:
भाग्यशाली रत्न या अमंगलकारी
रत्नों के बारे में किताबों में सामग्री भरी पड़ी है | असली रत्न की पहचान से लेकर रत्नों के प्रयोग और प्रभाव दुष्प्रभाव का वर्णन किताबों में दिया गया है | तक़रीबन हर जगह एक ही बात को घुमा फिराकर लिख दिया जाता हैं | पर सब कोरी बकवास और बे सिर पैर की बातें लिखी है सबसे पहले जिन्हें रत्नों के विषय में सामान्य ज्ञान भी नहीं है
उनके लिए किताबों में पढ़कर रतन खरीदना बहुत भारी पड़ सकता है क्योंकि किताबों में ऐसी बातें लिखी हुई है जो असली रतन को ना लैकर आप नकली रतन खरीदना ज्यादा पसंद करोगे जो रतन असली होते हैं वह प्रकृति उसमें कोई न कोई दोष जरूर छोड़ देती है जैसे कहीं ना कहीं थोड़ा बहुत क्ट या रंग कहीं से हल्का या उस में कुछ ना कुछ होगा जो नकली रतन
होगा वह चमकदार गहरे रंग का और एकदम से साफ जो आपको देखने में बहुत अच्छा लगेगा क्योंकि रत्नों को गर्म करके treatment की,या जाता है जिससे रतन चमकदार साफ ओर गहरे रंग में लाया जाता है ऐसा करने से रतन अपना असली कुदरती महत्त्व को खो देते हैं
: ब्रह्मांड में नौ ग्रह हैं जिनका महत्वपूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ता है। इन ग्रहों से निकली रश्मियों को एकत्रित करने की क्षमता नवरत्नों में पाई जाती है, अतः ये रत्न ही प्रमुख रत्न हुए। अन्य रत्न अल्पमात्रा में इन रश्मियों को एकत्रित करने में सक्षम हैं, अतः वे उपरत्न कहलाए। प्रश्न: रत्न, उपरत्न, कृत्रिम रत्न व रंगीन कांच में क्या अंतर है? उत्तर: चारों में अंतर उनकी ग्रह रश्मियों को अवशोषित करने की क्षमता पर आधारित है। रत्न सब से अधिक रश्मियां ग्रहण करते हैं। उनके बाद उपरत्न और फिर कृत्रिम रत्न। रंगीन कांच न के बराबर रश्मियां ग्रहण करता है। ओर कांच तो नुकसान भी कर सकता है अच्छे रत्नों का प्रभाव निश्चय ही अधिक होता है क्योंकि ये रत्न रश्मियों को ज्यों की त्यों अवशोषित करने में सक्षम होते ह प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति अच्छा रत्न धारण करने में सक्षम नहीं हो तो क्या वह उपाय से वंचित रह जाएगा? उत्तर: जैसे कोई गरीब व्यक्ति अपना डाॅक्टरी इलाज नहीं करा पाता है वैसे ही वैदिक रत्न धारण करने में असमर्थ व्यक्ति रत्न के उपाय से वंचित रह जाता है। जिस प्रकार डाॅक्टरी इलाज में भी कम मूल्य की दवाइयां होती हैं जिनका सेवन कर या फिर परहेज या संयम द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है, उसी प्रकार,असली रत्न कम कीमत में भी मील जाते हैं जिसका प्रभाव भी महंगे रत्नों जैसे ही होता है प्रश्न: क्या रत्न को धातु विशेष में पहनना आवश्यक है? उत्तर: धातु रत्न की क्षमता को कम या अधिक कर देती है। अतः उपयुक्त धातु में ही रत्न धारण करना उचित है। जैसे नीलम, गोमेद व लहसुनिया पंचधातु में, मोती चांदी में, हीरा प्लैटिनम में व अन्य रत्न स्वर्ण में धारण करने चाहिए। प्रश्न: रत्न खो जाए, टूट जाए या उसमें दरार आ जाए तो क्या करना चाहिए? उत्तर: रत्न का टूटना या उसमें दरार आना अशुभ माना गया है। ऐसे में नया, बड़ा तथा अच्छी गुणवत्ता का रत्न धारण करना चाहिए। यदि रत्न खो जाए तो इसे शुभ माना गया है। ऐसे में समझना चाहिए कि ग्रह दोष दूर हुआ। रत्न का पाना अशुभ है। माना जाता है कि दूसरे के ग्रह कष्ट पाने वाले को प्राप्त हो रहे हैं। रतन का दान लैना भी अशुभ माना जाता है प्रश्न: सवाए में रत्न पहनने का क्या अर्थ है? उत्तर: सवाए में रत्न पहनने का अर्थ है उसका निर्दिष्ट भार से अधिक होना। यदि पांच रत्ती का रत्न बताया गया हो तो उससे अधिक अर्थात साढ़े पांच, छह या सात रत्ती का रत्न धारण करना चाहिए। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि केवल सवा पांच रत्ती का रत्न ही धारण करना है, पौने छह रत्ती का नहीं। पौने छह रत्ती का रत्न लगभग सवा पांच कैरेट और सवा पांच रत्ती का पौने पांच कैरेट के बराबर होता है। अतः पौना या सवाया मापक इकाई पर निर्भर करता है।रती भी पक्की ओर कच्ची होती है प्रश्न: कौन सा रत्न कब तक धारण करना चाहिए? उत्तर: कुछ रत्न जीवनपर्यंत पहन सकते हैं, कुछ रत्नों को समयानुसार परिवर्तित करना चाहिए, और कुछ रत्न आपको बिल्कुल नहीं पहनने चाहिए। यह आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति के अनुसार ही जाना जा सकता है। योगकारक या शुभस्थ ग्रहों के रत्न सर्वदा धारण किए जा सकते हैं। किंतु मारक या अशुभ स्थान में स्थित ग्रहों के रत्न धारण नहीं करने चाहिए। अन्य ग्रहों क रतन जन्मकुंडली के अनुसार चायन करने चाहिएे किसी भी रत्न को दूध में ना डालें. अंगूठी को जल से एक बार धोकर पहनें. रत्न को दूध में डालकर रात भर ना रखें. कई रत्न दूध को सोख लेते हैं और दूध के कण रत्नों में समा कर रत्न को विकृत कर देते हैं. अपने मन की संतुष्टि के लिए अपने ईष्ट देवी की मूर्ति से स्पर्श करा कर रत्न धारण कर सकते हैं.असल में रत्न स्वयं सिद्ध ही होते है। रत्नों में अपनी अलग रश्मियाँ होती है और कुशल ज्योतिष ही सही रत्न की जानकारी देकर पहनाए तो रत्न अपना चमत्कार आसानी से दिखा देते है। माणिक के साथ मोती, पुखराज के साथ मोती, माणिक मूँगा भी पहनकर असीम लाभ पाया जा सकता है। फिर भी किसी कुशल ज्योतिष की ही सलाह लें तभी इन रत्नों के लाभ पा सकते है। कुछ लोग सोचते हैं की रतन पहनते ही चमत्कार हो जाएगा ऐसा सोचना मुर्खतापूर्ण है रतन 10-या15दिन पहनने के वाद सोचते हैं यह रतन तो वेकार है कोई लाभ नहीं हुआअपने लक्ष्य के अनुसार उनका लाभ प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि ये रत्न जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य करते किस प्रकार हैं। हम अपने आस-पास व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न रत्न पहने हुए देखते हैं। ये रत्न वास्तव में कार्य कैसे करते हैं और हमारी जन्मकुंडली में बैठे ग्रहों पर क्या प्रभाव डालते हैं और किस व्यक्ति को कौन से विशेष रत्न धारण करने चाहिये, ये सब बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। रत्नों का प्रभाव: रत्नों में एक प्रकार की दिव्य शक्ति होती है। वास्तव में रत्नों का जो हम पर प्रभाव पड़ता है वह ग्रहों के रंग व उनके प्रकाश की किरणों के कंपन के द्वारा पड़ता है। हमारे प्राचीन ऋषियों ने अपने प्रयोगों, अनुभव व दिव्यदृष्टि से ग्रहों के रंग को जान लिया था और उसी के अनुरूप उन्होंने ग्रहों के रत्न निर्धारित किये। जब हम कोई रत्न धारण करते हैं तो वह रत्न अपने ग्रह द्वारा प्रस्फुटित प्रकाश किरणों को आकर्षित करके हमारे शरीर तक पहुंचा देता है और अनावश्यक व हानिकारक किरणों के कंपन को अपने भीतर सोख लेता है। अतः रत्न ग्रह के द्वारा ब्रह्मांड में फैली उसकी विशेष किरणों की ऊर्जा को मनुष्य को प्राप्त कराने में एक विशेष फिल्टर का कार्य करते हैं।जितने भी रत्न है वे सब किसी न किसी प्रकार के पत्थर है। चाहे वे पारदर्शी हो, या अपारदर्शी, सघन घनत्व के हो या विरल घनत्व के, रंगीन हो या सादे…। और ये जितने भी पत्थर है वे सब किसी न किसी रासायनिक पदार्थों के किसी आनुपातिक संयोग से बने हैं। विविध भारतीय एवं विदेशी तथा हिन्दू एवं गैर हिन्दू धर्म ग्रंथों में इनका वर्णन मिलता है।यहां एक ओर व साफ करुंगा की रतन ओर उपरत्नों की न रसयानिक आनुपातिका अलग होती है वैज्ञानिकों ने रंगों का विश्लेषण करके पाया कि हर रंग का अपना विशिष्ट कंपन या स्पंदन होता है। यह स्पन्दन हमारे शरीर के आभामण्डल, हमारी भावनाओं, विचारों, कार्यकलाप के तरीके, किसी भी घटना पर हमारी प्रतिक्रिया, हमारी अभिव्यक्तियों आदि को सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करते है।
वैज्ञानिकों के अनुसार हर रत्न में अलग क्रियात्मक स्पन्दन होता है। इस स्पन्दन के कारण ही रत्न अपना विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर पर छोड़ते हैं।
प्राचीन संहिता ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसमें एकल तत्व मात्र 108 ही बताए गए हैं। इनसे बनने वाले यौगिकों एवं पदार्थों की संख्या 39000 से भी ऊपर बताई गई हैं। इनमें कुछ एक आज तक या तो चिह्नित नहीं हो पाए है, या फिर अनुपलब्ध हैं। इनका विवरण, रत्नाकर प्रकाश, तत्वमेरू, रत्न वलय, रत्नगर्भा वसुंधरा, रत्नोदधि आदि उदित एवं अनुदित ग्रंथों में दिया गया है।मैंने अपने अनुभव में देखा है की 80 % लोगों ने गलत रत्न डाला होता है । ध्यान रहे की अगर बुरे घरों के रत्न डाले जाएँ तो वो नुक्सान भी कर सकते हैं । अति आवश्यक है की मारक घरों के रत्न न डाले जाएँ क्योंकि उनसे नुक्सान हो सकता है । जहाँ तक हो सके पाप ग्रहों के रत्नों से बचना चाहिए क्योंकि वह नुक्सान कर सकते हैं और वह नुक्सान सेहत, कारोबार, शादी किसी भी क्षेत्र में हो सकता है । मित्रों अगर आप अपनी कुंडली दिखाकर रतन पहनना चाहतें हैं या रतन रैना चाहते हैं या कुंडली वनवाना चाहते हैं तो समर्पक करें आचार्य राजेश
How much consultation fee (28/12/1956 time 19.02 birth place Rohtak Haryana /) as per birth detail kaun sa Ratan pahanne Se labh hoga kripya batane ki kripa Kare
जवाब देंहटाएंonly 1100
हटाएं