंकि यह दो उंगलियों की तरह है। रोमन लिपि के अक्षर V को 5 का अंक माना गया। यदि आप हंथेली को देखे जिसकी सारी उंगलियां चिपकी हो और अंगूंठा हटा हो तो वह इस तरह दिखेगा। रोमन X को उन्होंने दस का अंक माना क्योंकि यह दो हंथेलियों की तरह हैं। L को पच्चास, C को सौ, D को पांच सौ और N को हजार का अंक माना गया। इन्हीं अक्षरों का प्रयोग कर उन्होंने अंक लिखना शुरू किया। इन अक्षरों को किसी भी जगह रखा जा सकता था। इनकी कोई भी निश्चित जगह नहीं थी। ग्रीक और हरब्यू (Hebrew) में भी वर्णमाला के अक्षरों को अंक माना गया उन्हीं की सहायता से नम्बरों का लिखना शुरू हुआ।
नम्बरों को अक्षरों के द्वारा लिखने के कारण न केवल नम्बर लिखे जाने में मुश्किल होती थी पर गुणा, भाग, जोड़ या घटाने में तो नानी याद आती थी। अंक प्रणाली में क्रान्ति तब आयी जब भारतवर्ष ने लिपि के अक्षरों को अंक न मानकर, नयी अंक प्रणाली निकाली और शून्य को अपनाया। इसके लिये पहले नौ अंको के लिये नौ तरह के चिन्ह अपनाये जिन्हें 1,2,3 आदि कहा गया और एक चिन्ह 0 भी निकाला। इसमें यह भी महत्वपूर्ण था कि वह अंक किस जगह पर है। इस कारण सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि सारे अंक इन्हीं की सहायता से लिखे जाने लगे और गुणा, भाग, जोड़ने, और घटाने में भी सुविधा होने लगी। यह अपने देश से अरब देशों में गया। फिर वहां से 16वीं शताब्दी के लगभग पाश्चात्य देशों में गया, इसलिये इसे अरेबिक अंक कहा गया। वास्तव में इसका नाम हिन्दू अंक होना चाहिये था। यह नयी अंक प्रणाली जब तक आयी तब तक वर्णमाला के अक्षरों और अंकों के बीच में सम्बन्ध जुड़ चुका था। जिसमें काफी कुछ गड़बड़ी और उलझनें (Confusion) पैदा हो गयीं।
इस कारण सबसे बड़ी गड़बड़ यह हुई कि किसी भी शब्द के अक्षरों से उसका अंक निकाला जाने लगा और उस शब्द को उस अंक से जोड़ा जाने लगा। कुछ समय बाद गड़बड़ी और बढ़ी। उस अंक को वही गुण दिये जाने लगे जोकि उस शब्द के थे। यदि वह शब्द देवी या देवता का नाम था तो उस अंक को अच्छा माना जाने लगा। यदि वह शब्द किसी असुर या खराब व्यक्ति का था तो उस अंक को खराब माना जाने लगा। यहीं से शुरू हुई अंक विद्या: इसका न तो कोई सर है न तो पैर, न ही इसका तर्क से सम्बन्ध है न ही सत्यता से।
666 – शैतान का नम्बर
नीरो एक रोमन बादशाह हुआ था। वह बहुत क्रूर था लेकिन कोई यह खुले तौर पर नहीं कह सकता था। उसके नाम के अक्षरों का अंक 666 था। इसलिये इसे शैतान का अंक कहा जाने लगा इस प्रचलित अंक ज्योतिष में व्यक्ति की जन्मतिथि (ईसवी कलेंडर के अनुसार) के अंकों को जोड़कर एक मूलांक बना दिया जाता है और फिर उसे आधार बनाकर अधकचरा भविष्य बाँच दिया जाता है। इसी तरह अंग्रेजी के अक्ष्ररों (ए, बी, सी, डी आदि) को एक एक अंक दिया है. और लोगों के नाम के अंग्रेजी अक्षरों के अंकों के योग से उसका मूलांक निकाला जाता है. फिर उसी आधार पर उसका भी भविष्य बाँच दिया जाता है।अंक ज्योतिष ईसवी कलेंडर की तिथि के अनुसार चलता है जिसका एक सौर वर्ष मापने के अलावा कोई सार्वभौमिक आधार नहीं है। समय के अनंत प्रवाह में ईसवी कलेंडर मात्र 20 शताब्दी पुराना है। जिसमें अचानक एक दिन को 1 जनवरी लेकर वर्ष की शुरुआत कर दी गयी और शुरु हो गया 1 से 9 अंकों की श्रेणी में जातक को बाँटने का सिलसिला। यह सर्वविदित है कि इतिहास की धारा में अनेक सभ्यताओं तथा राजाओं ने अपने अपने कलेंडर विकसित किये जिन सबके वर्ष और तिथियों में कोई तालमेल नहीं है। तब सवाल यह उठता कि अंक ज्योतिष का आधार ईसवी कलेन्डर ही क्यों? अंग्रेज़ों ने चुँकि विश्व के एक बड़े हिस्से पर राज किया, इसलिये ईसवी कलेंडर का प्रचलन बढ़ गया। यहाँ तक कि विभिन्न गिरजाघरों ने इस कैलेंडर के दिनों की मान्यताओं पर प्रश्न चिह्न लगाए हैं. और तो और, जो सबसे अवैज्ञानिक बात इसकी सार्वभौमिकता को चुनौती देती है, वो यह है कि भिन्न भिन्न देशों ने इस कैलेंडर को भिन्न भिन समय पर अपनाया.ईसवी कलेंडर की शुरुआत 1 ए.डी. से होती है जो 1बी.सी. के समाप्त होने के तुरत बाद आ जाता है, यह तथ्य मज़ेदार है, क्योंकि इस बीच किसी ज़ीरो वर्ष का प्रावधान नहीं है। देखा जाये तो ईसवी कलेंडर की तिथियाँ, मूलत: सौर वर्ष को मापने का एक मोटा मोटा तरीका भर है। जब हम ईसवी कलेंडर के विकास पर दृष्टि डालतें हैं तो पाते हैं कि कलेंडर के बारह महीनों के दिन समान नहीं हैं और इनमें अंतर होने का कारण भी स्पष्ट नहीं है. यदि इस कलेंडर का इतिहास देखें तो इतनी उथल पुथल है कि इसकी सारी वैज्ञानिक मान्यताएँ समाप्त हो जाती हैं. इस कलेंडर पर कई राजघरानों का भी प्रभाव रहा, जैसे जुलियस और ऑगस्टस सीज़र. 13 वीं सदी के इतिहासकार जोहान्नेस द सैक्रोबॉस्को का कहना है कि कलेंडर के शुरुआती दिनों में अगस्त में 30 व जुलाई में 31 दिन हुआ करते थे। बाद में ऑगस्टस नाम के राजा ने (जिसके नाम पर अगस्त माह का नाम पड़ा) इस पर आपत्ति जतायी कि जुलाई (जो ज्यूलियस नाम के राजा के नाम पर था) में 31 दिन हैं, तो अगस्त में भी 31 दिन होने चाहिये. इस कारण फरवरी (जिसमें लीप वर्ष में 30 व अन्य वर्षॉं में 29 दिन होते थे) से एक दिन निकालकर अगस्त में डाल दिया गया। अब क्या वे अंक ज्योतिषी कृपा कर यह बताएँगे कि दिनों को आगे पीछे करने से कालांतर में तो सभी अंक बदल गये, तो इनका परिमार्जन क्या और कैसे किया गया?सारी सृष्टि एक चक्र में चलती है सारे अंक एक चक्र में चलते हैं जैसे 1 से 9 के बाद पुन: 1 (10=1+0=1) आता है. ईसवी कलेंडर के आधार पर अंक ज्योतिष में अजब तमाशा होता है जैसे 30 जून (मूलांक 3) के बाद 1 जुलाई (मूलांक 1) आता है। इसी तरह 28 फरवरी (2+8=10=1) के बाद 1 मार्च (1 अंक) आता है। नाम के अक्षरों के आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियाँ अंगरेज़ी (आजकल हिंदी वर्णमाला के अक्षरों को भी) के अक्षरों के अंकों को जोड़कर की जाती हैं. अब यह तो सर्वविदित है कि नाम के हिज्जे उस भाषा का अंग है जो जातक के देश या प्रदेश में बोली जाती है और जो साधारणतः निर्विवाद होता है. जैसे ही इसका अंगरेज़ी लिप्यांतरण किया जाता है, वैसे ही विरोध प्रारम्भ हो जाता है. ऐसे में सारे अंक बिगड़ सकते हैं और साथ ही जातक का भविष्य भी इसी अधूरे ज्ञान का सहारा लेकर आजकल लोग इन ज्योतोषियों की सलाह पर अपने नाम की हिज्जे बदलने लगे हैं.अंक ज्योतिष के यह अंतविरोध, इसके पूरे विज्ञान को तथाकथित की श्रेणी में ले आते हैं। एक सवाल यह भी रह जाता है कि क्या पूरी मानव सभ्यता को मात्र 9 प्रकार के व्यक्तियों में बांट कर इस प्रकार का सरलीकृत भविष्य बाँचा जा सकता है? ऐसे में इस नितांत अवैज्ञानिक सिद्धांत को, ज्योतिष के नाम पर चलाने के इस करतब को क्या कहेंगे आप? भारतीय अंक ज्योतिष अपने आप में एक विज्ञान है और हमारी वर्णमाला मैं बहुत से रहस्य छुपे है हमारी तिथियां अपने आप में संपूर्ण है उपरोक्त विचार मात्र अंक-ज्योतिष के विषय में हैं। ज्योतिष शास्त्र के विषय में नहीं क्योंकि उसके सिद्धांत और पद्धतियाँ, खगोल शास्त्र पर आधारित हैं और कई अर्थो में वैज्ञानिकता लिये हैं। ज्योतिष शास्त्र में अभी और गहन शोध होने बाकी हैं और आगे भी इस पर बात जारी रहेगी दोस्तों हो सकते मेरी बातों से कुछ खास  को नाराजगी पैदा हो पर मुझे इस पर कोई फर्क नहीं  आचार्य राजेश

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