आचार्य राजेश (ज्योतिष,वास्तु , रत्न , तंत्र, और यन्त्र विशेषज्ञ ) जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वैदिक व लाल किताबकिताब के उपाय ओर और महाकाली के आशीर्वाद से प्राप्त करें07597718725-०9414481324 नोट रत्नों का हमारा wholesale का कारोबार है असली और लैव टैस्ट रत्न भी मंगवा सकते है
शुक्रवार, 24 अगस्त 2018
वारहवा भाव दा्दश भाव
कुंडली के बारहवें घर को व्यय स्थान अथवा व्यय भाव कहा जाता है तथा कुंडली का यह घर मुख्य रुप से जातक के द्वारा अपने जीवन काल में खर्च किए जाने वाले धन के बारे में बताता है तथा साथ ही द्वारा खर्च किए जाने वाला धन आम तौर पर किस प्रकार के कार्यों में लगेगा। कुंडली के बारहवें घर के बलवान होने की स्थिति में आम तौर पर कमाई और व्यय में उचित तालमेल है तथा कुंडली धाहोतारक अपनी कमाई के अनुसार ही धन को खर्च करने वाला होता है, जिसके कारण उसे अपने जीवन में धन को नियंत्रित करने में अधिक कठिनाई नहीं होती जबकि कुंडली के बारहवें घर के बलहीन होने की स्थिति में जातक का खर्च आम तौर पर उसकी कमाई से अधिक होता है तथा इस कारण उसे अपने जीवन में बहुत बार धन की तंगी का सामना करना पड़ता है।द्वादश भाव कुंडली का अंतिम भाव होने से मनुष्य जीवन का भी अंतिम भाग है| प्रथम भाव(लग्न) से गणना करने पर द्वादश या 12 भाव सबसे आख़िरी भाव है अतः एक प्रकार से यह जीवनचक्र का अंत दर्शाता है| जो कुछ भी प्रारंभ हुआ है, उसे एक न एक दिन समाप्त होना है, क्योंकि लग्न जीवनारंभ का सूचक है इसलिए द्वादश वारहवाभाव जीवन की समाप्ति को प्रदर्शित करता है| लग्न मनुष्य की जीवन शक्ति है, उसकी उर्जा है तथा द्वादश भाव उस उर्जा का व्यय कारक है| इसलिए इस भाव को व्यय स्थान कहा जाता है| फारसी में इस भाव को ख़र्च खाने कहते हैं| मनुष्य द्वारा प्राप्त जीवन, धन, यश, प्रसिद्धि आदि की हानि या नाश द्वादश भाव कर देता है इसलिए इस भाव को हानि या नाश स्थान भी कहते हैं| यह भाव त्रिक(6,8,12) भावों में से एक है| इस भाव का स्वामी प्रायः अशुभ माना जाता है परंतु यदि कोई ग्रह सिर्फ द्वादश भाव का स्वामी हो तथा अन्य किसी भी भाव का स्वामी न हो तो वह भावेश तटस्थ(Neutral) रहता हैकुंडली का बारहवां भाव जीवन के सपने बुनता है वह सपने दिन के भी हो सकते है और रात के भी हो सकते है.चलते फ़िरते भी हो सकते है और बैठे ठाले हो भी हो सकते है यात्रा मे भी हो सकते है और धार्मिक स्थानो की यात्रा करने पर भी हो सकते है.लम्बी यात्रा मे भी हो सकते है और आखिरी नींद लेने मे भी हो सकते है। हकीकत मे देखा जाये तो जीवन को बनाने बिगाडने के लिये स्वपनो की बहुत बडी भूमिका होती है। द्वादश भाव मनुष्य के बाएँ नेत्र से संबंधित है| क्योंकि हमारी आँखें प्रकाश के माध्यम से ही देख पाती हैं इसलिए यदि द्वादश(हानि) भाव में सूर्य या चन्द्रमा जैसे प्रकाशकारक(Luminaries) ग्रह स्थित हों और पाप ग्रहों से पीड़ित हों तो व्यक्ति के नेत्रों में कष्ट होता है|
जल द्वारा मृत्यु- किसी भी कुंडली में चतुर्थ, अष्टम तथा द्वादश भाव जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं| इसलिए द्वादश भाव एक जलीय भाव है| द्वादादेश तथा चतुर्थेश का प्रभाव जब भी अष्टम भाव(मृत्यु का स्वरुप) तथा अष्टमेश पर हो तो व्यक्ति की मृत्यु जल में डूबने से होती है|
विपरीत राजयोग- किसी भी जन्मकुंडली में छठा, आठवाँ तथा बारहवाँ भाव अशुभ माने जाते हैं| द्वादश भाव हानि का है इसलिए जब भी द्वादश भाव का स्वामी छठे या आठवें भाव(अशुभ भावों में स्थित होकर अशुभता की हानि अर्थात शुभफल) में स्थिति होकर पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो विपरीत राजयोग का सृजन करता है| जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को असीम धन-संपति व भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है|
जीवनसाथी का दूसरे विपरीत लिंग से प्रेम संबंध- जन्मकुंडली में छठा तथा ग्यारहवां भाव शत्रु व अन्यत्व(Enemy & Others) के प्रतीक होते हैं| द्वादश भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से छठा(शत्रु) होता है इसलिए यह वैवाहिक जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के प्रवेश(Entry) अर्थात घुसपैठ को दर्शाता है| द्वादश भाव शैय्या सुख(Bed Pleasures) का भी है| यदि व्यक्ति की कुंडली में छठे व ग्यारहवें भाव के स्वामी(शत्रु व अन्यत्व) तथा राहु(बाहरी तत्व) का संबंध द्वादश भाव(शय्या सुख व भोग) व उसके स्वामी हो जाए तो मनुष्य का जीवनसाथी बाहरी व्यक्ति (परस्त्री या परपुरुष) से प्रेम संबंध रखता है अर्थात बेवफ़ा होता है|
मोक्ष- द्वादश भाव का कुंडली का अंतिम भाव होने से इसका संबंध मोक्ष से है| यदि लग्नेश का नवम भाव(धर्म स्थान) व नवमेश से शुभ संबंध हो और द्वादश भाव तथा द्वादादेश पर भी शुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो तो मृत्यु के उपरांत मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है| यदि द्वादश भाव में केतु स्थित हो और उस पर शुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो तो यह भी मोक्ष का सूचक है|
पाँव(पैर)- द्वादश भाव को कालपुरुष का पैर माना गया है| यदि, द्वादश भाव, द्वादादेश, मीन राशि तथा गुरु पर पाप व क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य को पैरों से संबंधित कष्ट जैसे पोलियो, लंगड़ापन आदि रोग होते हैं|
व्यय- द्वादश भाव जन्मकुंडली का अंतिम भाव होने से इसका संबंध हानि, ख़र्च या व्यय से है| मनुष्य के व्यय की प्रकृति किस प्रकार की होगी इसकी सूचना हमे द्वादश भाव से ही मिलती है| यदि द्वादश भाव तथा द्वादशेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का व्यय सत्कर्मों में(दान, धर्म, पुण्य) होता है इसके विपरीत यदि इन घटकों पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य अपने धन को गलत तरीके से ख़र्च करता है|
निद्रा व अनिद्रा- द्वादश भाव का संबंध शयन सुख से है अतः इसका निद्रा(Sleep) से भी घनिष्ठ संबंध है| उत्तम स्वास्थ्य हेतु उचित निद्रा लेना अति आवश्यक माना गया है| यदि द्वादश भाव व द्वादादेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति गहरी व अच्छी नींद का आनंद लेता है इसके विपरीत यदि यह घटक पाप ग्रहों से पीड़ित हों तो मनुष्य को अनिद्रा(नींद न आना) की समस्या होती है| यह भाव निद्रा का होने के कारण स्वप्न(Dreams) से भी संबंधित है|
विदेश यात्रा या विदेश वास- द्वादश भाव निवास स्थान से दूर विदेशी भूमि को दर्शाता है| वैसे भी यह भाव चतुर्थ स्थान(घर या निवास) से नवम(लंबी यात्रा) है इसलिए घर से दूरी का प्रतीक है| अतः यह भाव मनुष्य के विदेश में निवास करने का है
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