जन्म कुन्डली का सातंवाँ भाव गृहस्थी का कारक है। वैवाहिक और दाम्पत्य सम्बन्ध इसमें समाहित होते है। जातक जीविका उपार्जन करने के लिए किस प्रकार के धंधे करेगा भाव विवाह पत्नी ससुराल प्रेम भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये माना जाता हैसातवें भाव को 'गृहस्थी की चक्की ' कहा है
आकाश जमीन दो पत्थर सातवें रिज्क अकल की चक्की हो"यह सातवाँ भाव पति या पत्नी और काम का माना जाता है।इसका स्वामी फिर शुक्र बन जाता है , शुक्र जिसे हम इस दुनिया में भौतिक सुखों का कारक मानते हैं वही नर यानी मंगल यानि रुधिर और मादा यानी शुक्र यानी वरीय रूप से श्रृष्टि का कारण बनता है वैसे भी लॉजिक एंगल से देखें तो शरीर में इन दोनों तत्वों का होना ही जीवन का कारण बनता है ! अब यही सप्तम भाव फिर मारक बन जाता है क्यों की जब हम भौतिकता की अधिकता या कह सकते हैं के भौतिक सुख को प्राप्त करने के एवज में मारकता सहन करनी ही पड़ती हैपहले घर के खाली होते, सातवाँ फौरन सोया"
लाल किताबकार ने 'गृहस्थ की चक्की ' बड़ा सुंदर रूपक रचा है। धरती आकाश दो पत्थर है। इस चक्की में शुक्र धरती का प्रतीक है, बुध आकाश का /गृहस्थ की चक्की में शुक्र नीचे वाला पत्थर है जो स्थिर रहता है। बुध ऊपर वाला पत्थर है जो घूमता रहता है। सूर्य, चन्द्र और राहु का फल शुक्र के सामान स्थिर रहने वाला अर्थात अटल रहता है। गोचरवसात ये ग्रह अनिष्ट फल दे तो उसका कोई निवारण नही होता। उसे तो भोगना ही पड़ता है। !सप्तम भाव मुख्य रूप से सहयोगी बढ़का कहा जाता है और एक सहयोगी हमारी पत्नी भी होती है, जो कि जीवन भर हमारे साथ सहयोग करके चलती है | तथा जीवन संगिनी कहलाती है | इस तरह एक सहयोगी हमारे वह भी होते हैं जो हमारे साथ किसी चीज अथवा कार्य में साझेदारी कर के चलते हैं, जैसे पार्टनरशिप में काम करना अथवा लेन देन साथ ही सप्तम भाव विवाह का भी होता है और विवाह तभी होता है जब कोई बीच मे बिचौलिया हो इसलिये बिचौलियो का भी सप्तम भाव ही होता है | सप्तम भाव काम त्रिकोण का दूसरा त्रिकोण कहलाता है | काम त्रिकोण में तृतीय भाव हमारा बल (वीर्य) रूप होता है और जैसा कि त्रिकोण के नाम से ही पता चलता है कि काम अर्थात कामवासना का मूल या जड़ अर्थात वीर्य अर्थात तृतीय भाव होता है इसलिए तृतीय भाव काम त्रिकोण का पहला भाव होता है इसी प्रकार दूसरा काम त्रिकोण सप्तम भाव अर्थात हमारी पत्नी (कामिनी) जो कि काम अर्थात वीर्य की सहायक होती है और इसी तरह तीसरा काम त्रिकोण इच्छा पूर्ति का होता है अब काम त्रिकोण के चक्र को आप इस तरह समझ सकते हैं जैसे वीर्य यानी तृतीय की उत्पत्ति होती है तो सप्तम अर्थात पत्नी उसे ग्रहण करती हैं जिसके फलस्वरूप हमारी इच्छा यानी कि 11वां भाव पूरा हो जाता है इसी तरह काम त्रिकोण का चक्र चलता रहता है |सातवां भाव दूसरे भाव से छटा होता है इसलिये यह हमे बताता है कि धन प्राप्ति के लिये हमे कितना संघर्ष करना पड़ेगा क्यूंकि पत्नी के आने के बाद ही हमे धन संचय के लिये संघर्ष करना होता है | हमारे मामा मौसियो के धन की स्थिति भी यही भाव बताता है| दूसरे भाव के अनुरूप सातवां भाव दाल,दूध ,घी,गुड, शर्बत व सूप ,पान ,तला हुआ स्वादिष्ट भोजन भी बताता है| सातवें भाव को अन्य नामो जैसे- अस्त,अध्वन,मद,चित्तोत्थ,गमन,मार्ग,द्यून, जामित्र,काम,सम्पत,स्मर से भी जाना जाता है| यह शरीर मे भीतरी प्रजन्न अंग ,गुदा मार्ग,वीर्यवाहिनी नली,गुप्तांगो का रक्त संचार, गुर्दे , मल मूत्र कोष को भी बताता है| यह भाव मार्ग, सड़क, परदेस, समुद्र पार को भी बताता है|
तीसरे भाव से पंचम होने के नाते सातवां भाव हमारे पराक्रम को अतिरिक्त सफल बनाने वाली बुद्धि व योजना प्रदान करता है जैसा कि हमारी पत्नी हमे समय-समय पर कहती है कि अमुक काम इस ढंग से करो | साथ यह भाव हमारे छोटे भाई बहनो के बच्चो की स्थिति भी बताता है व उनके प्रेम संबधो को भी | अक्सर आपने देखा है कि देवर (तृतीय) भाव भाभी(सातवें भाव) से स्नेह संबध रखते है वो यहि कारण है सप्तम भाव तीसरे से पंचम होता है|
चतुर्थ भाव से चौथा होने के कारण सातवां भाव हमारे घर-जायदाद ,माता के सुख को भी बढ़ा देता है क्यूंकि सातवें भाव अर्थात पत्नी के आने के बाद घर की सुख सुविधा मे चार चांद लग जाते है तथा माता को भी बहु(7भाव) से सुख मिलता है | इसी तरह बहु यानी सातवे भाव की वजह से ही हमारी पैतृक जमीन जायदाद हमारे हिस्से मे आने से हम उसका सुख ले पाते है|
सातवां भाव पंचम से तीसरा होता है इसलिये यह हमारी योजना व बुद्धि को मिलने वाले अतिरिक्त बल को दर्शाता है जैसे पत्नी की सलाह व सहायता| साथ हमारी संतान के बल पराक्रम की हालत भी यही भाव बताता है|सातवां भाव छटे भाव से दूसरा होता है इसलिये यह हमारे शत्रु की धमकी व उसकी धन स्थिति का विवरण भी देता है साथ ही मामा मौसियो कि धन स्थिति भी यही भाव बताता है| चोर अगर छटा भाव है तो सातवां चुराया गया सामान है|
सातवां भाव आठवे से 12वां होने से हमारी आयु मे होने वाली क्षति या गिरावट को बताता है | इसलिये यह मारक भाव कहा जाता है|
सातवां भाव नवम से 11वां होने कारण हमारे भाग्य व पिता को मिलने वाले लाभ को बताता है क्यूंकि सातवें (पत्नी ) के कारण ही हमारे पिता के क्षेत्र की वंश वृद्धि होती है तथा हमारा भाग्य भी अक्सर विवाह के बाद ही लाभ देता है|
दशम भाव से दशम होने के कारण सतवां भाव हमारे पद-प्रतिष्ठा को अतिरिक्त पद-प्रतिष्ठा दिलाने वाला होता है क्यूंकि सातवें(पत्नी) के कारण कई बार हमे खूब पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है | साथ ही यह भाव हमारे कार्य क्षेत्र मे अतिरिक्त कार्य जैसे अपना काम ,बिजनेस, साझेदारी का काम या व्यापार भी यही भाव दर्शाता है|
सतवां भाव एकादश भाव से नवम होता है इसलिये यह हमारी आय व लाभ मे होने वाली उन्नति को भी दर्शाता है इसलिये यह डेली इनकम का भाव भी कहा जाता है| साथ ही यह भाव हमारे लाभ व आय के लिये होने वाले धार्मिक कृत्यो को भी बताता है क्युकिं हमारी पत्नी ही हमारे लाभ के लिये पूजा-पाठ इत्यादी करती रहती है|सातवां भाव 12वें से आठवां होने के कारण हमारे व्यसनों ,नशे खर्चो व निवेशो जैसी क्रियाओ के करने वाला होता है क्यूंकि हमारी पत्नी ही इन सब चीजो से हमे अलग कराने का प्रयास करती है अथवा अपनी पत्नी के कारण ही हमे इन उपरोक्त आदतो पर संयम रखना पडता है
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