बुधवार, 22 अगस्त 2018

मंत्र जाप ओर उसका प्रभाव

है मंत्रजाप का प्रभाव मनुष्य शरीर एक बायोकैमिकल मशीन की तरह से है,यह केवल जैविक तत्वों से ही चलता है,जो तत्व जमीन से उगे होते है,जिन तत्वों के अन्दर भी एक स्वयं की उत्पादित होने की क्षमता होती है,उन्ही तत्वों से शरीर चलता है। शरीर में ग्रहण करने की क्षमताओं में भोजन से शरीर के विकास,पानी से शरीर के लवणों क्षारों और सभी तत्वों की पूर्ति और निकास का काम,वायु से शरीर के तत्वों को आगे पीछे करने का काम,अग्नि से शरीर के अन्दर तत्वों को पकाने और बेकार के तत्वों को जलाने का काम,सभी तत्वों के आपसी संघर्षण करने से उत्पन्न विद्युत के द्वारा भाग्य और दुर्भाग्य को बुद्धिबल से प्रकट करने वाली बात को माना जाता है।सही तरह के भोजन, विचार, श्वास प्रक्रिया, मनोभाव और भावनाओं से आपके शरीर को ठीक करते हुए उसका कायाकल्प किया जा सकता है। इसी तरह उचित शब्दों को बोलना और सही तरह की ध्वनियां सुनना भी महत्वपूर्ण है। इससे आपका तंत्रिका तंत्र अपने आस-पास के जीवन के प्रति संवेदनशील हो पाएगा। क्या आपने ध्यान दिया है कि जब आप कुछ घंटों तक गाड़ियों या मशीनों की कर्कश आवाजें सुनते हैं, तो आपको अपने आसपास की साधारण चीजों को भी ठीक से समझने में मुश्किल होती है। जबकि किसी दिन अगर आप सिर्फ घर पर बैठे कुछ शास्त्रीय संगीत सुन रहे होते हैं, उस दिन आपका दिमाग तेज और सजग होता है और बहुत आसानी से चीजों को समझ लेता है। अगर आप सचेतन होकर, इन चीजों पर अधिक से अधिक ध्यान दें, या कम से कम इस बारे में सचेत रहें कि किस तरह की ध्वनि आपके सिस्टम को नुकसान पहुंचा रही है और किस तरह की ध्वनि से लाभ होता है, तो आप उन ध्‍वनियों को शुद्ध कर लेंगे, जिनका आप उच्चारण करते हैं। हो सकता है कि आप उस आदमी को न रोक पाएं, जो आपके बगल में चिल्ला रहा हो, लेकिन कम से कम आप जो बोलते हैं, उस ध्वनि को तो शुद्ध कर सकते हैं। क्योंकि आप जिन ध्वनियों का उच्चारण करते हैं, उनका असर आपके ऊपर सबसे अधिक होता है।ध्वनि एक चीज है, लेकिन एक और चीज है, ध्वनि के उच्चारण के पीछे की नीयत या लक्ष्य। बोलने की क्षमता मनुष्य को मिला एक विशेष उपहार है। बोले जाने वाले शब्दों की जटिलता के हिसाब से कोई और जीव इंसान की बराबरी नहीं कर सकता शरीर में आंखे प्रकाश के विभिन्न रूपों से शक्ति को ग्रहण करती है,नाक हवा में उपस्थित शक्तियों को ग्रहण करती है,कान धरातलीय कर्षण विकर्षण से उत्पन्न आवाजों से शक्ति को ग्रहण करते है,जीभ विभिन्न स्वरों को पैदा करने के बाद शरीर के अन्दर ग्राह्य तन्त्रिका तंत्र को मजबूत करती है और उन अणुओं को खोलने का काम करती है जो पहले खोले नही गये है अथवा खोले तो गये है लेकिन समयावधि के बाद बे स्वत: बन्द हो गये है,इसके साथ ही जीभ और ह्रदय के आपसी तालमेल से स्वाद,रस,वाणी,कर्मेन्द्रियों का साथ देना भी जीभ का काम है। मंत्र जाप का रूप उसी प्रकार से माना जा सकता है जिस प्रकार से कम्पयूटर के कीबोर्ड पर विभिन्न बटनो को दबाने से विभिन्न काम होते है। हीन भावना से दूर होने का मंत्र हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति को अपने को एक घंटे के लिये एकान्त कमरे मे ले जाना चाहिये,वह समय कोई भी हो,दिन या रात सुबह या शाम जो भी उसके लिये उपयुक्त हो। दिमाग के अक्ष को साधने के लिये अक्षर "क्ष" का प्रयोग करने के लिये उसके सभी रूपों का उच्चारण जीभ और ह्रदय से एक साथ चलाना चाहिये। मतलब जाप करते वक्त जीभ की गति स्थिर होकर चले,लेकिन जोर से बोलना,आवाज निकालना आदि नही हो,इस प्रकार से मंत्र को जाप करते वक्त केवल यही ध्यान रखना चाहिये कि "मैं समर्थ हूँ,यह प्रकृति मेरे साथ है,मैं अपने को अमुक काम में अमुक व्यक्ति के साथ अमुक व्यक्ति के ठीक होने अमुक समय तक समर्थ होना चाहता हूँ".इस सोच के साथ जो मंत्र है वह इस प्रकार से है,-"क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षुं क्षूं क्षृं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षं क्ष:" इस मंत्र का फ़ल तीन महिने में साक्षात सामने आने लगता है,लेकिन मंत्र जाप के समय अन्य चिन्तायें नही होनी चाहिये,पेशाब पानी अन्य शरीर की गतियों को पहले से ही पूर्ण करने के बाद ही इसका जाप करना चाहिये। जब सभी इच्छायें पूरी होने लगें तो भी इस मंत्र को नही त्यागना चाहिये,यह ही अक्ष या यक्ष का मंत्र बोला जाता है,जिससे शरीर का मुख्य बिन्दु जागृत हो जाता है और शरीर के वे अणु धीरे धीरे खुलने लगते है जो उन्नति के लिये प्राय: बन्द हो गये होते है या पहले से खोले ही नही गये होते है। वह विज्ञान है। विज्ञान को विज्ञान की तरह ही लेना चाहिए और बिलकुल उसी रूप में उसका इस्तेमाल करना चाहिए। कुछ मंत्र ऐसे भी हैं, जिनमें आपकी भावनाओं की जरूरत होती है। जबकि कुछ मंत्र ऐसे भी हैं, जो भावनाओं के साथ मिलकर सब गड़बड़ कर देंगे। इसलिए इनका इस्तेमाल आपको बिल्कुल विज्ञान की तरह करना चाहिए। यह रयासन विज्ञान की तरह हैं। आपको इसे बिल्कुल उसी रूप में करना होगा, तभी ये काम करेंगे। लेकिन आज ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती और वह हर चीज को मिला देते हैं, इसलिए जो लोग इन्हें कर रहे हैं, आप उन पर इसका कोई महत्वपूर्ण असर या लाभ होता नहीं देखते। इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि न तो उनमें इसके लिए जरूरी स्पंदन होता है और न ही इसके लिए जरूरी जानकारी, समझ और जागरूकता। जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि बिना जरुरी जागरूकता के अगर किसी चीज को बार-बार दोहराया जाए तो वह दोहराव आपमें सुस्ती व ढीलापन ही लाता है। आप बहुत सारे ऐसे लोगों को पाएंगे, जिन्हें लगता है कि वे प्रार्थना कर रहे हैं, लेकिन इस दोहराव की प्रक्रिया के चलते वे सुस्त हो चुके हैं। बिना जरूरी जागरूकता के बार-बार किया जाने वाला उच्चारण मन को सुस्त बना देता है।

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