गुरुवार, 16 अगस्त 2018

जन्मकुंडली में छठा भाव (6)षट्म भाव

ज्योतिष ने छठे घर को बीमारी, क़र्ज़, शत्रु, अधीनता, पराधीनता इत्यादि का माना है | लाल किताब के अनुसार इस घर का मालिक बुध और कारक केतु होता हैओर शनी  राशिफल का  ग्रह तथा यह घर पाताल होता है | क्योकि लाल किताब के अनुसार केतु हमारे पैर का प्रतिनिधित्व करता है और राक्षसों का निवास स्थान पाताल होता है इसलिए इस घर में राहु उच्च का हो जाता है |लाल किताब की धारणा अनुसार षष्टम भाव को घर के ख़ुफ़िया रास्ते एवं तहखाने से सम्बंधित बताया गया है। किसी जातक के शत्रु, सेवक, रोग एवं मामा के सम्बन्ध में विवेचन षष्टम भाव से किया जाता है।

   नाना एवं भांजे का मकान कैसा होगा इसी भाव से देखा जाता है रिश्तेदारों से मिलने वाली सहायता के सम्बन्ध में षष्टम भाव ही बताता है। मित्रोंष्ठ भाव रोग, ऋण और रिपु का कहा गया है। ये तीनो बातें गंभीर रूप में मुखर हो कर जब सामने आती है तब हम सहसा कह उठते है कि - ना जाने किस जन्म का यह फेर है जिसमें हम आज भी बंधे है । 'जन्म-जन्म का वैर', 'पिछले जन्म का कर्ज', 'पिछले जन्म का पाप' आदि कुछ लोकोपयोग के मुहावरे है जो पूर्व जन्म और रोग-ऋण-रिपु के संबंधों को बताते हैं। लोकाचार के मुहावरे time immemorial से चली आ रही मान्यता, परंपरा व तात्कालीन धर्म,आध्यात्म, विज्ञान आदि से उपजी आम समझ को अपने साथ ढोती हुई यहाँ तक लाती है। इसलिए लोक-व्यवहार में प्रयुक्त मुहावरों का अपना विशेष महत्व है। जब हम ज्योतिष की बात करते हैं तो हमें पुनर्जन्म की अवधारणा को मानना ही होगा। पुनर्जन्म की अवधारणा दो जीवन की निरंतरता और आत्मा की अमरता की और कालपुरुष से सम्बद्ध होने की कड़ी है । कुंडलीमे  देखें तो हमारे इस जीवन का पंचम भाव पिछले जन्म का सूचक है। अर्थात, इस जीवन का पूर्वजन्म का भाव (5भाव  ) पूर्व जीवन का द्वादश/मोक्ष भाव है । दुसरे शब्दों में, अब का पंचम भाव तब का द्वादश भाव था। तो पिछले जन्म का लग्न क्या होगा - एक घर आगे तब के द्वादश से (जो अब का पंचम है)। अर्थात, इस जन्म के पंचम भाव से एक घर आगे अर्थात षष्ठ भाव। षष्ठ भाव पिछले जन्म का लग्न  इसे त्रिकोण के रूप में समझें । पिछले जन्म का जो धर्म त्रिकोण था आज हमारा अर्थ त्रिकोण है। जो ‘धर्म’ हमने पूर्व में किया था उसका tangible effect इस जीवन के अर्थ त्रिकोण से प्रकट होगा।कुंडली का छठा भावग्न- पंचम-नवम भाव का त्रिकोण महत्वपूर्ण त्रिकोण होता है। दूसरा भाव ,प्राप्त होने का भाव है।किसी भी भाव को यदि बीज -जड़ या मूल मान लिया जाय तो समझिए अगला भाव, इस बीज का फल है, इसकी उपज है ,इससे प्राप्त हासिल है.नवम का फल कर्म है ,लग्न का फल धन भाव है।धन भाव अर्थात आपके पैदा होते ही आपको सहज प्राप्त वसीयत ,आपको स्वतः प्राप्त सुविधा।इसी प्रकार पंचम भाव जो की शिक्षा, संतान या सीधे कहूँ उत्पादन का भाव है ,इसका ही फल षष्टम भाव है.जातक के जन्म लेते ही उसके लिए शत्रु का रोल निभाने वाला भाव। ये शत्रु भाव है ,किसका शत्रु भला ?कुंडली का ,जातक का। उसकी हैसियत का ,उसकी पर्सनैलिटी का।पने प्राप्त ज्ञान से,अपने उत्पादन से (पंचम से ) आगे के जीवन के लिए जो उत्पादित होना था ,जो लाभ नवम के रूप में लग्न को प्राप्त होना था, उसके लिए लिए विनाश का कारण बन जाता है छठा भाव। लग्न को यह आठवीं दृष्टि से देखता है ,उसे बर्बाद करने वाली स्थितियां उत्पन्न करता है। शायद उलझ रहे हैं आप .... चलिए सामान्य भाषा में कहता हूँ।

अपनी सोच ,अपने प्राप्त ज्ञान को (पंचम ) जातक अपने भाग्य को बदलने ,या कहें काम करने का अवसर ,सोच मुहैया करता है।भाग्य के लिए प्लेटफॉर्म तैयार करता है . पंचम भाव के लिए लग्न ही भाग्य भाव होता है ,अतः प्राप्त शिक्षा ,प्राप्त ज्ञान से वह अपने लिए फिर अवसर पैदा करता है यानी हालात उत्पन्न करता है। पंचम भाव का पंचम भाव कुंडली का नवम भाव होता है। यानी अपने प्राप्त ज्ञान (पंचम )से हम नवम के लिए बीज होते हैं (त्रिकोण के अनुसार )अब इस बीज का फल (नवम का ) लग्न होता है। लेकिन भाग्य से प्राप्त फल (लग्न )के फल की क्वालिटी इस बात पर निर्भर करती है की नवम को बीज के रूप में ,पैदा होने के हालात के रूप में ,या कहें पृष्टभूमि के रूप में पंचम भाव ने कैसा बीज उपलब्ध कराया था।ये सोच का चक्र है।भाई इस गड़बड़झाले में छठे भाव का रोल तो नजर ही नही आ रहा।छठा भाव शत्रु का भाव है ,किसका शत्रु ? जाहिर रूप से लग्न का ,शरीर का ,जीवन का ,जातक का। यह कमियों का भाव है। हमारी कमियां ही हमारी शत्रु हैं ,हमारे शरीर का रोग हैं ,तभी तो मारक हैं लग्न में मौजूद मानसिक शक्ति के लिए ,तभी तो शत्रु का किरदार निभा रहा है ,क्योंकि यहाँ से लग्न आठवां पड़ता है।बर्बाद भले ही अष्टम करता हो किन्तु उस अष्टम के लिए लग्न में जो सोच बनती है उसकी रूप रेखा तैयार करने का काम कुंडली का षष्टम भाव ही करता है.किसी भी भाव को यदि हाथी माना जाय तो अगला भाव उस हाथी को दिशा देने वाला अंकुश है ,उसे एकाग्रता देने वाला बिंदु है।पंचम भाव ने रावण को छठे के रूप में ऐसा विनाशकारी फल दिया जिसने रावण की सोच को (लग्न को )कभी सदबुद्धि से काम ही नहीं करने दिया। परम ज्ञानी (पंचम के बलवान होने के कारण )भी प्राप्त ज्ञान के रूप में जो फल छठे भाव से उत्पन हुआ उसने रावण को अहंकारी ,लोभी ,कामी बना दिया।अपनी शिक्षा अपने ज्ञान को सही गति न दे सकने के कारण अंत में रावण दुर्गति को प्राप्त हुआ।छठे भाव की स्थिति आरम्भ में ही संकेत दे देती हैं कि क्या चीज जातक के जीवन में उसके लिए शत्रु का रोल निभाने वाली है।तुला लग्न में उत्पन रावण के लिए आरम्भ में ही तय हो चुका था की शत्रु के रूप में गुरु (तुला से छठे में गुरु की मीन राशि होती है )यानी उसका ज्ञान ही उसकी सद्बुद्धि (लग्न को )मारक प्रभाव देगा। अपने अहम का परिणाम ही भुगता उसने।इसी प्रकार यदि किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा छठे भाव में मौजूद है तो मान लीजिये कि जातक की भावनाएं ही उसके लिए शत्रु का रोल निभाने वाली हैं।भावनाओं की अधिकता में ऐसा जातक अपना भला बुरा नहीं भांप पाता। अतः माता पिता को चाहिए की अपनी संतान की कुंडली में षष्टम भाव में प्रभावित हो रहे ग्रहों से बचाव का प्रयास शास्त्रोक्त उपायों द्वारा करते रहें।पंचम भाव में पड़ा बीज ही तय कर देता है की आगे फल की रूप रेखा कैसी होने वाली है जीवन में हमें पैदायशी हासिल सुख भाग्यवश ही प्राप्त होते हैं। इस भाग्य को तय करने के लिए ,इस त्रिकोण का बेस, पंचम भाव है। छठा भाव इस पंचम भाव को दिशा देने वाला भाव है। यानी इस जीवन व उस जीवन में भाग्यवश हमें जो भी प्राप्त होने वाला है उसका बीज पंचम में पड़ गया होता है। व षष्टम भाव उस बीज को पालने का कार्य करता है .छठा भाव, दशम कर्म भाव की बुनियाद है।इतिहास गवाह है की जो जातक अपने कार्य व्यवसाय हेतु छठे की मदद लेकर चला ,उसने बुलंदियों का स्पर्श किया। अतः जैसे ही आप छठे भाव पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते है,आप दशम को अपने आप दशम को अपने मन माफिक हालात उपलब्ध करा पाते हैं।(अब दशम का बीज आपके अधिकार में जो होता है ).इसी समीकरण में दशम अपने अगले कोण (द्वितीय )के लिए प्लेटफॉर्म बनाता है।जितना अच्छा दशम भाव उतना मजबूत द्वितीय भाव।किसी जातक के कार्य व्यवसाय के प्रति कोई भी भविष्वाणी करने से पहले छठे भाव का अध्ययन अवश्य करें। कुंडली त्रिकोणों पर आधारित होती हैं ,किसी भी भाव के सम्बंधित अन्य दोनों कोणों का बहुत महत्त्व होता है. दशम काम धंधे या कहें कर्म भाव के बनने वाले त्रिकोण में द्वितीय व षष्टम भाव ही त्रिकोण के अन्य दो कोण हैं। ऐसे में दशम भाव से सम्बंधित किसी भी प्रकार की भविष्य वाणी हेतु षष्टम भाव को नजरंदाज करना बड़ी चूक है।सामान्य भाषा में यही कि जितना आपने अपनी कमजोरियों,अपने माइनस पॉइंट्स को काबू में रखा ,जीवन में अपनी पॉवर अपनी शक्ति अपने कर्म को नियंत्रित करने का अधिकार पाया। भला कैसे ??? दशम भाव का भाग्य स्थान छठा भाव ही तो है। अतः ये सोचना कि शिक्षा भाव से (पंचम से ) दशम भाव नियंत्रित होगा ,भला कितनी बड़ी भूल है। दशम से पंचम तो अष्टम ,मारक होता है मारक  से मारने वाला नहीं होता मित्रों.हाँ इस पंचम को काबू में करने वाला अंकुश (छठा भाव ) अवश्य नवम है। अतः अपने ज्ञान की सही दिशा तय करके सफलता प्राप्त की जा सकती है। डाक्टरी की पढाई कर (पंचम )उसे सही दिशा (छठे द्वारा ) जन कल्याण में लगाया तो दशम की शक्ति को प्राप्त किया। किन्तु यदि यहीं से डाक्टरी सीख कर लोगों की किडनी आदि निकालने का कार्य किया तो दशम के लिए मृत्यु का प्रभाव उत्पन्न किया। काम भी ख़त्म ,सम्मान भी ख़त्म। शिक्षा भी ख़त्म।

शत्रु भाव का शत्रु एकादश भाव होता है ,जाहिर तौर पर यदि आपका एकादश भाव मजबूत है तो आप अपने कई रोगों,कई शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। कहते हैं की रावण ने अपने पुत्र मेघनाथ के लिए एकादश भाव को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया था। मेघनाथ की कुंडली में एकादश भाव में ही सर्वाधिक ग्रहों का बल प्राप्त हो रहा था। अपने शत्रुओं को परास्त करने के लिए उसने मेघनाथ के एकादश भाव से सहायता प्राप्त की। आखिर इंद्रजीत तो मेघनाथ ही था न।

शत्रु भाव को (छठे भाव ) को बुद्धि दशम से प्राप्त होती है ,अर्थात कर्म ही आपके शत्रु भाव को सदबुद्धि प्राप्त करा सकते हैं ,अतः अपनी बुद्धि का गलत उपयोग किया तो नवम को खराब किया ,अपनी बुद्धि के अंकुश पर नियंत्रण नहीं रखा तो दशम को खराब कियाअतः अपने कर्मों के द्वारा हम शत्रु भाव को विनाशकारी होने से रोक सकते है। आचार्य राजेश

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